शिवाजी की 391वीं(19 फरवरी 1630 ई०)जयंती

क्या छत्रपति शिवाजी राजपूत थे ?

   छत्रपति शिवाजी महाराज ने स्वराज्य के लिए अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया | उन्होंने जामिल औरंगजेब और अन्य मुस्लिम सुल्तानों को धूल  चटा दी | जो हिन्दू अपने को हिन्दू कहलाने से भयभीत रहता था | शिवाजी महाराज ने निरीह हिन्दुओं में एक नवशक्ति का संचार किया और हिन्दू होना एक गौरव की बात है, यह सन्देश हिन्दू जनता में पहुँचाने में शिवाजी महाराज कामयाब रहे | हिन्दू लोग भी शिवाजी महाराज को कोई देव पुरुष समझते थे और उनके लिए अपने प्राणों की बाजी लगाने से भी नहीं चूकते थे | शिवाजी महाराज ने दबे कुचले चरवाहों और किसानों में स्वराज्य का ऐसा मंत्र फूंका कि उन्होंने हल और लाठी की जगह भाले और तलवारें उठा कर अत्याचारियों का प्रतिकार करना शुरू कर दिया | फिर उनके आगे कोई अत्याचारी टिक नहीं पाया | चाहे वे मुग़ल, पठान, राजपूत आदि कोई भी रहा हो | पूर्व काल से स्थापित राजपूतों ने मराठों को कभी स्वीकार नहीं किया और वे स्वयं मुगलों के साथ मिलकर उनके विरुद्ध कार्य करते रहे | यह इतिहास में दर्ज है |

    वर्तमान में अनेक लेखक छत्रपति शिवाजी महाराज को राजपूतों से जोड़ते हैं |  जोकि सही नहीं है | क्योंकि उन्हें केवल शुद्ध  राजनैतिक कारणों से जोड़ा गया था | जबकि अनेक इतिहासकारों का मत है कि छत्रपति शिवाजी महाराज गवली – धनगर (Shepherd) जाति के थे। कहा जाता है कि कोल्हापुर के पास जो मराठे निवास करते थे, उनमें अधिकांश पशुधन रखते थे। उन्हीं मराठा धनगरों (Shepherd) में से अनेक कुशल सैनिक सिद्ध हुए ।”(1)  कई इतिहासकारों का मानना है कि छत्रपति शिवाजी पशुधन पालने वाले गवली धनगर थे।(2)  शब्द का भविष्य में राजेन्द्र यादव ने छत्रपति शिवाजी को गडरिया (Shepherd)  जाति का लिखा है।(3) कुछ लोगों ने शिवाजी को कुनबी भी लिखा है |

    महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने  शिवाजी का राजतिलक करने से इनकार :-

   मराठी के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. रामचनद्र चिन्तामन ढेरे के अनुसार छात्रपति शिवाजी के पूर्वज बलिया अथवा बलिअप्पा मूल रूप से सोरातूर, गड़ग के समीप उत्तरी कर्नाटक के मूल निवासी थे । वह बिल्कुल भी मूलरूप से राजस्थान के सिसोदिया राजपूत नहीं थे, बल्कि वह गवली थे।

    गोविंद सखाराम सरदेसाई, जदुनाथ सरकार जैसे अनेक प्रसिद्ध इतिहासकारों ने लिखा है कि जब शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक करवाने का अवसर आया तो महाराष्ट्र के ब्राह्मणों ने उनका राज्याभिषेक करने से साफ इंकार कर दिया था । उनका कहना था कि शिवाजी क्षत्रिय नहीं हैं, इसलिए वह राज्याभिषेक के अधिकारी नहीं हैं । बड़ी गंभीर समस्या देखकर धन की लालच देकर काशी के गंगा भट नामक ब्राह्मण से शिवाजी महाराज को क्षत्रिय सिद्ध करने के लिए झूठी वंशावली लिखवाई गई और उनका सम्बंध सिसौदिया राजपूतों से जोड़ा गया, जोकि इतिहास में सर्वविदित है।” इतिहासकार राजवाडे लिखते है कि शिवाजी की क्षत्रिय उत्पत्ति शुद्ध राजनीतिक कारणों से मानी गई है । इतिहासकार यदुनाथ सरकार के अनुसार उन दिनों समाज भौंसले वंश को लोग शूद्र ही मानते थे । बालाजी अबजी तथा शिवाजी के अन्य अभिकर्ताओं ने उनकी झूठी वंशावली गढी थी । किंकेड और पारस्निस का यह कथन कि राजा शिवाजी कि निसंदेह राजपूत उत्पात्ति थीं, निराधार है । ००० काशी से इस अभिषेक में कृष्णा जी अनन्त सभासद के अनुसार गांगा  भट नामक ब्राह्मण  को सात करोड़ दस लाख रूपये दिये गये। उसने कहा शिवाजी के पुरखे क्षत्रियों का आचरण त्याग कर पतित हो गए थे। इसलिए शिवाजी ने प्रायश्चित किया और गांगा भट ने उन्हें जनेऊ पहना कर क्षत्रिय बनाया । ००० स्वर्ण तुला दान से तथा अपने धर्म के नियमों के अनुसार अनेक दान देने से शिवाजी को राजपूतों में एक ऊँची श्रेणी में रखने का प्रयास किया और ब्राह्मण उनको धन की लालच में क्षत्रिय सिद्ध करने का छद्म किया । उन्हें बढ़ी चढ़ी उपाधियों से विभूषित किया गया । जैसे क्षत्रिय कुलावंतस, श्री राजाशिव, छत्रपति ।”(4) अनेक इतिहासकार तो यहाँ तक लिखते हैं कि गांगा भट ने शिवाजी का राजतिलक अपने पैर के अंगूठे से किया था |

 डॉ. ढेरे के अनुसार, भौसले (Bhosale) शब्द होयसला (Hoysala) का अपभ्रंश है । होयसला वंश ने कर्नाटक में राज्य किया था और वे यदुवंशी थे। कर्नाटक के एक अन्य प्रसिद्ध कन्नड़ इतिहासकार सराजू काटकर ने भी अपनी पुस्तक ‘शिवाजी मूल कन्नड़ नेला” में भी उन्हें गोल्ला बताते हुए उपरोक्त बातों का उल्लेख किया है । दक्षिण भारत के कुरूबा धनगरों में गोल्ला उपजाति होती है। उसे ही महाराष्ट्र में गवली कहा जाता है । जो महाराष्ट्र के धनगरों की एक उपजाति है ।”(5)   दक्षिण भारत के धनगर कुरूबाओं में होयसाला राजवंश हुआ है।

    अतः अनेक प्रमाणों एवं शोध से यह सिद्ध हो चुका है कि छत्रपति शिवाजी महाराज कोई और नहीं बल्कि गवली (धनगर) थे। इसी कारण ‘छत्रपति शिवाजी के विश्वास मावल सैनिकों में अधिकांश धनगर जाति के वीर योद्धा थे, जो शिवाजी महाराज की सेना की रीढ़ कहलाते थे।”(6)

   राजपूत मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा शिवाजी के विरुद्ध कार्य करना  :-

      इस बात की पुष्टि इस घटना से समझी जा सकती है। “जयपुर के मुगल सेनापति  मिर्जा राजा सिंह ने शिवाजी के राज्याभिषेक का विरोध और महाराष्ट्र के ब्राह्मणों  ने भी विरोध किया था तथा शिवाजी की पराजय व जयसिंह की जीत के

ब्राह्मणों ने “कोटी चंडी यज्ञ” किया था । ००० कोटी चंडी यज्ञ के साथ – साथ ग्यारह करोड़ लिंग अनुष्ठान, इच्छापूर्ति बगलामुखी कालरात्र जप का चार सौ ब्राह्मणों ने अनुष्ठान किया ।(7)  शिवाजी महाराज ने मिर्जा जयसिंह को बहुत समझाने की कोशिश की | आप एक हिन्दू हैं और औरंगजेब एक धर्मांध व्यक्ति है | हम और आप मिलकर उसका प्रतिकार करेंगे | परन्तु जयसिंह ने शिवाजी के प्रस्ताव को नकार दिया | जबकि शिवाजी महाराज ने मिर्जा राजा जयसिंह को पत्र लिखा था |  यहाँ उसका सारांश यह है | उसमें शिवाजी ने जयसिंह को कहा हे सरदारों के सरदार , राजाओं के राजा | बाबर के वंशज प्रबल हो रहे हैं | तू मुझ पर आक्रमण करने और दक्षिण विजय करने आ रहा है | तू हिन्दुओं के रक्त से यशस्वी होना चाहता है |……तू औरंगजेब की तरफ से लड़ने आ रहा है | देख दोनों ओर से हिन्दुओं की हानि होगी ……..जब अफजल खां और शाहिस्त खां जैसा कोई मुस्लिम  नहीं बचा तो उसने एक चाल के तहत तुझे भेजा है | जिससे कोई ताकतवर हिन्दू नहीं बचे | दो सिंह लड़कर शांत हो जाए और गीदड़ जंगल का सिंह बन जाए ….. यह बात तेरे भेजे में क्यों नहीं बैठती | ……यदि तेरी तलवार में पानी और घोड़े में दम है तो तुझको धर्म के शत्रु (औरंगजेब ) पर हमला कर | यदि तू अलसी क्षत्रिय है तो इस्लाम को जड से उखाड़ डाल |……. तू (जयसिंह ),यशवंतसिंह(जोधपुर),राणा (उदयपुर) मिल जाओ और उस कपटी औरंगजेब के फन को कुचल डालो |……. मैं दक्षिण में दो मुस्लिम रियासतों को अपने भालों वाले सैनिकों को साथ लेकर से धूल चटा दूंगा | …..फिर हम मिलकर सदा के लिए मुगलों समाप्त कर देंगे |”

  राजपूतों ने कभी मराठो को क्षत्रिय नहीं समझा :-

    शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी, 1630 ई० में हुआ था। उनके पिता शाहजी बीजापुर के नवाब के उच्च पदाधिकारी थे और पूना व बैंगलोर के हाकिम थे। छत्रपति शिवाजी महाराज ने सन् 1664 ई० अपना राज्याभिषेक कर हिन्दू स्वराज्य की स्थापना की। उन्होंने अपनी राजधानी रायगढ़ बनाई । यद्यपि  वर्तमान में राजपूत, शिवाजी महाराज को अपने से जोड़ रहे हैं । परन्तु सोचने का विषय यह है कि औरंगजेब से टककर लेने वाले शिवाजी महाराज के नाम से राजपूत उनकी हिन्दुत्व की भावना और चरित्र तथा जाति से अन्जान नहीं थे। ब्राह्मणों  द्वारा शिवाजी का राज्याभिषेक मना करने पर राजपूतों ने भी हिन्दू राज्य स्थापित करने वाले शिवाजी महाराज का क्यों नहीं कोई सहयोग दिया और क्यों नहीं ब्राह्मणों को कहा कि शिवाजी महाराज राजपूत हैं |   शिवाजी की राजपूतों से कोई शत्रुता भी नहीं थी। तो राजपूतों का शिवाजी के प्रति उदासीनता का एक ही कारण था कि वे शिवाजी को राजपूत नहीं, बल्कि चातुर्वर्ण्य का मानते थे |

 शिवाजी महाराज की दूर दृष्टि को अहंकार में राजपूत मिर्जा राजा जयसिंह समझ नहीं पाया | उसने सोचा कि एक मामूली सा लुटेरा हम राजपूतों को पाठ पढा रहा है | राजपूतों ने कभी शिवाजी को राजपूत नहीं माना । बल्कि मुगलों के साथ मिलकर उन्हें नीचा दिखाने के भरपूर प्रयास करते रहे । राजपूतों ने शिवाजी ही क्या किसी भी मराठा को कभी राजपूत नहीं स्वीकार किया । ऐसे अनेक उदाहरण यह मिलते हैं |

    ग्वालियर के जयप्पा सिंधिया ने सन् 1758 ई० में नागौर के राजपूत राजा विजय सिंह राठौड  से चौथ (राज्य की आय का चौथा भाग कर की भांति राजपूतों से मराठे लेते थे) वसूलने के लिए किले का घेरा डाला हुआ था । जिससे राजपूतों की भूखे मरने की नौबत आ गई थीं । संधि वार्ता चल रही थी। उसी बीच विजय सिंह ने नहाते हुए जयप्पा सिंधिया की भिखारी के वेश में अपने राजपूत  भेजकर छल से उसकी हत्या करवा दी थी । उस जघन्य हत्या का वर्णन मारवाड़ के इतिहास में विजय सिंह राठौड़ ने यह कहते हुए लिखा है कि एक सूर्यवंशी राजपूत, एक सिंधिया शूद्र की गर्वोक्ति वाणी नहीं सुना सका । इसीलिए उसने उसकी हत्या करवा दी।”

    शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के सौ वर्ष बाद भी ग्वालियर के सिंधिया राज वंश को राजपूतों द्वारा शूद्र होने के कारण मरवाना लिखा है । तो फिर राजपूत किस मुँह से वर्तमान में मराठों को राजपूत कह रहे हैं ।

राजपूतों द्वारा अब्दाली से मिलें होना :-

      एक और उदाहरण है सन् 1761 ई० में पानीपत का युद्ध काबुल के अहमद शाह अब्दाली और मराठों बीच लड़ा गया । विदेशी अब्दाली को बुलाने वालों में नजीबाबाद का नजीब, जयपुर का माधव सिंह कछवाहा  और मारवाड़ का विजय सिंह राठौड़ प्रमुख रूप से थे । मराठों की पराजय की खबर सुनकर जयपुर और मारवाड़  में आतिशबाजी छोड़ी गई और खुशियां मनाई गई थीं। मराठों की हार का समाचार लाने वालों को ईनाम बाँटें गये | जब अवध का नवाब शुजाउदौला, नजीबखां रूहेला दोनों  मजहब के नाम पर एक हो गये, तो राजपूत, यदि मराठों को राजपूत मानते थे तो वे क्यों नहीं एक हुए ? मराठों का इतिहास बड़ा गौरवशाली है | इसलिए  वर्तमान में राजपूत जबर्दस्ती मराठों को अपने साथ जोड़ने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं । जोकि गलत है ।

     ध्यान देने योग्य यह है कि सन 1664 ई० में शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के बाद सिसोदिया राजपूत सिद्ध होने के बाद भी मराठों को क्षत्रिय मानने की बात स्वीकार होने पर भी सौ वर्ष बाद ग्वालियर के राजा जयप्पा सिंधिया को नागौर के राजपूत राजा विजय सिंह राठौड़ द्वारा शूद्र क्यों कहा गया ?  अर्थात शिवाजी के राज्याभिषेक के सौ वर्ष बाद भी मराठा शूद्र ही माने जाते थे। इसका मुख्य कारण यह है कि मराठों का अधिकतर का भाग धनगरों (चरवाहों) और कुणबियों (किसानों का था ।

    ऐसा ही वंश भास्कर पुस्तक में लिखा है कि संन 1734 ई० में बूंदी की गद्दी पर मल्हार राव होलकर ने बुद्धसिंह को बैठाया और उसका राजतिलक किया | बुध्द सिंह की सूर्यवंशी रानी अमर कुमारी ने भरे दरबार में एक धनगर (गडरिये) मराठे के लडके मल्हार राव होलकर के हाथ में राखी बांधकर अपना धर्म भाई घोषित किया |

   यदि मराठे राजपूत होते, राजपूत उन्हें क्षत्रिय भी मानते तो ऐसा नहीं लिखते | यह जगह सिद्ध है कि प्रसिद्ध और बलवान व्यक्ति से सभी अपना सम्बन्ध जोड़ते हैं | हिन्दू समाज की एकता में बड़ी बाधा जातिवाद है । जिसे हम शिवाजी जैसे कई हिन्दू वीरों की कुर्बानी देने पर भी नहीं दूर कर पाये हैं और देवीश्री अहिल्याबाई होलकर जैसे महान महारानी ने अपार धन सम्पदा खर्च कर अनेक धार्मिक स्थानों को बनाया। फिर भी हम जातिवाद को मिटाकर हिन्दुत्व नहीं जगा पाये हैं । शिवाजी महाराज ने स्वराज के लिए अनेक लड़ाईयाँ लड़ी और मुगलों के खूब दाँत खट्टे किये । जिसमें धनगर मराठों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।

     भौंसला वंश परिवार से एक सदस्य शाहजी (बुवा साहब) को दन्तक पुत्र लेकर आसन पर बैठाया गया । शाहजी को सन् 1900 ई० में भारत सरकार ने महाराज की उपाधि से विभूषित किया । वे समाज सुधाकरक थे। उन्होंने पिछड़ी व दलित जातियों को कई अधिकार दिये, तो ब्राह्मणों पुरोहितों ने राजपरिवार के धार्मिक संस्कार दैनिक रीति से करना अस्वीकार कर दिया । तब महाराजा ने ब्राह्मणों की जागीरें छीन ली और अपने यहाँ की धार्मिक क्रियाएँ वैदिक रीति से कराने का प्रबन्ध किया । यहाँ एक और उल्लेख करना आवश्यक है कि जब अफजल खां का शिवाजी ने बघनख से वध किया तो अफजल के साथी कृष्णाजी भास्कर  नामक ब्राह्मण ने उनपर तलवार से वार किया था | जिसे शिवाजी ने मार गिराया था | शाहजी का देहान्त सन् 1922 ई० में हुआ । उनका पुत्र राजाराम सिंहासन पर बैठा और उसने भी समाज सुधार के अनेक कार्य किये तथा उसने सन् 1929 ई० को छुआछात समाप्त करने के लिए कानून बनाया । शिवाजी के वंशजों की कोल्हापुर, नागपुर व सतारा में रियासतें थी।

संदर्भ :-

  1. हमारा समाज – पद्मश्री डॉ. श्याम सिंह शशी – पृष्ठ – 103, कुरबार चरित्र (कन्नड़) हनुमतैया ,
  2.  शिखर सिंगनापुरता शंभू महादेव – डॉ. रामचन्द्र चिन्तामण ढेरे (मराठी), Shivaji Mula Kannada Nela by Saraju Katkar (Kannada)
  3.  शब्द का भविष्य – राजेन्द्र यादव साहित्यकार
  4. . मराठों का इतिहास – जेम्स कनिंघम ग्रांट डफ – पृष्ठ – 172
  5. The Tribes and Castes of Bombay – Reginald Edward Enthoven (1922) Page-367
  6. इन्दौर स्टेट गजेटीयर – सी. एल. लायड – वॉल्यूम – 2 – पुष्ठ-54 , Ethnography (Castes and Tribes ) Sir Athelstine Baines -page 103 (1920)
  7. शिवाजी कौन थे ? – गोविंद पांसरे-पृष्ठ – 58, 60
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