भारतवर्ष आर्यवर्त हिन्दुस्तान श्रेष्ठ, सभ्य लोगों की भूमि थी।जहां प्रत्येक प्राणी को जीने का अधिकार मिला हुआ था। इस भू-भाग पर मानव धर्म अर्थात सनातन धर्म था। जिसका उदय और अस्त कभी नहीं होता ।धर्म सास्वत होता है | जिसे इंसान शुरू करें, वह पंथ, साम्प्रदाय, मत और मज़हब व religion कहलाता है| सनातन धर्म में ऐसे अनेक पंथ – साम्प्रदाय हैं |सनातन परंपरा में पूजा पद्धति का कोई बंधन नहीं है | ईश्वर तक पहुँचने के अनेक मार्ग बताएं है | इस पवित्र भूमि पर सभी को जीवात्मा-परमात्मा का अंश मानकर श्रद्धा पूर्वक आदर सहित पूजा जाता था ।चाहे वे पत्थर, पेड़, नदियां, पशु, पक्षी व् जानवर आदि ही क्यों न हों। यहां तक सभी मनुष्य को देवी-देवता का अंश माना जाता था | इसीलिए कहा जाता है कि 33 करोड़ देवी-देवता थे। सभी कुछ मानव कल्याण के लिए था |

 इसी पवित्र भूमि पर वेदों की रचना हुई। श्रुतियां, पुराण, उपनिषद, ऋचाएं, स्मृतियाँ, संहिताएं, दर्शन-शास्त्र आदि की रचनाएं हुई। सभी कुछ शांत, पवित्र मन से होता था। किसी को किसी का भय नहीं था। सभी अपने-अपने वर्णों के अनुसार कार्य करते थे। जातियां नहीं थीं | वर्ण थे | कोई भी व्यक्ति किसी वर्ण का कार्य अपना सकता था | सिंधु तट व अन्य नदियों के किनारे, हिमालय पर्वत पर, जंगलों में कहीं भी ऋषि-मुनि-संत-महात्मा प्रभू भक्ति में लीन होकर तपस्या किया करते थे तथा उनके मुख से वेदों के मंत्र एवं ऊँ के जाप गूंजा करते थे। राजा धर्मपरायण होकर प्रजा की सेवा में तत्पर रहा करते थे। सैनिक राष्ट्र की रक्षा अपना कर्त्तव्य मान कर किया करते थे। व्यापारी वर्ग निःसंकोच व्यापार किया करते थे। सभी कोई अपने कर्म को पूजा मानकर किया करते थे। यहां पर सभी कुछ था, सोना, चाँदी, पेड़, पौधे, नदी, पहाड़, सभी ऋतुएं थीं। ज्ञान का भंडार था, इसीलिए भारत विश्वगरु कहलाता था और इसीलिए भारत सोने की चिड़िया भी कहलाता था। यदि कभी युद्ध की आवश्यकता भी होती थी, तो न्याय व धर्म युद्ध होता था, कपट युद्ध कभी नहीं होता था। युद्ध के अपने नियम थे, जिसका पालन सभी करते थे।

शताब्दियों पश्चात् जैसे भारत को नजर सी लग गई थी | भारत जैसी सोंने की चिड़िया को लुटने के लिए बाहरी हमले होने लगे | उसकी शुरुवात हुई विदेशी हमलावरों से। जो बर्बर क्रूर, वहशी, आततायी लुटेरे थे। उन्होंने 7 वीं शताब्दी से लेकर 17 वीं शताब्दी तक हिंदुओं की हत्याओ, नरसंहारों, लूटपाट, अपहरण, धर्मान्तरण, यातनाओं की झड़ी लगा दी थी। जहां सुन्दर राज प्रसाद व मंदिर थे। जहाँ दूध की नदियां बहती थीं | उनमें सोने-चांदी, हीरे-जवाहरात भरे पड़े रहते थे | उन्हें उन बर्बर लुटेरों के टिड्डी दलों ने हमलें कर विध्वंस कर दिया था। उनका सभी कुछ लूट लिया था तथा बदले में उन्होंने भारतवासियों को दी झोपड़ियाँ, कच्चे मकान, गंदी बस्तियां, दूध की जगह गंदी नालियों का दूषित पानी, अशिक्षा गरीबी तथा प्रताड़ना, अपमानित जीवन, सभी कुछ नारकीय बना दिया था। ये सब कुछ किया गया, अरब तथा अन्य पड़ोसी देशों से आने वाले, इस्लाम का परचम लहराने वाले क्रूर लुटेरे, वहशी दरिंदों ने, जोकि मूर्तिपूजको के विशेष तौर से शत्रु थे। उनमें अरब, इराक, इरान, फारस, अफग़ानिस्तान, तुर्की इत्यादि से आने वाले मुस्लिम लुटेरों के टिड्डी दल थे। वे इस्लाम का प्रचार करने के बहाने धरती को लाल कर रौंदते हुए खून की नदियां बहाते हुए, जहां गये, हजारों व्यक्तियों को काट डाला, चीखती-चिल्लाती स्त्रियों के साथ बर्बर बलात्कार किये, बच्चों को गुलामी दी, हजारों को लूला-लंगड़ा बना दिया, मंदिरों की जगह धर्म के नाम पर मस्जिदें बना दी गई | क्या कुछ नहीं किया उन्होंने ? उन नरपिशाचों की सूची में मोहम्मद बिन कासिम, महमूद गजनवी, मोहम्मद गौरी, बख्तियार खिल्जी, कुतुबुद्दीन ऐबक, अल्तमश, रज़िया अन्य गुलामसुल्तान, बलवन, जलालुद्दीन खिल्जी, अलाउद्दीन खिल्जी, गियासुद्दीन तुगलक, फिरोज शाह तुगलक, मुहम्मद तुलगलक, तैमूर लंग, खिजखां, बहलोल लोदी, सिकंदर लोदी, इब्राहिम लोदी, बाबर, हुमायूं, शेरशाह अकबर, जहांगीर, शाहजहाँ और औरंगज़ेब इत्यादि थे।

           उन नरपिशाचों से सभ्य परन्तु वीर हिन्दुस्तानी राजा, महाराजाओं ने समय-समय पर मुकाबला किया। उनमें राजा दाहिर, जय पाल, विजय पाल, आनन्द पाल,सुखपाल, भीमपाल, त्रिलोचन पाल, राजा भीमदेव, पृथ्वी राज चौहान, समर सिंह, हेमराज, कुमार वीर राय, करण राय, गोरा-बादल, राणा भीमसिंह, राणा हम्मीर देव, हरपाल दवा तुघनराय, हरसिंह, राय सरवर, जशरथ राय, जूगा. बलभद. वीर सिंह देव, मानसिंह , विक्रमादित्य, राणा सांगा, रावल उदय सिंह, मेदनी राय, भारमल, धर्मदेव, पूरणमल, वासुदेव, राजकुंवर, मालदेव, जयचंदेल, गोहा, कीरत सिह, शैलादित्य, भगवंत, हेमू, हरिहर राय , बुक्का राय, दुर्गावती, झज्जर सिंह, विक्रमाजीत, जगतसिंह, राजरूप, जदुराय, उजला, बसंत, माणिकराय, भीम नारायण, मदन्ना व अकन्ना, राजसिंह, महाराणा प्रताप, दुर्गा दास राठौर, चम्पतराय, छत्रसाल, गुरु गोविंद सिंह, छत्रपति शिवाजी, पेशवा, मल्हारराव होलकर, व राणोजी सिंधिया इत्यादि थे।

         हमें इतिहास की पुस्तकों में पढ़ाया जाता है कि जैसे हमारे भारतीय शासक, कायर, बुजदिल और डरपोक थे। जैसे उन्होंने कभी भी विधर्मियों से मुकाबला नहीं किया, बल्कि उनके आगे घुटने टेक दिये, जबकि सच्चाई इसके विपरीत है। पूरे आठ  सौ वर्षों तक हमारे महान, सुसंस्कृत, सभ्य, धर्मयुद्ध प्रिय, वीर, पराक्रमी भारतीय योद्धाओं ने बर्बर, लुटेरे, असभ्य, जंगली, क्रूर, अन्यायी, अधर्मप्रिय, बहशी दरिंदों से डटकर मुकाबले किये और उन्हें पराजित भी किया। परन्तु  जब वे क्रूर आततायी प्रत्यक्ष युद्ध में जीत नहीं पाते थे, तो वे कपट युद्ध, छल, षडयंत्र, घूस व  कुरान की कसम खा कर भोले-भाले हिंदुओं के साथ विश्वासघात कर उनकी हत्याएँ कर देते थे। ऐसे अनेकों उदाहरण भारतीय इतिहास में उनकी काली करतूतों से भरे पड़े हैं। फिर उन आततायी मुसलमान शासकों ने हिंदुओं को हमेशा-हमेशा के लिए पद दलित व गुलाम बना देने की चाल चली। वे मुस्लिम शासक  हिन्दु शासकों की सुन्दर स्त्रियों, बेटियों और बहनों के डोले देने  की मांग रखने लगे और उसके बदले उनके राज्य की व जनमाल की सुरक्षा की गारंटी तथा उन्हें अपने दरबारों में ऊँचे-ऊँचे पद की लालच दी गई। उनकी मांगों को नहीं मानने पर उस राज्य का विध्वंस। कुछ लोगों ने उनकी उन मांगों का विरोध किया और वे लड़कर शहीद हो गये और कुछ लोगों ने सम्मान से ज्यादा राज्य वैभव, धन संपदा व ओहदे को ज्यादा महत्व दिया तथा उन्होंने अपनी स्त्रियां, बहिन-बेटियों को देकर उनसे संबंध बना लिये और वे उनके सिपहसालार,सेनापति,जागीरदार,सरदार बनकर अय्याशी की जिंदगी जीने लगे। कुछ लोगों ने धन वैभव,राज्य से ज्यादा स्वाभिमान, बहिन-बेटियों की इज़्ज़त को ज्यादा महत्व दिया और वे उनसे लड़ते रहे |

        उस काल के एक आध क्षत्रिय को छोड़ दिया जाये, तो ज्यादातर शासको  ने मुस्लिम शासकों से सम्बन्ध बना कर अपने स्वाभिमान को बेच डाला था। जो क्षत्रिय कभी सूर्यवंशी श्रीराम और चन्द्रवंशी श्रीकृष्ण के वंशज होने का दावा करते अघाते नहीं थे, उन्होंने अपने वंश की परम्पराओं को कलंकित कर अपमानित किया। उन हिन्दू शासकों ने विधर्मियों से हाथ मिला लिया और उन्होंने असहाय हिन्दू  जनता को उन भेड़ियों के भरोसे छोड़ दिया। बल्कि वही हिन्दू शासक अपने मुस्लिम बादशाहओं, सुल्तानों, नवाबों के इशारों पर हिंदुओं को मारते जुल्म ढाते थे। जब बाड़ ही खेत को खाने लग जाये तो उसका रखैया कौन होगा। हिन्दू  होना जुर्म हो गया। उन पर जजिया लगा दिया गया। तीज त्यौहार, धार्मिक उत्सव पर प्रतिबन्ध लगा दिये गये, लेकिन ये जजिया प्रतिबन्ध उनसे संबन्ध रखने वालों पर लागू नहीं होते थे। औरंगज़ेब का काल आते-आते लाखों हिंदुओं का धर्मान्तरण जबर्दस्ती हो चुका था। हिन्दू शासकों को अपने क्षत्रिय धर्म व कर्तव्य का भान नहीं रहा। केवल वे सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी होने का झूठा दंभ भरते और शेखी बघारते रहते थे। वे केवल सुरा सुन्दरी, रास-रंग व अफीम के अंटों में मस्त रहा करते थे। उन्होंने सोने की चिड़िया भारत को वहशी दरिंदों के लुटने के लिए छोड़ दिया | 

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