भारत की संस्कृति और परम्पराओं  में  रक्षा बंधन का बड़ा महत्व है I यह पर्व श्रावण  पूर्णिमा या संक्रांति तिथि को मनाया जाता हैI  ऐसी  मान्यता है कि इस दिन राखी बाँधने से बुरे गृह कट जाते हैं .I यह एक तरह से रक्षा  सूत्र का त्यौहार होता है Iइस  दिन ब्राह्मण अपने यजमानो को रक्षा सूत्र बांधते हैं I  बहिन  अपने भाई को राखी बंधती है I कहा जाता है इस दिन देवासुर संग्राम के समय इन्द्राणी ने इंद्र को रक्षा का धागा बांधा  था I इतिहास में अनेक घटनाओ का वर्णन मिलता है I सिकंदर की पत्नी ने राजा पौरस को राखी भेजकर अपने पति की रक्षा का वचन लिया था I  मेवाड़ की रानी कर्मावती ने हुमाऊं  को राखी भेजी थी I  इन्ही परम्पराओं  में सदा भाइयों ने अपनी बहिनों की रक्षा की  है I इसी वीर परम्पराओं  में  इंदौर के मराठा सरदार मल्हार राव होलकर का नाम भी जुड़ जाता है I  

           सन १७३४ ई० की बात है I तब पुरे राजपूताना(राजस्थान ) पर मराठो का दबदबा  कायम था I उसमें  भी इंदौर के मराठा सरदार मल्हार राव होलकर का कर्म क्षेत्र उत्तर भारत था .I यदि किसी राजा ने चौथ नहीं दी  तो उस राज्य पर आक्रमण I यही उस काल की परंपरा थी I  मराठे पूरे राजपूताना से चौथ वसूलते थे I उनके आगे बड़े बड़े सूरमाओं  की कुछ नहीं चलती थी I बूँदी का राजा बुद्ध सिंह हाडा ,जयपुर के राजा  का बहनोई  था  I  अचानक साले  बहनोई  के सम्बन्धं बिगड़ गए  थे , क्योंकि  महाराज  बुद्ध सिंह, जयपुर के राजा जय सिंह  की  बहिन अमर कुमारी से घृणा करने लगा था  और उसने उसके पुत्र भवानीसिंह को अपना  पुत्र मानने से इनकार कर दिया और कहा कि यह संतान अवैध है। इस पर  जय सिंह क्रोधित हो उठा। जय सिंह ने बुद्ध सिंह की अनुपस्थिति में बूँदी राज्य पर आक्रमण कर अधिकार करने के पश्चात अपनी बहिन के लिए भी कुछ नहीं किया, बल्कि वृहत जयपुर निमार्ण की योजना उसके मस्तिष्क में काम कर रही थी। बुद्ध सिंह ने 1500 सैनिक लेकर बूँदी पर आक्रमण किया लेकिन पंचोला नामक स्थान पर वह पराजित हो गया। जय सिंह ने अपनी पुत्री कृष्णा कुमारी का विवाह उसके छोटे भाई दलेल सिंह के साथ कर दिया।

        पंचोला के युद्ध में पराजित होकर बुद्ध सिंह ने भागकर पहले उदयपुर में और फिर अपने ससुर बेगू (मेवाड़) के ठाकुर देवी सिंह के यहां आश्रय लिया। वहां दुःख में वह अत्याधिक शराब व अफीम खाने लगा था, जिससे वह पागल सा हो गया, परंतु भाग्य वश वहां उसे एक ऐसा साथी मिला जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। बुद्ध सिंह की रानी अमर कुमारी की सहायता प्रताप सिंह हांडा ने की। जब उसने देखा कि उसका छोटा भाई दलेल सिंह बूँदी पर राज्य कर रहा है तो उसके स्वाभिमान को धक्का लगा। वह सालिम सिंह का बड़ा पुत्र था। सालिम सिंह भी अपने छोटे पुत्र दलेल सिंह का पक्ष ले रहा था । जय सिंह ने अपनी बहिन के पुत्र भवानीराम का धोखे से कत्ल करवा दिया। जिससे उसकी बहिन अपने भाई  जय सिंह से पूरी तरह खिन्न थी। उसने  बुद्ध सिंह के पुत्र उम्मेदसिंह को बूँदी दिलवाने का बीड़ा उठाया और उसने प्रताप सिंह को दक्षिण में इंदौर के मराठा सूबेदार  मल्हारराव होलकर के पास सहायतार्थ भेजा तथा साथ में बुद्ध सिंह की रानी अमर कुमारी ने  एक राखी भी भेजी। 

         उस समय मराठा सरदार मल्हार राव होलकर   की तूती पुरे उत्तर भारत में बोलती थी I वह बड़ी बड़ी रियासतों से चौथ वसूल करते थे  I अनेक रियासतों के आपसी विवाद सुलझाते थे I मल्हार राव होलकर ने  अमर कुमारी के द्वारा भेजी हुई  राखी और नारियल को स्वीकार कर लिया तथा अपनी धर्म बहिन की रक्षार्थ राजपूताना (राजस्थान ) की ओर कूच किया।अनेक घाटी दर्रो नदी नालों को  पार कर  वह अपनी बहिन अमर  कुमारी की सहायता के लिए बूँदी  जा पहुंचे I 

22 अप्रैल 1734 ई. को सूर्य ग्रहण के दिन मराठा सरदार मल्हार राव  होलकर ने  प्रताप सिंह हांडा के मार्गदर्शन में बूँदी पर आक्रमण किया। तुरंत ही सालिम सिंह और दलेल सिंह भी युद्ध लड़ने को  तैयार हो गए  और  बड़ा घमासान युद्ध हुआ I   मराठों की वीरता के आगे राजपूतों के हौसले पस्त हो गये तथा वे मैदान छोड़कर भाग चले। सालिम सिंह को मल्हार राव होलकर ने कैद कर लिया। दलेल सिंह जान बचाकर  भाग निकला।  होलकर  ने आगे बढ़कर बूंदी के किले पर अधिकार कर लिया  I होलकर ने विजय पताका बूंदी पर फहरा दी I विजय दुंदभी बज उठी I   हर हर महादेव के जयघोष लगने लगे I 

           अगले दिन विजय उत्सव मनाया गया I  मल्हार राव  होलकर ने बुद्ध सिंह और अमर कुमारी के पुत्र उम्मेदसिंह को सिंहासन पर बैठाया। बुद्ध सिंह की सूर्यवंशी रानी अमर कुमारी ने भरे दरबार में एक  धनगर मराठा सरदार मल्हारराव होलकर  के  हाथ में राखी बाँधकर उन्हें अपना धर्म-भाई घोषित किया और रानी ने मल्हारराव होलकर का बहुत सम्मान किया तथा बहुमूल्य भेंटे  दीं।  चारों ओर मल्हार राव होलकर की जय जय कार होने लगी  और उनकी वीरता का  डंका बजने लगा I उस समय मल्हार राव होल्कर द्वारा राखी की लाज रख ली  और वह घटना इतिहास के पन्नो में दर्ज  हो गई  I उसके पश्चात् मई माह में वापिस दक्षिण जाते समय मल्हार राव होलकर, सालिम सिंह को कैद करके अपने साथ लेते गये।

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