होली, होलकरों की

होली सनातन धर्मियों का पवित्र  त्यौहार है | जो प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली का त्यौहार दो दिन का होता है । पहले दिन पूर्णिमा को होलिका दहन और अगले दिन फाग अर्थात रंग, गुलाल, अबीर को एक दूसरे को लगाकर और गले मिल कर मनाया जाता है | लोग मस्ती में गाते. बजाते, नाचते हैं।  रंगों के पर्व होली का पौराणिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है ।
सतयुग की एक पौराणिक कथा है कि हिरण्यकश्यप नामक एक राक्षस था । उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान हरि का भक्त था | उसने  अपने पुत्र पर बहुत अत्याचार किये और असफल  होने पर उसने उसकी बहन  होलिका जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को  फाल्गुन मास की पूर्णिमा को गोद में लेकर आग में बैठ गई। भगवान की कृपा से होलिका तो जल गई परन्तु प्रह्लाद सकुशल बच गया और भक्त प्रहलाद के बचने की ख़ुशी में लोगों  ने उत्सव मनाया था | कहा जाता हैं कि तभी से इस दिन होलिका का दहन किया जाता है |
द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने व्यापक स्टार से इस दिन को अबीर गुलाल व् रंगों ऐ मानना शुरु किया था |

 होलकरों की होली

वैसे तो होली एकता और भाई चारे का त्यौहार है | परन्तु कई बार इस दिन ऐसी घटनाएं हो जाया करती है जो इतिहास में  हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो जाया करती है | ऐसी ही घटना जो होली के दिन मालवा इंदौर के होलकर राजवंश में घटित हो गई | जहाँ रंग और गुलाल की जगह खून की होली खेली गई |
एक जमाना था | जब  होलकर राजे, युद्धप्रिय , सर ने धधकते घनघोर घाटी जंगलो को पार करते, पठानों, मगलों,बुन्देलों, जाटों और राजपूतों को हराते , अंग्रेजों और  सिंधियाओं को अपने रौंदते हुए  अपनी वीरता  का डंका बजाते हुए था खन की होली खेला करते थे।  होलकर  राजाओं की होली भी निराली होती थी। महाराजा मल्हार राव होलकर  राजवाडा चौक में होली जलवाते थे | ऐसी एक होली को उन्होंने रंगीन बनाने के लिए इन्दौर के राजवाडा चौक में होली जलवायी थी। उस समय चन्दन की सत्रह मन लकड़ियां मैसूर से मंगवाई थी। विधिपूर्वक होली का दहन किया गया | उस अवसर पर  पेशवा दरबार की खास नर्तकी अशर्फी जान को बुलवाकर नृत्य करवाया गया  था। चन्दन की खुशबू मस्त बना देने वाली सुगन्ध के बीच जश्न बराबर चलता रहा था | नाचते – नाचते नर्तकी के पैर खून से छलछला आया थ | तब महाराजा मल्हार राव होलकर ने सोने की तीन हजार मोहरें सारंगिये परवेज अली को चांदी की डेढ़ हजार कलदार खुश होकर अशर्फी जान को दिये थे।
उस जमाने में बड़े- बड़े मराठा सरदार, सामन्त और जागीरदार उस होली में शामिल होते थे। पूरी रात राग रंग चला करता था। होलकर राजवंश  की महारानियां और अन्य महिलायें महलों की खिड़कियों से होली का नजारा देखा करती थी । उसी होली में सर्राफा बाजार के पूरब की तरफ खुलने वाली खिड़की पर होलकर राजघराने  की अनुपम सुन्दरी केसरबाई  बैठी थी | जोकि मल्हार राव होलकर की पत्नी थी । ग्वालियर के सिंधिया के खासगी सरदार काशीराव ने केसरबाई  की ओर कटाक्ष किया था, जिससे महल में हड़कम्प मच गया था । वह वहां से भागा  और रात होते होते उसे पकड़ कर, उसका सिर तलवार से काट कर धधकती हुई होली की लपटों में फेंक दिया गया था ।
होलकरों की मस्त बना देने वाली होली में   रंगों की जगह कभी कभी खून का भी प्रयोग हो जाया करता था | यह ऐसी ही होली होती थी श्रीमंत महाराजा यशवंत राव होल्कर की | राजवाडा के चौक में एक लम्बा चौड़ा शामियाना ताना जाता था। जिसके अन्दर होलकर राजाओं के सरदार, सामन्त व जागीरदार बैठते थे। बाकी इन्दौर के सम्मानित लोग, जनता, सैनिक  इत्यादि बैठते थे। पूरा का पूरा नगर विशेषकर होली का देखने को आता था | एक ऊंचे मंच पर महाराजा यशवंत राव होलकर अपनी रानी तुलसाबाई के साथ बैठते थे। पूरे राजवाडा चौक को रंग गुलाल से सराबोर कर दिया जाता था। श्रीमन्तों की बग्घियों के घोड़ों तक को गुलाल और रंग से नहला दिया जाता था । रंग और गुलाल से सराबोर दो सूरमा हाथों में तलवार लेकर एक दूसरे पर अपने हाथ आजमाते थे और दोनों के शरीरों से खून की धाराएं फूट पड़ती थी | दर्शकों को यह पता लगाना मुश्किल होता था कि खून कहां है और गुलाल कहां है । उस खूनी नजारें  को महाराजा यशवंत राव होलकर  देखते थे । देखते देखते उनकी आंखें में अंगारे धहकने लगते थे | वह अपने अतीत में खो जाया करते थे कि कभी उन्होंने भी अंग्रेजों से लगातार खून की होली खेली थी । उनके के लिए  खून का उन्माद जैसे संजीवनी था और समूचे उत्तर तथा पश्चिम में मराठों का परचम लहराते हुए खून की होली  नदियां बहा दी थी । खून देखे बगैर मानो उन्हें सुकून ही नहीं मिलता था । भारत को अंग्रेजों से आजाद करने की रक्त पिपासा आखिरी समय तक उसी खून के लिए  छटपटाती रही कि वह एक शक्तिशाली तोपखाने के द्वारा अंग्रेजों से डटकर खून की होली खेलें।
     महाराजा तुकोजी राव होलकर के जमाने में होलकरों की होली सारे राज्य का शाही त्योहार बन गई थी। इसमें सभी सरदार, जागीरदार, सामन्त, पटेल और अधिकारी सम्मिलित  होते थे । टेसू  के फूलों से रंग तैयार किया जाता था। रात को जब संगीत और नृत्य होता था तो सभी को लाल और केसरिया रंगों की गुलाल लगाई जाती थी । महाराज कला प्रेमी थे, इसीलिए  होली के अवसर पर दूर-दूर से मशहूर कलाकारों को इन्दौर बुलवाते थे। श्री मल्हारी मार्तण्ड के दर्शन करके होली की परिक्रमा के पश्चात राज पुरोहित द्वारा  महाराजा होलकर से होली का पूजन करवाया जाता था | फिर होली को महाराज होलकर दहन करते थे |
होली जलते ही राजबाडा के नौबतखाने में शहनाइयां में गूंजने लगती थीं। नाच-गाना फाग मण्डप से शुरू हो जाता था । जयपुर घराने की प्रसिध्द नर्तकी हरद्वारी बाई कथक नाचने इन्दौर आई तो वहीं की होकर रह गई । होली की रात गुलाल  बिछे चौबारे पर नाचते नाचते उसने अपने पैर के अंगूठे से गणेश जी की आकृति बना डाली थी। वह अन्त में श्री गणेश जी  की आकृति को प्रणाम करके नत्य समाप्त करती थी । महाराजा तुकोजीराव होलकर को बारी-बारी से सभी सरदार, जागीरदार,अमीर  उमराव और सामन्त गुलाल, अबीर लगाते तथा होली की शुभकामनाएं देते थे ।
  अगले दिन पूरा नगर  भंग और गुलाल से नहा जाया करता  था । राजबाड़ा चौक में पहलवान, तलवारबाज, करतबबाज आदि अपने करतब दिखलाते थे। धुलेंडी (फाग) वाले दिन पिचकारियों  से नहीं बल्कि आग बुझाने वाली दमकल के पाइपों से शहर की जनता पर  रंग फेंका जाता था । राजबाड़ा के मैदान में तोप द्वारा भी रंग से और गुलाल जनता पर फेंका जाता था। रात  राजबाड़ा के शीश महल में रानियां-पटरानियां और  ब्रिटिश रेजिडेंट सर हेनरी डेली भी होली खेलती थीं । इन्दौर स्थित ब्रिटिश रेजिडेंट  गोरी मेम बैरोनिका ने इसी राजबाड़ा के पश्चिमी शीश पर होली खेली थी और साथ ही केसर मिली इन्दौर की भांग खाई थी | जिसके असर उनपर दो दिन तक  रहा । जिसकी 10 खबर मलिका विक्टोरिया तक भी जा पहुंची थी । आज भी मालवा में होली बड़ी धूमधाम से मनाई जाति है और पांचवे दिन रंग पंचमी  का त्यौहार देखते ही बनता है |
0

2 thoughts on “Holi, Holkaron ki

  1. मालवाधिपती श्रीमंत सुभेदार मल्हारराव महाराज को केसरबाई नामकी कोईभी राणी अथवा दासी नही थी

    0
  2. वाह आपने होल्कर राजवंश की होली की जीवंत तस्वीर प्रस्तुत करदी। धन्यवाद, मधुसूदन जी। हम गौर्वांवित् हुए।

    0

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *