खासगी (देवी अहिल्या बाई होलकर चैरिटीज) ट्रस्ट Khasgi Trust
अभी हाल में दिनांक 5 अक्तूबर, 2020 को हाई कोर्ट,इंदौर , मध्य प्रदेश ने हरिद्वार के कुशावर्त घाट पर संज्ञान लेते कहा कि देश भर में करोड़ों रुपयों की खासगी ट्रस्ट की सम्पत्तियों को बचाने के लिए 118 पेज का ऐतिहासिक फैसला दिया है | जिसमें खासगी ट्रष्ट की सभी सम्पत्तियां अब मध्य प्रदेश सरकार की हो जाएंगी और साथ ही खासगी ट्रस्ट की डीड को हाई कोर्ट ने अमान्य करार दिया है | आखिर यह मामला क्या है और यह खासगी ट्रस्ट क्या है ? इसको समझने के लिए हमें इतिहास के पन्नों में जाना पड़ेगा | जिससे समझने में आसानी होगी कि यह खासगी जागीर क्या है ?
मराठों का उदय

17वीं शताब्दी में मुग़ल बादशाह औरंगजेब के शासन काल में हिन्दुस्तानियों पर अत्याचारों की झड़ी लग गई थी | हत्या, लूटपाट, बलात्कार, बलात धर्म परिवर्तन व मंदिरों का विध्वंश ,आम बात हो गई थीं | भारत की जनता उनके अत्याचारों से कराह रही थी | देवयोग से सन 1630 ई० योगिराज छत्रपति शिवाजी महाराज का प्रकाट्य हुआ और उन्होंने तमाम अत्याचारी बादशाह, नवाब व सुल्तानों को धूल चटा दी थी | उन्होंने निरीह हिन्दू जनता में स्वराज्य का ऐसा बीज बोया, जो विशाल वट वृक्ष बनकर उभर आया और उन्होंने दुनियां को यह दिखा दिया कि हिन्दू होना भी एक गौरव की बात है | उन्होंने सन 1674 ई० में अपना राज्याभिषेक कर स्वराज्य की नींव ड़ाली | फिर औरंगजेब उस स्वराज्य की उभरती शक्ति को कभी दबा नहीं पाया |बल्कि धीरे- धीरे उस स्वराज्य की अग्नि ने दावानल का रूप धारण कर लिया और वह आग मुग़ल साम्राज्य को जलाने में सफल रही |
सन 1680 ई० में छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र संभाजी को औरंगजेब ने धोखे से पकड मार डाला और उनकी पत्नी येशुबाई और पुत्र शाहू को कैद में डाल दिया | औरंगजेब यह समझने लगा था कि अब मराठों का अंत हो गया है | परन्तु उसे यह नहीं मालूम था कि अब हर मरहठा, शिवाजी बनकर उसका प्रतिकार करेगा |
सन 1707 ई० को औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही उसके पुत्रों में बादशाहत की गद्दी के लिए आपस में खून खराबा होने लगा | उसी आपाधापी में मराठों ने छत्रपति शिवाजी के पुत्र शाहू जी और उसकी माता येशुबाई को औरंगजेब की कैद से छुडा लिया |

सूबेदार मल्हार राव होलकर का मालवा पर अधिकार
शाहू महाराज ने अपने एक कारकून बालाजी विश्वनाथ को पेशवा(प्रधानमंत्री) बना कर उसे सैनिक बागडौर सौंप दी | जल्दी ही सत्ता की बागडोर पेशवा के हाथों में चली गई | उसके पुत्र बाजीराव पेशवा ने अपने नवयुवक साथियों मल्हार राव होलकर, रानोजी सिंधिया को लेकर मालवा और गुजरात पर अभियान किये | सन 1720 ई० और 1726 ई० में भी अभियान किये | सन 1728 ई० में पेशवा ने मालवा पर वसूली का अधिकार अपने विश्वस्त साथी मल्हार राव होलकर को दे दिया और उन्हें पांच महाल दे दिये |
29 नवम्बर 1728 ई० में मल्हार् राव होलकर ने अमझेरा के स्थान पर मुग़ल सेना को बुरी तरह हराया और मालवा के मुग़ल सुभेदार गिरधर बहादुर और उसके भाई दया बहादुर को मार कर मालवा पर अधिकार कर लिया | इस विजय से मल्हार राव होलकर की ख्याति बढने लगी | बाजीराव पेशवा ने मालवा परगने मल्हार राव होलकर और उदाजी पवार में बराबर बाँट दिए |
खासगी जागीर
3 अक्तूबर 1730 ई० को पेशवा ने छत्रपति शाहू महाराज की आज्ञा से मल्हार राव होलकर को सभी अधिकारों के साथ मालवा के 76 परगनों का सरंजाम सौंप दिया | फिर 22 जून 1732 ई० को पेशवा ने शाहू की आज्ञा से मल्हार राव होलकर को मालवा के इंदौर, देपालपुर व् बेटमा के साथ 28 परगनें सैनिक व्यय के लिए और दिये | 20 जनवरी 1734 ई० को शाहू की आज्ञा से पेशवा ने मल्हार राव होलकर के परिवार के निजी खर्च के लिए “खासगी जागीर” दी | खासगी व दौलत की व्यवस्था अलग- अलग की |

खासगी जागीर में दक्षिण के प्रदेशों के अलावा मालवा के महेश्वर, इंदौर परगनें के 9 गावं भी मल्हार राव होलकर की दिए गये | जो उनके निजी खर्च के लिए दिए थे, वे “खासगी जागीर “ परगनें कहलाते थे और जो सैनिक व्यय के लिए दिए थे वे “दौलत शाही” परगनें कहलाते थे |
यह खासगी जागीर होलकर राजाओं की सबसे बड़ी रानियों को प्रदान की जाती थी| सर्वप्रथम यह खासगी जागीर मल्हार राव होलकर की ज्येष्ठ रानी गौतमाबाई को मिली | खासगी जागीर से जो आय होती थी, वह ज्येष्ठ रानी स्वयं खर्च कर सकती थी| उसका आय – व्यय का ब्यौरा होलकर राज्य के कारखानेदार(मैनेजर) रखते थे | उस समय दौलत शाही और खासगी जागीर की व्यवस्था प्रशासन , कर्मचारी,सीलें सभी अलग- अलग होती थीं| गौतमाबाई जीवन भर खासगी जागीर की मालिक बनी रही | अपनी मृत्यु से पूर्व ही यह अधिकार देवी अहिल्याबाई होलकर को दे दिया था | सन 1761 ई० में गौतमाबाई की मृत्यु हो गई | तब खासगी जागीर देवी अहिल्याबाई के पास आ गई और वह जीवन भर उसकी देखरेख करती रही और दौलत शाही की देखभाल तुकोजी राव होलकर करते थे क्योंकि गौतमाबाई ने उन्हें गोद ले लिया था | परन्तु वह राजा ,देवी अहिल्याबाई होलकर के देहांत के बाद बने |
उस समय खासगी जागीर के प्रशासन की व्यवस्था की देखरेख दीवान गोविन्द पन्त गानू नामक व्यक्ति करता था | खासगी जागीर के दीवान पद पर एक ही परिवार के लोग वंश परम्परागत बनते रहे | जो बाद को खासगीवाले के नाम से विख्यात हुए | कोंकण के रघुनाथ राव गानू , मल्हार राव होलकर की सेवा में आए थे | उन्होंने उन्हें बारगीर का पद प्रदान किया था | देवी अहिल्याबाई ने उनके पुत्र गोविन्द पन्त गानू को खासगी दीवान का पद पर नियुक्त किया था | उसकी सेवाओं से खुश होकर देवी अहिल्याबाई ने उसे बांगड़दा गावं जागीर में दिया था | गोविन्द पन्त के बाद उनके पुत्र गोपाल राव बाबा को खासगी का दीवान बनाया | उसके बाद उसके पुत्र गोविन्द राव विनायक को खासगी दीवान बनाया गया | सन 1914 ई० में उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र नारायण राव गोविन्द आजीवन खासगी दीवान रहे | उनका उपनाम ही “खासगीवाले” पड गया | उस खासगी जागीर में से देवी अहिल्याबाई ने अपनी पुत्री मुक्ताबाई को दहेज में तराना का परगना भेंट किया था |

देवी अहिल्याबाई होलकर ने खासगी आय से भारत वर्ष में हजारों मंदिरों, धर्मशालाओं, कुओं, बाबडियों, घाटों का निर्माण किया और फलदार वृक्ष, प्याऊ, अन्नसत्र व् सदाव्रत स्थापित किये | मानव कल्याण के सभी कार्य उन्होंने खासगी जागीर से किये | उनमें से प्रमुख क्षेत्र बनारस(काशी), अयोध्या, नेमिषार्णय , प्रयाग, रामेश्वर, वृन्दावन, कुम्हेर, बुरहानपुर, क्रम्बकेश्वर, अमरकंटक, नासिक, चाँदवाड-वाफगाँव, सम्बल गाँव, महेश्व, इंदौर, मनासा, रामपुर, मानपुर, आलमपुर, तराना इत्यादि हैं |

13 अगस्त 1795 ई० को देवी अहिल्याबाई होलकर की मृत्यु होने के बाद तुकोजी राव होलकर-I की पत्नी रखमाबाई के पास खासगी जागीर आ गई | उसके बाद यशवंत राव होलकर-I की पत्नी कृष्णाबाई के पास खासगी जागीर चली गई | उनकी सितम्बर 1849 ई० में मृत्यु के बाद महाराज तुकोजी रोव होलकर-II की ज्येष्ठ रानी म्ह्लसाबाई खासगी जागीर की अधिकारिणी बनी | खासगी के लिए कुछ विवाद के बाद मल्हार राव होलकर (II) की रानी गौतमाबाई को खासगी जागीर का अधिकार मिला | गौतमाबाई के देहांत के बाद तुकोजी राव होलकर-II की दूसरी पत्नी भागीरथीबाई को खासगी जागीर मिली | क्योंकि ज्येष्ठ रानी म्ह्लसाबाई का सन 1864 ई० में देहांत हो गया था |
सन 1883 ई० तक खासगी जागीर में महेश्वर, हरसोला, हातोद, जागोती, मकरोन परगना बोलिया पवती और रामपुर के गाँव शामिल थे | बाद में उसमें गांगरोली, कसरावद परगने भी खासगी जागीर में मिला दिए गये | उससे उन्हें सात लाख रुपए की आय होती थी | सन 1888 ई० में भागीरथीबाई का देहांत हो गया | उसके बाद महाराजा शिवाजी राव होलकर की बड़ी रानी वारणसीबाई खासगी जागीर की मालिक बनी | उनके काल में महिदपुर, तराना, कायथा, परगनों को खासगी जागीर में मिला दिया गया | महाराज शिवाजी राव होलकर ने अपनी तीसरी पत्नी चंद्रभागाबाई को खासगी की जागीर अधिकारिणी बना दिया | महाराज तुकोजी राव होलकर-III की महारानी चन्द्रावतीबाई के देहांत के बाद सन 1926 ई० में खासगी जागीर की अधिकारिणी महाराजा सवाई यशवंत राव होलकर-II की पत्नी महारानी संयोगिताबाई बन गई |
खासगी ट्रस्ट का गठन
भारत सन 1947 ई० को स्वतंत्र हुआ और भारत संघ में सभी देशी रियासतों का विलीनीकरण हुआ | 16 जून 1948 ई० को अंतिम महाराजा सवाई यशवंत राव होलकर-II ने विधिवत होलकर राज्य भी भारत संघ में विलीन कर दिया | भारत सरकार और होलकर राज्य के महाराजा यशवंत राव होलकर के बीच एक समझौता हुआ कि भारत में होलकरों ने अनेक धार्मिक कार्य किये हैं और उनकी देखरेख की व्यवस्था अभी तक होलकर राज्य करता आया है और उसकी व्यवस्था होलकरों की खासगी जागीर से की जाती है | वह व्यवस्था यथावत चलती रहनी चाहिए | भारत सरकार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया |

विलीनीकरण के बाद मध्य भारत शासन काल में आयुक्त के अधीनस्थ माफ़ी अधिकारी द्वारा सभी मंदिर, धर्मशाला, कुंए, बाबड़ी, घाट, अन्नसत्र इत्यादि सम्पत्तियों की देखरेख करता था | जोकि पुरे भारत में बिखरी पड़ी थी | शासन के निदेश से दिनांक 4 जुलाई 1962 ई० को “खासगी (देवी अहिल्याबाई होलकर चैरिटीज ) ट्रस्ट” और “आलमपुर (मल्हार राव होलकर छत्री ) ट्रस्ट” का गठन किया गया और दिनांक 16 जुलाई 1962 ई० को सभी संस्थानों के भवन, सम्पत्तियों एवं कर्मचारियों का हस्तांतरण खासगी ट्रस्ट को कर दिया गया |
सभी धार्मिक कार्य भविष्य में यथावत चलते रहे | इसके लिए मध्य भारत निर्माण के समय भूतपूर्व इंदौर राज्य, मध्य भारत शासन एवं केन्द्रीय शासन के समझौते के अनुसार वर्ष 1947-48 ई० के बजट के अनुसार खासगी ट्रस्ट को प्रतिवर्ष रुपए 2,91,952 /- दिया जाएगा | मल्हार राव होलकर की छत्री के नाम आलमपुर से आय के बराबर प्रतिवर्ष आलमपुर ट्रस्ट को रूपये 69417-56 /- दिए जाएँगे |
खासगी ट्रस्ट और आलमपुर ट्रस्ट के ट्रस्टी इस प्रकार से होंगे :-
- श्रीमंत महारानी उषा राजे –प्रेसिडेंट (अंतिम महाराज यशवंत राव होलकर की पुत्री )
- नामित ट्रस्टी
- नामित ट्रस्टी
- भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित ट्रस्टी
- आयुक्त, इंदौर संभाग (मध्य प्रदेश शासन द्वारा नामित ट्रस्टी )
- सुप्रिन्टेंडेंट इंजीनियर (Superintendent Engineer), लोक निर्माण विभाग, भवन तथा पथ इंदौर ( मध्य प्रदेश शासन द्वारा नामित ट्रस्टी )
खासगी सम्पत्तियों की दुर्दशा
खासगी ट्रस्ट की व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहे, इसलिए ट्रस्टी बनाया गया था | परन्तु आज़ादी के कुछ वर्ष बाद से ही उन तमाम सम्पत्तियों, भवनों पर ग्रहण लगना शुरू हो गया था | जिनका निर्माण देवी अहिल्याबाई होलकर एवं होलकर राजाओं ने जन कल्याण के लिए करवाया था | उन संपत्तियों को उनके रखवालों ने ही बेचना शुरू कर दिया है | जब बाड ही खेत को खाने लग जाए तो उसका रखैया कौन रहेगा | देवी अहिल्याबाई होलकर ने अपने शासन काल में खासगी जागीर की आय से भारत वर्ष के कोने कोने में हजारों मंदिर, धर्मशालाएं, कुंए, बाबडियों, घाटों इत्यादि का निर्माण किया | उनके द्वारा स्थापित ज्यादातर स्मारक हिन्दुधर्म के श्रध्दा केन्द्रों पर ही बने हुए हैं | देवी अहिल्याबाई होलकर ने उन भवनों का निर्माण लोक कल्याण एवं धार्मिक उपयोग के लिए करवाया था | हिन्दुधर्म की पुन: स्थापना में देवी अहिल्याबाई होलकर ने मुख्य भूमिका निभाई थी | उसी धर्म के मानने वाले लोग उन स्मारकों को निजी सम्पत्ति समझ कर नष्ट कर रहे हैं | जबकि यह राष्ट्रीय धरोहर सम्पत्तियां हैं | अब कोई तीर्थ यात्री उन भवनों का उपयोग धर्मशाला के रूप में नहीं करता है |
कुप्रबंध के चलते उन भवनों के रखवाले उसका व्यवसाहिक रूप में प्रयोग कर रहे हैं | कहीं – कहीं तो उन स्मारकों को बेचा भी जा चुका है | अधिकतर स्मारकों में अवैध रूप से लोग निवास कर रहे हैं | उन भवनों में कुछ लोग किरायेदार बन कर आए और निजी सम्पत्ति समझकर उसके मालिक ही बन बैठे हैं | वर्तमान में हरिद्वार, वृन्दावन, पुष्कर, पंढरपुर, हातोद, देपालपुर, मंदसौर, मनासा, भानपुरा, नासिक, सोमनाथ, इत्यादि के अतिरिक्त महेश्वर व् इंदौर की सम्पत्तियों का भी यही हाल है | बस खासगी ट्रष्ट के रिकार्ड में ही उन भवनों का पता लगता है | खासगी ट्रष्ट की डीड में भी समय – समय पर परिवर्तन किया गया | सम्भवतः खासगी ट्रष्ट के पदाधिकारियों की मिलीभगत से भी यह गोरखधंधा चलता रहा हो | उन स्मारकों से कहीं-कहीं तो शिलापट भी हटा दिए गये हैं | अति तो तब हो जाती है कि देवी अहिल्याबाई होलकर पर आस्था, श्रध्दा रखने वालों को भी उन भवनों में उनकी जयन्तियां नहीं मनाने दी जाती है |वैसे से तो पूरे भारत में मंदिरों, धर्मशालाओं एवं अन्य सम्पत्तियों का यही हाल है | समय समय पर देवी अहिल्याबाई होलकर पर आस्था रखने वालें लोगों, समाज सेवकों ने उनकी मुक्ति के सतत प्रयास भी किये |
कुम्हेर में खंडेराव होलकर की छत्री
कुम्हेर, जिला- भरतपुर,राजस्थान में देवी अहिल्याबाई होलकर के पति युवराज खंडेराव होलकर की छत्री बनी हुई है | सन 17 मार्च 1754 ई० को सूरजमल जाट से युद्ध के दौरान खंडेराव होलकर वीरगति को प्राप्त हुए थे | अपने पति की यादगार में देवी अहिल्याबाई होलकर ने गांगरसोली गावं, कुम्हेर में एक छत्री का निर्माण करवाया था और उसमें अपने पति की मूर्ति भी स्थापित करवाई थी तथा एक विशाल कुआं का भी निर्माण किया गया था |
उस छत्री के नाम पर 22 बीघा जमींन भी है | वर्तमान में अन्य लोगों ने उस जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा है | गांगरसोली, कुम्हेर, भरतपुर के धनगर समाज के लोगों ने मराठा सेवा समिति बनाकर उसका केस भी लड़ा | निचली अदालत में जीत जाने के बाद अजमेर के रेवन्यू के बाद हाई कोर्ट, जयपुर मामला लम्बित पड़ा है | छत्री की हालत जर्जर हो चुकी है | यदि समय रहते उसकी देखभाल नहीं की गई तो खंडेराव होलकर की स्मृति में बनी यह छत्री हमेशा- हमेशा के लिए नष्ट हो जाएगी |
वृन्दावन (मथुरा)
कुप्रबंध के चलते वृन्दावन में देवी अहिल्याबाई होलकर ने चैन बिहारी मंदिर, कालिया देह घाट, चीर घाट व अन्य घाट, धर्मशाला, लाल पत्थर की एक बाबड़ी बनवाई | जिसमें 57 सीढियाँ बनी हुई थी और अन्नक्षेत्र भी स्थापित किया था | वहां के पुजारी ने ही बाबड़ी के आसपास की जमीन को बेच डाला | वहां निवास करने वाले धनगर समाज को जब यह पता लगा तो उन्होंने धनगर मराठा समाज के बैनर तले उसका केस इलाहाबाद तक लड़ा | वहां धनाभाव के कारण केस बीच में लम्बित पड़ा रहा |
हरिद्वार में कुशावर्त घाट
देवी अहिल्याबाई होलकर ने सन 1767 ई० के बाद हरिद्वार के धार्मिक महत्व को समझते हुए कुशावर्त घाट, होलकर बाड़ा, उसमें शिव मंदिर, गऊशाला को बनवाया था |

वर्तमान में जहाँ कुशावर्त घाट है, वह स्थान पौराणिक धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है | कहा जाता है कि वहां कुशा(घास) अत्याधिक थी और उसी स्थान पर दत्तात्रेय भगवान् ने तपस्या की थी | एक बार गंगा मैया उनका कमंडल बहा कर ले गई | गंगा मैया को महसूस हुआ की यह तो गलत हो गया | इसलिए गंगा मैया दुबारा लौट कर घूमकर(वृताकार) होकर वापिस आई और दत्तात्रेय जी को नमन करते हुए उनका कमण्डल वापिस देकर चली गई | इसीलिए उस स्थान को कुशावर्त कहा जाने लगा | देवी अहिल्याबाई होलकर ने अपने शासन काल में उस स्थान पर होलकर बाड़ा, मंदिर, विशाल घाट, गौशाला बनवाकर, उसका नाम कुशावर्त घाट रखा | कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के पश्चात् बिदुर जी ने इसी स्थान पर आकर मृतकों का श्राद्ध – पिंडदान किया था | वर्तमान में भी कुशावर्त घाट पर लोग पिंडदान करने आते हैं |
कुप्रबंध के चलते कुशावर्त घाट का भी वही हाल हुआ जो सभी स्थानों का हो रहा है | होलकर बाड़ा के पूर्व में गंगा जी व प्लेटफार्म, पश्चिम को आम रास्ता, दक्षिण को कुशा घाट का प्लेटफार्म, उत्तर को गौ घाट की सड़क है | गली के साथ लगती होलकर बाड़ा की दीवारों को तोड़कर समय -समय पर अनेक दुकानें बना दी गई है | उन दीवारों पर होलकर स्टेट के पत्थर भी लगे हुए थे | वे अब हटा दिए गये हैं | यह केस प्रकाश में तब आया जब दिनाकं 2008 के लगभग खासगी ट्रष्ट ने राघवेन्द्र सिखोला s/o सीता राम शर्मा को लगभग 55 लाख रुपए में बेच दिया गया | जबकि बाज़ार मूल्य उस सम्पत्ति का लगभग सौ से डेढ़ सौ करोड़ है |
हाई कोर्ट, इंदौर का फैसला
उस पर देवी अहिल्याबाई होलकर पर आस्था रखने वाले लोगों ने एतराज जताया और हरिद्वार से सम्बन्धित जिला अधिकारी से लेकर तमाम तरह के सामाजिक, राजनैतिक, सरकारों व धार्मिक संगठनों से कुशावर्त घाट के पवित्र स्थान को बचाने की अपील की | सुप्रीम कोर्ट से ले लेकर हाई कोर्ट नैनीताल तक अर्जी लगाई | न्यायालयों ने मध्य प्रदेश का मामला होने के कारण वहां जाने की सलाह दी | अंत में कुशावर्त घाट का मामला हाई कोर्ट मध्य प्रदेश में पंहुचा | हाई कोर्ट इंदौर ने दिनांक 5 अक्तूबर, 2020 को खासगी ट्रष्ट की सम्पत्तियों को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया | उसमें माननीय हाई कोर्ट द्वारा आदेश दिया गया कि कुशावर्त घाट, हरिद्वार ही नहीं, बल्कि खासगी ट्रष्ट की सभी सम्पत्तियों पर लागू होगा | हाई कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि खासगी ट्रष्ट की सभी संपत्तियों को पुराने स्वरूप में में लाने का प्रयास करें | साथ ही न्यालय ने संज्ञान लेते हुए कहा कि पुष्कर, हरिद्वार, नासिक, रामेश्वर इत्यादि में अनेक सम्पत्तियों को बेच दिया गया है और यह बिक्री का सिलसिला लगभग सन 1983 से 2008 ई० के बीच हुआ है | यह शासकीय अधिकारियों की मिलीभगत से बिक्री हुई हैं | होलकर राजवंश की सम्पत्ति मध्य प्रदेश शासन की सम्पत्ति है, ना कि खासगी ट्रष्ट की निजी | खासगी ट्रष्ट पर केवल उसकी देखरेख की जिम्मेदारी थी | उन्होंने भी ऐसा कार्य किया है | लिहाजा उन सभी पर भी कठोर कारवाही होनी चाहिए |
खासगी ट्रष्ट की सम्पत्तियों पर अवैध कब्जे
इस फैसले के साथ ही देवी अहिल्याबाई होलकर द्वारा बनवाई गई अनेक सम्पत्तियों का पता लग रहा है, जो अवैध कब्जे, अवैध तरीके से बेच दी गई हैं| जैसे पंढरपुर, महाराष्ट्र में होलकर बाड़ा, श्रीराम मंदिर, तुलसी बाग पर लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है | अम्बड गाँव में 50 एकड़ भूमि पर कब्जा हो चुका है | भानपुरा में 150 हेक्टेयर जमीन पर अवैध कब्जा हो चुका है | होलकरों के होल गावं में 130 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा हो चुका है | इंदौर में 25 मंदिर सहित छत्री बाग़, फूटी कोठी(शेरपुर पैलेस), शिव विलास पैलेस इत्यादि अनेक सम्पत्तियों पर अवैध कब्जे हो चुके हैं या बेच दिए गये हैं | रामेश्वर में 13 एकड़ जमीन पर अवैध तरीके से अवैध निर्माण हो चुके हैं | जेजुरी, पुणे में जमीन पर अवैध कब्जा हो चुका है और मल्हार राव होलकर छत्री के प्रांगण में अवैध स्कूल चल रहा है | देहरादून में पूरी धर्मशाला पर शरणार्थी बनकर आये लोगों ने अवैध कब्जा कर लिया है | सम्भल में एकमात्र कलिकेश्वर मंदिर को छोड़कर उसकी सारी जमीन पर अवैध कब्जा हो चुका है | इसी तरह हातोद, देव गुराडिया, तिल्लौर खुर्द केवड़िया, पिपलदा, सांवेर, इत्यादि में मंदिरों के साथ -साथ तीन सौ एकड़ कृषि जमीन पर अवैध तरीके से कब्जा हो चुका है | इंदौर, मंदसौर, नीमच, खरगोन जिले में स्थित सम्पत्तियों पर कब्जे हो चुके हैं | जो लगभग एक हज़ार एकड़ जमीन है |
यही हाल आलमपुर ट्रष्ट का है | जिसे मल्हार राव होलकर की छत्री के रख रखाव के लिए बनाया गया था | उनका भी बुरा हाल है | वहाँ भी अनेक जमीन बेच दी गई है | प्रशासन की उपेक्षा की शिकार,यह छत्री नक्काशी में ताज महल की तुलना करती है |
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा खासगी ट्रष्ट की सम्पत्तियों पर कार्रवाई
इंदौर, हाई कोर्ट के आदेश के बाद 26 राज्यों की 250 सम्पत्तियों पर अब मध्य प्रदेश प्रशासन कानूनी रूप से आधिपत्य हो गया है | जबकि खासगी ट्रष्ट के पास अब केवल 90 सम्पत्तियां ही बची हैं | मध्य प्रदेश प्रशासन इस पर सक्रिय हो गई है और ताबड़तोड़ खासगी ट्रष्ट की सम्पत्तियों पर निरीक्षण कर कार्रवाई कर रही है तथा अपने अधिकार में लेती जा रही है | प्रशासन द्वारा कई सम्पत्तियों को सील भी किया जा चुका है | इसके विरुद्ध खासगी ट्रष्ट सुप्रीम कोर्ट में अपील कर चुका और उसकी अपील स्वीकार की जा चुकी है |
खासगी जागीर लूट का माल नहीं
खासगी ट्रष्ट के कुशावर्त घाट, हरिद्वार के प्रकरण से अनेक लोगों के अपने अपने इस बारे में मत है | एक समाचार पत्र ने तो यहाँ तक लिख डाला कि “ 285 साल पहले लूट और अपहरण से मिली दौलत कहलाई खासगी जागीर |” होलकर राजवंश की खासगी जागीर कोई लूट का दौलत नहीं है | कुछ लोग पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर अवसर देखकर होलकरों पर आरोप लगाने से भी नहीं चूकते | शायद उन्हें इतिहास की पूर्ण जानकारी नहीं है |
जब मल्हार राव होलकर का मालवा पर अधिकार हो गया तो शाहू महाराज के आदेश के बाद उन्हें कुछ जागीर निजी खर्च के लिए दी थी,वही खासगी जागीर कहलाई | उसका दौलत शाही जागीर से कोई सम्बन्ध नहीं था | दौलत शाही सरंजामी जागीर सैनिक व्यवस्था के लिए होती थी और खासगी जागीर अलग |दोनों की प्रशासनिक व्यवस्था अलग – अलग होती थी | खासगी जागीर पर होलकर राज परिवार की ज्येष्ठ रानी का अधिकार होता था और वह उसे खर्च करती थीं | ऐसा कहने वालों ने अपनी तुच्छ मानसिकता का परिचय दिया है और महान मराठा महापुरुषों छत्रपति शिवाजी महराज, बाजीराव पेशवा, मल्हार राव होलकर, महादजी सिंधिया , देवी अहिल्याबाई होलकर इत्यादि पर प्रश्न चिन्ह लगाने का दूषित प्रयास किया है | कौन सा ऐसा भारत में राजा – महाराजा हुआ है, जिसने सारी धन सम्पदा जनता जनार्दन के कल्याणकारी के लिए खर्च कर दी ? कौन सा ऐसा राजा – रानी हुआ है, जिसने भारत में विदेशी हमलावर लुटेरों द्वारा तोड़े गये हजारों मंदिरों का जीर्णोद्धार किया तथा हज़ारों मंदिर, धर्मशाला, कुएं, बाबड़ी, घाट का निर्माण किया हो ? कौन सा ऐसा धन्ना सेठ हुआ है, जिसने मानव तो मानव और पशु, पक्षियों का ख्याल रखा हो ? कौन सा ऐसा हुआ है ,जिसने राहगीरों के लिए फलदार वृक्ष लगवाएं हों और अन्नसत्र व् सदाव्रत स्थापित किये हों ? केवल एकमात्र देवी अहिल्याबाई होलकर ने ऐसा किया | उन्होंने 4 धाम, 7 पुरी व् 43 धर्म तीर्थों को अनुदान दिया |
होलकरों का राज्य मालवा का सतयुग कहलाता था और उनके रज्य की सीमाएं हिंदू धर्म की चौकियां कहलाती थीं | होलकरों के रज्य में एक कहावत बड़ी मशहूर थी :- मालव माटी गहर गंभीर ,पग पग रोटी , डग डग नीर |
एक और कहावत प्रसिद्ध थी :- होल्करांची टांकी अर्थात होलकरों के शासन काल में बराबर छेनी हथौड़ा चलता रहा | उनके धार्मिक, प्रजाहित के कल्याणकारी कार्यों के कारण ही रानी अहिल्याबाई को देवीश्री, मातोश्री, पुण्यश्लोक:, गंगाजल निर्मल,माँ साहिब, लोकमाता, मातेश्वरी जैसी उपाधियों से अलंकृत किया गया |
हमें यद् रखना चाहिए कि देश को विदेशी हमलावरों ने अनेक बार लूटा और मंदिर विध्वंश, बलात धर्म परिवर्तन, बलात्कार, नर संहार किये गये | फिर अनेक बार मुग़ल काल में जमकर लूटा गया और बलात्कार, नर संहार हुए | भारत की निरीह जनता उनके जुल्मों से कराह उठी थी | उनका कोई रखैया नहीं था | जिन सूर्यवंशी और चंद्रवंशी क्षत्रियों पर देश की रक्षा का भार था, उन्होंने उन आतताइयों के आगे घुटने टेक दिये और उनसे अपनी रिश्तेदारियां कायम कर पारिवारिक सम्बन्ध बना लिये थे | जब बाड ही खेत को खाने लग जाये तो क्या होगा ? वे क्षत्रिय उनके बड़े -बड़े सिपसालार बन कर भारत निरीह जनता को लूट- लूट कर उनके खजाने भरने लगे और बादशाह, सुलतान और नवाबों से ईनाम, ओहदे व जागीरें पाने लगे | उनके अतिरिक्त आम हिन्दू जनता को हिन्दू होने का टैक्स देना पड़ता था | यह सभी लूट खसौट वही लोग ही करते थें |
जब मराठा शक्ति का उदय हुआ तो उन्होंने मुगलों, नवाबों व सुल्तानों और उनके हिन्दू रिश्तेदारों को धूल चटा दी तथा मराठा साम्राज्य स्थापित किया था | छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद मराठा सेना नायकों बाजीराव पेशवा, मल्हार राव होलकर, राणोजी शिंदे इत्यादि ने महाराष्ट्र से निकल कर मध्य भारत, बुंदेलखंड, आगरा अवध, राजपूताना और पंजाब(दिल्ली ,हरियाणा, पंजाब, लाहौर आदि) को विजित किया और उन्होंने वहां के राजा- महाराजों, नवाबों सुल्तानों से चौथ वसूलते थे | मरहठे को चौथ(कर) नहीं देने पर मराठे उनसे जबरदस्ती भी रुपया वसूल करते थे | यह लूट नहीं थी | जिन्होंने भारत को वर्षों तक लूटा, अगर मराठों ने उन लूटेरों को लूटा तो यह लूट नहीं, बल्कि उनके पापों का उन्हें दंड दिया गया था |
इसे हम इस तरह समझ सकते हैं | जैसे भारत सरकार का एक नियम है कि नागरिक को प्रतिवर्ष इनकम टैक्स, सेल टैक्स, हाउस टैक्स, लगान जैसे टैक्स देना अनिवार्य होता है | यदि कोई व्यक्ति या संस्थान टैक्स नहीं देता है तो सरकार छापा मार कर उस पर दंड लगाती है और अपना रुपया जबरदस्ती वसूल करती है | तो क्या ? हम सरकार को अपहरण और लूट का राज्य कह सकते है ? शायद कदापि नहीं ? पूर्व के लुटेरों ने लूट -लूट कर मुगलों के खजाने भरे थे | उनसे जनता को क्या लाभ मिला | भुखमरी, गरीबी, प्रताड़ना, नारकीय जीवन आदि मिला | जबकि होलकर राजवंश ने सदा जनता जनार्दन के लिए अपने खजानों के मुहं खोल कर रखें थे | उन्होंने अपनी खासगी जागीर से धर्मार्थ के कार्य पूरे भारत में किये | ऐसा एक भी उदाहरण अन्यत्र नहीं मिलता | जबकि वतमान में भी होलकरों के राज्य के उदाहरण दिए जाते है |
कार्रवाई का विरोध
श्री क्षत्रिय धनगर सेवा संघ, इंदौर ने सरकार की खासगी ट्रष्ट पर कार्रवाई का विरोध किया है | खासगी ट्रष्ट की सम्पत्तियों को बेचने में ट्रष्टी ही नहीं, बल्कि सरकार की और से मनोनीत अधिकारी भी कम जिम्मेदार नहीं हैं | उनकी मिलीभगत से सम्पत्तियों को लगातार बेचने का गोरख धन्धा चलता रहा | आखिर सरकार की ओर से नामित व्यक्ति कैसे खासगी की सम्पत्तियों को बेचने की स्वीकृति प्रदान करते रहे | यह तो सीधे सीधे भ्रष्टाचार का मामला बनता है | दूसरी और आनन -फानन में मध्य प्रदेश शासन द्वरा ताबड़तोड़ खासगी ट्रष्ट की सम्पत्तियों को कब्जाने की कार्रवाई चालू है | यह क्या गारंटी है कि खासगी की सम्पत्ति सरकार के हाथों में जाने के बाद सुरक्षित रह पाएगी | क्योंकि अभी भी तो सरकार के तीन बड़े सरकारी अधिकारी खासगी ट्रष्ट में इसलिए रखे गये थे कि वे व्यवस्था सुचारू रूप से करें | परन्तु हुआ उसका उल्टा | सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि खासगी ट्रष्ट सुचारू एवं सही ढंग से कार्य करें | साथ ही उनके ऊपर भी एक ऐसी कमेठी होनी चाहिए जो उनके कार्य पर निगरानी करता रहे और वे लोग सीधे मध्य प्रदेश शासन और केन्द्रीय सरकार को उसकी रिपोर्ट भेजे और उसे प्रतिवर्ष सार्वजनिक किया जाता रहे | उसके साथ ही धनगर समाज के व्यक्ति को भी ट्रष्टी नियुक्त किया जाय | ट्रष्ट में एक ही परिवार के सदस्यों को ट्रष्टी बनाने पर रोक होनी चाहिए | जिससे भ्रस्टाचार को रोका जा सकता है है | देखने में यह आया है कि अभी तक खासगी ट्रष्ट में ऐसे लोग ट्रष्टी थे (सौ० महारानी उषा राजे को छोड़कर) जिन्हें संभवत: देवी अहिल्याबाई होलकर द्वारा स्थापित स्मारकों के प्रति आगाध श्रध्दा नहीं हो | इसीलिए ऐसे कार्यों को भ्रष्ट लोग अंजाम देते रहे | जहाँ तक महारानी उषा राजे का सवाल है, सम्भवत: उन्हें अँधेरे में रखकर यह सब गोरखधंधा चलता रहा |
खासगी सम्पत्तियों की बरबादी का कारण
दूसरी और इसमें मुझे कुछ ऐतिहासिक कारण भी नज़र आ रहे हैं | महाराजा यशवंत राव होलकर-II की भारतीय पत्नी रानी संयोगिता राजे से राजकन्या उषा राजे हुई | महाराजा यशवंत राव होलकर ने एक विदेशी महिला युफेमिया वाट से हिन्दू रीति रिवाज से विवाह किया | उस समय उनको अंग्रेजों ने बता दिया था कि उनसे उत्त्पन्न संतान का राज्य पर कोई अधिकार नहीं होगा | युफेमिया वाट से राजकुमार शिवाजी राव होलकर(रिचर्ड) का जन्म हुआ | देश आज़ाद होने की प्रक्रिया चल रही थी, उधर महाराजा यशवंत राव होलकर अपने एकमात्र पुत्र शिवाजी राव होकर को उतराधिकारी बनाना चाहते थे |

अंगेजी सरकार के प्रिंस रिचर्ड ने शिवाजी राव होलकर(रिचर्ड) के उत्तराधिकार के दावे को खारिज कर दिया था| अंग्रेजों का अपना लेप्स कानून था | जिसके तहत किसी भी राज्य को हडप लेते थे | ऐसा उन्होंने कि झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ किया था | उनके गोद लिए हुए पुत्र को मान्यता नहीं दी थी | दूसरी और होलकर परिवार के पारिवारिक सदस्य यह चाहते थे कि महाराजा विदेशी महिला से उत्त्पन्न पुत्र को उत्तराधिकारी नहीं बना सकते | इसलिए हिन्दू परम्पराओं के अनुसार महाराजा अपनी पुत्री उषा राजे को भी उत्तराधिकारी नहीं बना सकते |लिहाजा उन्हें होलकर राज परिवार में से किसी लडके को गोद लेकर उत्तराधिकारी घोषित करना चाहिए | उस तरह से यह अधिकार महाराजा शिवाजी राव होलकर के भाई यशवंत राव होलकर के पुत्र गौतम राव(तात्या साहिब) के पुत्र मल्हार राव होलकर का बनता था | यह होलकर परिवार की अपनी दलीलें थीं | परन्तु महाराजा यशवंत राव होलकर II भी बड़े पशोपेश में थे कि वह क्या करें ?

उसी बीच सन 1947 ई० को देश स्वतंत्र हो गया | महाराजा यशवंत राव होलकर ने पंडित जवाहर लाल नेहरु और सरदार वल्लभ भी पटेल से कहा कि मैं अपने पुत्र राजकुमार शिवाजी राव होलकर(रिचर्ड) को अपना उत्तराधिकरी घोषित करना चाहता हूँ | नेहरु और पटेल ने महाराजा यशवंत रव होलकर को सलाह दी कि आप विदेशी महिला से उत्त्पन्न पुत्र को उत्तराधिकारी नहीं बना सकते | जनता इसे स्वीकार नहीं करेगी और विद्रोह हो सकता है | फिर नेहरु ने सलाह दी कि अपनी पुत्री राजकुमारी उषा राजे को उत्तराधिकारी बना दे | उधर सन 1950 ई० में भारत सरकार ने भी उषा राजे को उत्तराधिकारी मान्य कर दिया | महाराजा यशवंत राव होलकर ने भी अपनी पुत्री उषा राजे को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया | फिर क्या था कि होलकर कुटुंब में बवाल मच गया | उन्होंने कहा कि यह हिन्दू परम्परों के विरुद्ध है | उसी समय “देवी अहिल्या गद्दी रक्षा समिति” बनाई गई और गद्दी के लिए संघर्ष किया गया | समाज ने भी होलकर महाराज के उस निर्णय का विरोध किया | एक प्रतिनिधि मण्डल भारत सरकार से मिला और उन्होंने महाराजा द्वारा अपनी पुत्री को उत्तराधिकारी बनाने का विरोध जताया | सन 1956 ई० में राजकुमारी उषा राजे होलकर ने सतीश चन्द्र मल्होत्रा से विवाह कर लिया | इससे महाराजा को सदमा लगा और 5 दिसम्बर 1961 ई० में महाराजा यशवंत राव होलकर का देहांत हो गया | जनवरी 1962 ई० गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने एक आदेश भी उषा राजे के उत्तराधिकार के सम्बन्ध में निकाल दिया | फिर समाज का प्रतिनिधि मंडल गृह मंत्रालय से जाकर मिला और उन्होंने कहा कि महाराजा द्वारा अपनी पुत्री को उत्तराधिकारी बनाना हिन्दू परमपराओं के विरुद्ध है | लिहाजा होलकर वंश के किसी लडके को उत्तराधिकारी घोषित किया जाए और अब उषा राजे शादी के बाद होलकर परिवार की भी नहीं रही | परन्तु सरकार ने इसमें कुछ रूचि नहीं दिखलाई | राज्य गद्दी को लेकर संभावित वारिस मल्हार राव होलकर के उत्तराधिकार को लेकर सन 1973 ई० को जिला कोर्ट में भी गये | सन 2003 में मल्हार राव होलकर की मृत्यु के बाद केस ख़ारिज हो गया |
यहाँ एक बात समझने की यह है की महारानी उषा राजे के देहांत के बाद यह खिताब होलकर राज परिवार के पास चला जाएगा और साथ ही खासगी ट्रष्ट का अधिकार भी ? महारानी बनने के साथ ही उषा राजे खासगी जागीर की भी मालिक हो गई | सब समय का फेर होता है | महारानी उषा राजे ने सतीश चन्द्र मल्होत्रा से विवाह कर लिया था | नेहरु और पटेल की कारस्तानी का खामियाजा होलकर राज्य को उठाना पड़ा | जिसे उत्तराधिकारी बनना चाहिए था, उसे बनाने से रोक दिया गया था |
महारानी बनते ही होलकर महाराज की सभी सम्पत्तियों का अधिकार भी महारानी उषा राजे को मिल गये | यह सभी जानते थे कि महारानी उषा राजे के बाद यह अधिकार उनके पुत्रों के पास नहीं रहेगा | बल्कि होलकर राज परिवार पर स्वत: ही चला जाएगा | सर दादा काशीराव होलकर हवेली वाले होलकर राज परिवार के सदस्य श्री प्रताप सिंह राव होलकर जी ने अपनी पुस्तक “ देवी अहिल्याबाई होलकर गद्दी रक्षा समिति” में इस बात की और इशारा करते हुए संशय व्यक्त किया गया है | यदि यह सही है तो क्या इसी कारण खासगी की सम्पत्तियों का विक्रय तेजी से हो रहा है और सम्पत्तियों से आय का स्थानान्तरण अन्य जगहों पर होता जा रहा है | जब तक यह ख़िताब अधिकार होलकर राज परिवार के किसी सदस्य को मिलेगा, तब तक ज्यादातर खासगी की सम्पत्तियां विक्रय हो चुकी होंगी और भविष्य में उत्तराधिकारी बनने वाले महाराज के हाथ खाली होंगे तथा उनके पास केवल खिताब ही बचेगा |

इसलिए केंद्र व् मध्य प्रदेश सरकार को खासगी ट्रष्ट के अस्तित्व को बनाए रखना चाहिए और जब तक महारानी उषा राजे जीवित हैं तब तक उनके हाथों को मजबूत करते हुए ईमानदार सरकारी अधिकारी और साथ ही धनगर समाज के व्यक्तियों को ट्रष्ट में शामिल किया जाना चाहिए | जिससे देवी अहिल्याबाई होलकर द्वारा निर्मित राष्ट्र की धरोहर मंदिर, धर्मशाला, कुएं, बाबड़ी, घाट इत्यादि सुरक्षित रहे | क्योंकि यह देश व धर्म उनका ऋणी है | क्या हम उनकी विरासत को ऐसे ही नष्ट होने देंगे | अभी भी समय है यदि उन भवनों सम्पत्तियों का प्रबंध सुयोग्य हाथों में नहीं सौपा गया और उन भवनों को खाली नहीं करवाया गया तो भारतवासी यह भूल जाएँगे कि कभी देवी अहिल्याबाई होलकर ने हिन्दू धर्म की पुन: स्थापना हेतु यह भवन बनवाये थे !!!!