श्रीमंत महाराज मल्हार राव होलकर
328 वीं जयंती(16 मार्च 1693 ई० )
श्रीमंत मल्हार राव होलकर (प्रथम)
इंदौर राज्य के संस्थापक श्रीमन्त मल्हारराव होलकर थे जोकि एक मराठा सेनापति थे। उनके पिता का नाम श्री खंडोजी होलकर और माता का नाम जिवाई था। होलकरों के पूर्वज मथुरा के रहने वाले थे। दक्षिण के औरगाबाद, महाराष्ट्र के वाफगावं में और कुछ समय पश्चात् पूना से ४० मील पर फुल्टन परगनें में नीरा नदी पर स्थित होल गाँव में रहने लगे तथा जब उन्होंने प्रसिद्धि प्राप्त की तो होलकर उपनाम धारण किया।
अश्वारुड मल्हार राव होलकर
मल्हार राव होलकर का जन्म 1693 ई० को रामनवमी के शुभ दिन हुआ था। एक दिन उनके गांव पर से गुजरात की ओर मराठों की सेना जा रही थी | उसमें वह सिपाही बनकर भर्ती हो गए और उन्होंने लड़ाई में अच्छा पराक्रम दिखाया । अतः उन्हें तुरंत ही कंठजी कदम सरदार के हाथों के नीचे 25 घुड़सवारों की मनसबदारी दे दी गई । उन्होंने केवल 17 वर्ष की आयु में खानदेश में अणकाई का किला जीत लिया | उससे पेशवा बड़ा प्रसन्न हुआ ।
सन 1718 से 1719 ई० तक दिल्ली के अभियान में नवयुवक मल्हार राव होलकर ने बालाजी विश्वनाथ पेशवा के साथ भाग लिया और उन्होंने वहां अपनी वीरता प्रदर्शित की। जब पेशवा मालवा की ओर जाने वाले थे, उन्होंने शत्रु पक्ष के विरुद्ध उनका पराक्रम देखकर कंठजी कदम सरदार से उन्हें अपने लिए मांग लिया और उनकी वीरता से खुश होकर पेशवा ने उन्हें 500 घुडसवारों का मनसबदार बना दिया। सन् 1723 से 1724 ई० तक उन्होंने मालवा और गुजरात पर चढ़ाइयाँ करके विजय हासिल की । सन् 1725 से 1726 ई० तक उन्होंने पेशवा के साथ मिलकर कर्नाटक पर आक्रमण कर चौथ वसूल की । सन् 1728 ई० में उन्होंने निजाम को पराजित किया और उसी वर्ष मालवा पर आक्रमण किया । सन 1729 ई० में उनकी वीरता से डरकर महम्मद खाँ बंगश जान बचाकर भाग निकला |जिससे छत्रसाल बुन्देला का उद्धार हुआ।
होलकरों का राजवाडा
सन 1731 ई० में मल्हार राव होलकर ने मालवा पर अधिकार कर होलकर राजवंश की नीवं डाली । सन 1733 ई० में उन्होने मंदसौर के समीप जयपुर के जयसिंह कछवाय को बुरी तरह हराया। उसी वर्ष उन्होंने सारे बुन्देलखण्ड पर अधिकार कर लिया। सन् 1734 ई० में उन्होंने बूंदी के दलेल सिंह हाड़ा को पराजित किया । सन् 1735 ई० में दो लाख की मुगल सेना को मल्हार राव होलकर और सिंधिया ने पराजित किया। जिसमें जयपुर का जयसिंह कछवाय, मारवाड़ का अभयसिंह राठौड़, कोटा का दुर्जनसाल हाडा, मुगल सूबेदार कमरुद्दीन, खानदौरान और भरतपुर का सूरजमल जाट आदि थे । सन् 1736 ई० में मल्हार राव होलकर ने मारवाड़ पर हमला कर अभय सिंह राठौड़ से चौथ वसूल की।
सन 1737 ई० में मल्हार राव होलकर ने मराठो के साथ मिलकर दिल्ली पर आक्रमण कर मुगल बादशाह को भयभीत कर दिया और उन्होंने मुजफ्फर खां, मीर हुसैन खां, कमरुद्दीन, कोका राजा शिवसिंह को पराजित किया । 1738 ई० में होलकर ने मराठों के साथ मिलकर निजाम से छापामार लडाई लड़ी और उसे बहुत हानि पहुंचाई । उस लड़ाई में कोटा के दुर्जनसाल हाड़ा ने निजाम की सहायता की थी, इसलिए मराठो ने उससे दस लाख रुपये का दण्ड वसूल किया।
सन 1738 ई० से लेकर 1739 ई० तक मल्हार राव होलकर ने पुर्तगालियों से यद्ध किया और उनके माहिम, तारापुर, अशेरी, धारावी और बसई आदि दुर्गों पर बलपूर्वक अधिकार कर हमेशा-हमेशा के लिए पुर्तगालियों की कमर तोड़ दी ।
सन् 1741 ई० में मल्हार राव होलकर ने धार पर आक्रमण कर मुगल सूबे पर अधिकार कर लिया । सन् 1742 ई० में उन्होंने राजपूताना के राजाओं से बलपूर्वक कर वसूल किया और उसी वर्ष रघुजी भौंसले और पेशवा की सहायता की ।
बुन्देलखण्ड में बुन्देलो ने मराठों के विरुद्ध विद्रोह किया तो मल्हार राव होलकर ने उन्हें बलपूर्वक दबाया। मल्हार राव होलकर ने सभासिंह वुन्देला को हराकर, पृथ्वी सिंह बुन्देला को गढ़कोटा का प्रदेश दिलवाया । मल्हारराव होलकर ने भोपाल के नवाब याद मुहम्मदखां को पराजित कर भिलसा पर 11 मार्च 1745 ई० को अधिकार कर लिया । मल्हार राव होलकर ने बुन्देलों को पराजित कर 5 मई,1745 ई० को जैतपुर पर अधिकार कर किया । उसके पश्चात् उन्होंने दतिया पर आक्रमण कर इन्द्रजीत बुन्देला को पराजित किया । वहां से कूच कर अंतरी के बुंदेलों पर आक्रमण किया और वहां के बुंदेलों ने सन्धि की प्रार्थना की तथा 24 जनवरी 1747 ई० को सुलह हो गई |
सन् 1748 ई० में मल्हार राव होलकर ने जयपुर के ईश्वरी सिंह के विरुद्ध प्रयाण किया और बलपूर्वक टोंक, मालपुरा, सांभर छीन लिए। बगरु के स्थान पर बड़ी घमासान लड़ाई हुई और अंत में विजयश्री होलकर के हाथ लगी । मल्हार राव होलकर ने उसके भाई माधव सिंह को जयपुर की गद्दी पर बैठा दिया।
सन् 1751 ई० से सन् 1752 ई० तक मल्हार राव होलकर ने रुहेले और बंगश पठानों को मार कर पुरे रुहेलखण्ड और बंगश प्रदेश पर अधिकार कर लिया । उस समय मल्हारराव होलकर की ख्याति पूरे हिन्दुस्तान में फैल गई थी और उनका दबदवा चारों ओर बैठ चुका था । दिल्ली के बादशाह ने उनकी बहादुरी से खुश होकर उन्हें इनाम में चाँदवड़ का किला दिया ।
सन् 1752 ई० मे होलकर ने मराठों के साथ औरंगाबाद में सलाबत जंग के विरुद्ध छापामार प्रणाली से युद्ध कर उसे पराजित किया ।
भरतपुर के सूरजमल जाट से कर के विषय पर कुम्हेर, डींग, वेर आदि किलो पर घमासान युद्ध हुआ और यह युद्ध रुक-रुक कर पूरे चार महीने तक चलता रहा । उधर खण्डेराव होलकर ने जाटो के होडल, घासेरा, दुर्गो पर बलपूर्वक अधिकार कर लिया और उन्होंने जाटों के मेवात, नन्दगाँव व बरसाना तक के इलाकों को रौंद डाला । 17 मार्च 1754 ई० को कुम्भेर किले से अचानक एक गोली लगने से खण्डेराव होलकर का देहांत हो गया । उनकी प्रसिद्ध पत्नी रानी अहिल्याबाई विधवा हो गई |
मल्हार राव होलकर ने जाटों से बड़ा घमासान युद्ध कर शुरू दिया | जाट राजा को अपना विनाश दिखने लगा । अंत में उसकी रानी किशोरी ने सूरजमल जाट की पगड़ी और घूस देकर सिंधिया को अपनी ओर फोड़ लिया और सिंधिया के माध्यम से जाट राजा ने 30 लाख रुपये देकर समझौता किया ।
सन् 1754 ई० में मल्हार राव होलकर ने सिकन्दराबाद के समीप दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह पर हमला किया । बादशाह जान बचाकर भाग निकला और उसने दिल्ली पहुंचकर दम लिया । मल्हारराव होलकर ने दिल्ली पर भयानक आक्रमण कर दिया तथा कई इलाकों को जलाकर राख कर दिया ।
सन् 1756 ई० में होलकर ने पेशवा की सहायतार्थ कूच कर दक्षिण में सावनूर के नवाब को पराजित किया और बंकापुर, मिस्त्रीकोट, रायदुर्ग, हरपनहल्ली, सोधा आदि से बलपूर्वक कर वसूल किया । जनवरी १७५७ ई० में होला ने जावद, रानीखेडा और जयपुर से बलपूर्वक कर वसूल किया।
श्रीमन्त मल्हारराव होलकर व रघुनाथ राव ने दिल्ली की ओर कूच किया । रास्ते में उन्होने आगरा में जाटों से कर वसूल किया और दोआब के इलाको के तहसीलदारों से तथा दिल्ली के आसपास जितना इलाका था सब पर बलपूर्वक छीन कर अधिकार कर, चौथ वसूल किया | फिर दिल्ली पर चारों ओर से भयानक आक्रमण शुरु कर दिया और पूरे माह में युद्ध चलता रहा और अंत में 6 सितम्बर 1757 ई० को संधि हो गई।
मल्हार राव होलकर और रघुनाथ राव ने 18 सितम्बर 1757 ई० को पंजाब की ओर कूच किया । रास्ते में उन्होंने रोहतक, लोनी, बागपत, बडौत और सहारनपुर के जिलों से कर वसूल किया तथा थानेश्वर, और सरहिन्द पर अधिकार कर लिया । मराठों की वीरता से भयभीत होकर अब्दाली का पुत्र तैमूर व उसका सेनापति जहान खां लाहौर छोड़कर भाग गए । विजयी होकर मल्हार राव होलकर व रघुनाथराव ने 20 अप्रैल 1758 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया और उन्होंने पठानों का पीछा रावी और चिनाव तक किया । होलकर और रघुनाथ राव वहाँ एक महीना ठहरे और तुकोजीराव होलकर को वहाँ की सरजार्मी सौंपकर 14 जून 1758 ई० को वापिस घर आ गए । रास्ते में वे प्रत्येक तहसीलदार से कर वसूल करते हुए कोटा पहुंचे तथा कर वसूलने में जनकोजी सिंधिया की सहायता की । 1759 ई० में मल्हार राव होलकर ने जयपुर के माधव सिहं को बुरी तरह पराजित किया । होलकर की वीरता से भयभीत होकर उनसे इशरदा मेवाड और झीलरा के राजदत मिलने आए और कर अदा कर गए ।
काबुल के बादशाह अहमदशाह अब्दली ने हिन्दुस्तान पर हमले शुरु किये और मराठों को पंजाब से भगा दिया । दक्षिण से सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में एक विशाल सेना चली । वे सेना मल्हार राव होलकर के आदेशानुसार आगे बढ़ने लगी । मल्हार राव होलकर ने भाऊ को सलाह दी कि भारी सामान, तोपखाना व असैनिकों महिलाओं , बच्चों को वापिस पीछे किसी सुरक्षित स्थान पर भेज दिया जाए और शत्रु से छापामार युद्ध किया जाए । सूरजमल जाट ने भी होलकर की राय का समर्थन किया परन्तु सदाशिव राव भाऊ ने मल्हार राव होलकर की सलाह नहीं मानी और उन्हें बुरा भला कहा । जिसका परिणाम पानीपत के मैदान में मराठों को भुगतान पड़ा।
3 अगस्त 1760 ई० को मल्हार राव होलकर, सिंधिया और मेहंडेले ने दिल्ली पर और 16 अक्तूबर 1760 ई० को कुंजपुरा पर अधिकार कर लिया । 20 अक्तूबर 1760 ई० को पानीपत के मैदान में मराठे पहुंच गए । उनके सामने अब्दाली की सेना भी आ खड़ी हुई | अब युद्ध होना निश्चित हो गया। 14 जनवरी, 1761 ई० को पानीपत का ऐतिहासिक भयानक युद्ध हुआ | जिसमें मराठों की घोर पराजय और अफगानों को विजय हासिल हुई । उस युद्ध में लगभग डेढ़ लाख लोग तथा बड़े-बड़े सेनानायक मारे गए ।
पानीपत के घातक रणक्षेत्र से बचकर किसी तरह हजारों सैनिक व सेनापति जिनमें मल्हार राव होलकर, नाना फडनवीस, महादजी सिंधिया, विटठल शिवदेव, नारों शंकर, जानोजी भैसले आदि मराठा सरदार भरतपुर पहुंचे । मल्हार राव होलकर मराठा सरदारों की महिलाओं को युद्ध क्षेत्र से सकुशल बचाकर निकल कर ले गये और उन्हें भी भरतपुर पहुँचाया |
पानीपत में मराठों की पराजय को कारण अधिकतर राजा नवाब और छोटे छोटे जागीरदार , जमींदार, नवाब यह समझने लगे थे कि मराठों की शक्ति हमेशा के लिए समाप्त हो गई है । इसीलिए ये लोग गंगा, जमुना, दोआब, बुन्देलखण्ज, राजपूताना और मालवा आदि में मराठा सता को चुनौतियां देने लगे थे । जयपुर के माधवसिंह ने मराठा विरोधी राजपूतों का संघ बना लिया होलकर ने थोड़े दिन ग्वालियर में आराम किया और फिर पानीपत के युद्ध के बाद तमाम बिखरे हुए सैनिकों को एकत्र किया तथा पुनः मराठा साम्राज्य की वृद्धि में लग गए ।
मई 1761 ई० में होलकर सेना ने विद्रोही चन्द्रावतों को पराजित कर रामपुरा वापिस छीन लिया । उसके बाद होलकर ने गणपुरी पर धावा कर जून में किले पर अधिकार कर लिया तथा काकड़ा गांव में पहुंचकर मेवाड़ के महाराणा से बलपूर्वक कर प्राप्त किया । 28 नवम्बर 1761 ई० को मांगरौल के स्थान पर मल्हार राव होलकर ने जयपुर के माधव सिंह को बुरी तरह हराया और अंत में बाकी राजपूत हारकर भाग निकले ।
मल्हार राव होलकर
1763 ई० में मल्हार राव होलकर ने निजाम को पराजित कर पेशवा की सहायता की । नवम्बर 1764 ई० से लेकर फरवरी 1765 ई० तक भरतपुर के जवाहर सिंह जाट और नजीब खां रहेला की लड़ाई में होलकर ने जवाहर सिंह जाट की सहायता की । 3 मई, 1765 ई० में मलहर राव होलकर ने अंग्रेजों के विरुद्ध शुजाउदौला का साथ दिया और कडा के मैदान में अंग्रेजों को बहुत हानि पहुंचाई ।
जिस समय मल्हार राव होलकर दिल्ली के समीप ठहरे हुए थे. उस समय गोहद का राजा होलकर के विरुद्ध कार्य कर रहा था । मल्हार राव होलकर की पुत्रवधु देवी अहिल्याबाई होलकर ने अपनी सूझबूझ और वीरता से लडकर एक किला जीत भी लिया था । 1765 ई० होलकर ने झांसी के बुन्देलों पर आक्रमण कर झांसी पर पुनः अधिकार कर लिया । जनवरी 1766 ई० में मल्हार राव होलकर ने गोहद के राजा से युद्ध किया तो जवाहरसिंह जाट भी उससे जा मिला। होलकर ने अपने मराठा सैनिकों को जाटों के इलाकों पर धावे मारने भेजा । उन घड़सवारों ने चम्बल नदी को पार कर धौलपर, डीग और आगरा तक के इलाकों को रौंद डाला तथा बलपूर्वक रुपया वसूल किया । जवाहर सिंह जाट सात हजार सिंखों की सेना लेकर होलकर के विरुद्ध बढ़ा । धौलपुर के स्थान पर 13 , 14 मार्च 1766 ई० को बड़ी घमासान लड़ाई हुई । अंत में सिखों की सेना पराजित होकर भाग गई । फिर भी लडाई रुक-रुक कर चलती रही ।
मल्हार राव होलकर की छत्री
उसी दौरान अचानक श्रीमंत मल्हार राव होलकर के कान में भयंकर पीड़ा शुरु हो गई जिससे युद्ध में शिथिलता आ गई । ऐसी स्थिति का लाभ उठाकर जाटों ने मालवा के कुछ इलाकों में लूटपाट की । मल्हार राव होलकर ने महादजी सिंधिया व गंगाधर को जाटों को खदेड़ने के लिए भेजा। मल्हार राव होलकर के अथक प्रयास से गोहद का राजा तो पराजित हो गया, परन्तु उनकी तबियत खराब होती चली गई । उनके कान का दर्द ठीक न हुआ। अंत में उस वीर पराक्रमी योद्धा का 20 मई,1766 ई० को 74 वर्ष की आयु में आलमपुर में देहांत हो गया । आलमपुर भिण्ड जिले की लहार तहसील में स्थित हैं । उनकी चिता पर उनकी रानियों द्वाराकाबाई और बनाबाई सती हो गई । आलमपुर में उनकी यादगार में उनकी पुत्रवधु देवी श्री अहिल्याबाई होलकर ने एक सुन्दर छत्री का निर्माण करवाया ।
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