225 वीं पुण्यतिथि पर भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी , 18 अगस्त 2020 

देवीश्री अहिल्याबाई होलकर इंदौर के धनगर मराठा सरदार  मल्हारराव होलकर  के पुत्र युवराज  खण्डेराव होलकर की पत्नी थी | उनका का जन्म 31 मई सन् 1725 ई० को औरंगाबाद जिले के चौंडी गांव में मणकोजी शिंदे पटेल घर हुआ था। अच्छे कर्मो के करण प्रजा उन्हें श्रद्धा सेप्रातः स्मरणीय ,पुण्य श्लोक :,लोकमाता देवी व सती कहती थीं  तथा उनकी तुलना सीता व सावित्री से किया करते थे। उनके राज्य की सीमाएं हिन्दुधर्म की चौकियां कहलाती थी और उनका युग मालवा का सतयुग कहलाता था।  सन् 1754  ई० में  भरतपुर के सूरजमल जाट से युद्ध करते हुए उनके पति युवराज खाण्डेराव होलकर वीरगति को प्राप्त हो गये थे । जिससे उन्हें अल्पआयु में वैधव्य देखना पड़ा। देवी अहिल्याबाई होलकर ने सती होने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन उनके ससुर श्रीमंत मल्हारराव होलकर ने उन्हें सती नहीं होने दिया। देवी अहिल्याबाई होलकर ने सारा वैधव्य जीवन प्रजाहित, धार्मिक, एवं सामाजिक कार्यों में लगा दिया और अपार धन सम्पत्ति जनता जनार्दन पर खर्च कर दी |  आसपास के लालची लोगों ने होलकर के राज्य सिंहासन को हथियाने के पंडयंत्र भी किये । इसलिए देवी अहिल्याबाई होलकर होलकर ने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए युद्ध भी लड़े|

       देवी अहिल्याबाई होलकर नित्य नए-नए धार्मिक कार्य करती थी। उन्होंने हजारों मंदिरों, कुओं बावड़ियों, धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। उन्होंने प्रमुख तीर्थो हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, काशी, प्रयाग, अयोध्या, मथुरा, पुष्कर, शुक्रताल, उज्जैन, इंदौर और महेश्वर इत्यादि में अनेक मंदिर, धर्मशालाएं व सदावत स्थापित किए। उन्होंने 7  पुरी, 4  धाम और 12  ज्योर्तिलिंग व 43 धर्मतीर्थों को अनुदान भी दिया। उन्होंने 12772  मंदिर, धर्मशालाओं, घाटों, कुओं, बावड़ियों का निर्माण कर विश्व कीर्तिमान स्थापित किया।  वह प्रतिवर्ष गंगा जल बंटवाती थी और वह पक्षियों के लिए खेत मोल लेकर चुगने के लिए छोड़ती थी। वे प्रजाहित के सभी कार्य करती थी। प्रतिदिन कोटिलिंगगर्चन करती थी और प्रतिदिन हजारों ब्राह्मण व गरीबों को भोजन करवाती थी।  उन्होंने घरेलू उद्योग धंधों को प्रोत्साहन दिया। हजारों बेरोजगार बुनकरों को . महेश्वर में लाकर  बसाया और उनको धंधे दिये। उनकी न्याय व्यवस्था भी बहुत अच्छी थी। कितना भी बड़ा अधिकारी भी यदि अपराध करता था तो देवी उसे स्वयं दंड देती थी। सैन्य व्यवस्था का भी देवी पूरा-पूरा ध्यान रखती थी। राज्य की सुरक्षा के लिए शस्त्रादि के भण्डार भरे पड़े रहते थे। महेश्वर, चाँदवाड, असीरगढ़, जालना, कुशलगढ़ व हिंगलाजगढ़ में हमेशा सेना तैयार रहती थी। वह स्वयं दरबार में बैठकर राजकीय कार्य निबटाती थी। देवी अहिल्याबाई कई रियासतों से कर भी लिया करती थी।  जिनमें कई प्रसिद्ध देशी रियासते डूंगरपुर, बांसवाड़ा, निम्बाहेडा, टोंक, बँदी, लाखेरी, जयपर, रामपुरा, उदयपुर, केशोरायपाटन भी थी। इसी तरह हजारों धार्मिक कार्य करने के कारण अहिल्याबाई एक महारानी से देवी हो गयी थी। 

देवी अहिल्याबाई होलकर का अपना पारिवारिक जीवन बहुत कष्टमय बीता। पहले पति, फिर सास, ससुर और फिर पुत्र,नाती  नत्थू राव,दामाद  यशवन्तराव फणसे और फिर पुत्री मुक्ताबाई अपने पति की चिता पर सती हो गई। देवी अहिल्याबाई को अपनी पुत्री और दामाद के मरने के दुःख ने एकदम तोड़कर रख दिया। लेकिन सदा की भांति उन्हें अपने कर्तव्य की याद आई और उन्होंने रोना-धोना बन्द कर दिया तथा फिर से वह प्रजाहित के कार्यों में  लग गई। पहले की तरह शासन की देख-रेख करने लगी तथा उनका सब कुछ पहले की तरह प्रारम्भ हो गया। अपने कर्तव्यों का पालन करती हुई देवी अहिल्याबाई होलकर 70  वर्ष की पूरी चुकी थी ।  भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी (ई०सन 13 अगस्त 1795 ) को देवी अहिल्याबाई को आभास हो गया कि  अब उनका अन्तिम समय समीप है। उन्होंने उस दिन १२ हजार ब्राह्मणों को भोजन करवा कर, बहुत सा दान धर्म किया। सारी धार्मिक विधियाँ पूरी करने के महेश्वर के किले में शिव चरणों में बैठ, समाधी लगाकर अपने नश्वर शरीर को वहीं छोड़कर आप ब्रह्मशक्ति में हमेशा के लिए लीन हो गई।उनकी एक प्रिय गाय श्यामा ने भी उसी समय प्राण त्याग दिये। उनके देहान्त की खबर से पूरा शहर बिलख-बिलख कर रो पड़ा। उनकी अत्येष्टि नर्मदा के तट पर की गई। महाराजा यशवन्तराव होलकर (प्रथम) ने उनकी यादगार में एक विशाल छत्री व कई घाट बनवाये।  महेश्वर को देवी अहिल्याबाई होलकर ने ही सन् 1766 ई० में राजधानी बनाया था। महेश्वर के किले में ही देवी अहिल्याबाई होलकर की सुन्दर छत्री है। उसमें उनकी सुन्दर प्रतिमा स्थापित  है।

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