सिंधिया ने हमेशा होलकर को धोखा दिया ?
सिन्धिया राजघराने ने हमेशा होलकर को धोखा दिया | इसका इतिहास गवाह है | अभी हाल में ग्वालियर राजघराने के और बीजेपी के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना, मध्य प्रदेश में न्यू टेकरी रोड सड़क का नामकरण अपने चहेते पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया के दादा सागर सिंह सिसोदिया के नाम पर कर दिया | सागर सिंह सिसोदिया स्वतंत्रता सेनानी रहे है | नामकरण के लिए आयोजित कार्यक्रम में भूमि दान दाताओं व लोगों ने जम कर उनका विरोध किया | जनता का कहना था कि यह भूमि धनगर-गडरिया समाज के लोगों द्वारा उनके समाज की महान विभूति देवीश्री अहिल्याबाई होलकर के नाम के लिए दान दी थी |
सन 2017 ई० में जनहित में नगरपालिका सड़क हेतु अहिल्याबाई मार्ग हेतु भूमि दान दी थी | 31 मई 2018 ई० में अहिल्या जयंती पर नगर पालिका अध्यक्ष ने अहिल्या मार्ग होने की घोषणा की थी |पिछले तीन वर्षों सड़क के दोनों सिरों पर अहिल्याबाई मार्ग के शिलापट भी लगे हैं | परन्तु भोले भाले समाज बंधुओ ने उसे नगर पालिका से मंजूर नहीं करवाया था | इसी का फायदा उठाकर वहां के मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने अपने रसुक का लाभ उठाकर अपने दादा सगर सिंह सिसोदिया के नाम पर मंजूर करवा लिया तथा देवी अहिल्याबाई होलकर से सम्बंधित समाज को ठग लिया | जब धनगर समाज को इसका पता लगा तो उन्होंने नामकरण के लिए आयोजित सरकारी कार्यक्रम में आकर विरोध किया तो ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खुले मंच से चेतावनी देते हुए भूमि दानदाताओं को फटकार लगाई और कहा आपने भूमि दान दे दी है, सरकार इस सड़क का नाम कुछ भी रख सकती है | सिंधिया ने नगर पालिका को निर्देशित करते हुए कहा कि स्वतंत्रता सेनानी सागर सिंह सिसोदिया की मूर्ति भी लगाईं जाए और उसका इतिहास पट्टिका भी लगाई जाए, जिससे नई पीढ़ी को प्रेरणा मिले |
उनके इस व्यवहार जिससे स्थानीय लोग बेहद नाराज हैं | धनगर गडरिया समाज के भूमि दानदाताओं व देवी अहिल्याबाई होलकर से सम्बंधित समाज में भारी रोष व्याप्त है और उन्होंने सिंधिया का पूरे देश में भारी विरोध शुरू कर दिया और सिंधिया के पुतले फूकें जा रहे है और उग्र विरोध प्रदर्शन किये जा रहे है | उनका कहना है की उस रोड का नाम पुन: देवी अहिल्याबाई होलकर के नाम पर रखा जाए | नहीं तो यह बीस करोड़ की जनसंख्या वाले धनगर समाज की नारजगी सिंधिया सहित भारतीय जनता पार्टी को इसकी भारी कीमत चुका कर देनी पड़ेगी | सिंधिया व उसकी पार्टी के सत्ता के मद के अहंकार को यह समाज को कुचलना पड़ेगा | यह लोकतंत्र है कोई राजतंत्र नहीं | लोकतंत्र में राजा जनता चुनती है और वह उस सत्ता का दुरूपयोग जनता की भावना को कुचल कर करें | यह कभी स्वीकार नहीं करेगा समाज |सिंधिया राजवंश के लोगों ने सदा देश से और विशेष रूप से धनगर (गडरिया) समाज के होलकर राजाओं को धोखा दिया है | यह इतिहास में दर्ज है | इसके लिए हमें इतिहास के पन्नें उलटने पड़ेंगे |
जूते उठाने वाले सिंधिया को होलकर ने सैनिक बनाया :
एक समय की बात है जब मराठा सेनापतियों की एक बैठक एक सातारा जिले के कन्हेरखेड गाँव में हो रही थी | उस समय बैठक के लिए सभी सेनापति एकत्रित हो रहे थे | उस समय सभी अपने जूते बाहर उतार कर अंदर बैठक के लिए जाते थे | तभी वहां बैठक के लिए पेशवा भी आया और उसने अपने जूते बाहर उतारे | उसने पास में एक लडके को देखकर कहाँ तुम इस जूते का ख्याल रखना, मैं अभी बैठक से आता हूँ और पेशवा बैठक के लिए अन्दर चला गया | बहुत देर बाद जब पेशवा बैठक समाप्त होने पर बाहर आया तो उसने देखा कि वह बालक उसकी जूती को अपनी छाती पर लगाकर सो रहा था | यह देखकर कि यह लड़का तो बड़ा स्वामी भक्त रहेगा | पेशवा ने उसे अपनी निजी सेवा में रख लिया | वह पेशवा के दास के रूप में सेवा करता रहा |
एक दिवस पेशवा ने मराठा सेनापति मल्हार राव होलकर से कहा कि इस लडके को सैनिक शिक्षा दो | मल्हार राव होलकर ने उस लडके को एक जूते उठाने वाले से थोड़े दिनों में सैनिक और फिर योद्धा बना दिया | वह जूते उठाने वाला लड़का कोई और नहीं बल्कि सिंधिया राजवंश का मूल पुरुष राणोजी सिंधिया था | राणोजी सिंधिया ने मल्हार राव होलकर के हाथों के नीचे रहकर कई युद्धों में भाग लिया | राणोजी सिंधिया बराबर मल्हार राव होलकर का सम्मान करते रहे | जब मराठों ने मालवा जीता तो पेशवा ने मल्हार राव होलकर के साथ साथ राणोजी सिंधिया को भी इलाके दिये |
मल्हार राव होलकर ने मराठा साम्राज्य को अपने बल व पराक्रम से बुंदेलखंड, दोआब, राजपूताना, दिल्ली और पंजाब तक पहुंचाया था | उनकी ही कृपादृष्टि से राणोजी सिंधिया को भी महत्व प्राप्त हुआ था, नहीं तो राणोजी सिंधिया पेशवा का जूता उठाने वाला सेवक मात्र ही रहता |
जयप्पा सिंधिया ने होलकर को धोखा दिया :
राणोजी की सन 1745 ई० को मृत्यु के बाद उनके पुत्र जयप्पा सिंधिया, दत्ताजी सिंधिया, तुकोजी सिंधिया, महादजी सिंधिया(अवैध पुत्र) पौत्र जनकोजी सिंधिया को मल्हार राव होलकर ने संरक्षक बनकर उत्तर भारत की राजनीति में हिस्सा दिलवाया | परन्तु सिंधिया हमेशा होलकर से इर्ष्या रखते रहे | जयप्पा सिंधिया राणोजी के उत्तराधिकारी बने |
मल्हार राव होलकर ने जयप्पा सिंधिया की सन 1746 ई० में जैतपुर का किला जितवा कर सहायता की | सन 1747 ई० में जयपुर में उत्तराधिकार के विषय पर मल्हार राव होलकर ने माधव सिंह का समर्थन किया तो जयप्पा सिंधिया ने मल्हार राव होलकर की राय की अवेहना करते हुए ईश्वरी सिंह का समर्थन करते हुए होलकर को धोखा ही दिया |
जब जोधपुर की गद्दी के लिए विवाद हुआ तो मल्हार राव होलकर ने अभय सिंह राठौड़ का पक्ष लिया तो जयप्पा सिंधिया ने बख्त सिंह राठौड़ का समर्थन किया | सिंधिया का काम किसी भी तरह होलकर को नीचा दिखाना था |
सन 1754 ई० में मल्हार राव होलकर की चौथ को लेकर भरतपुर के सूरजमल जाट से अनबन हो गई और युद्ध शुरू हो गया | यद्ध के दौरान मल्हार राव होलकर के पुत्र युवराज खंडेराव होलकर को धोखे से जाटों ने मार् डाला | मल्हार राव होलकर ने कहा कि मैं जाटों के समूल वंश का नाश कर सूरजमल का सर काटूँगा और उसके किलों को धूल धूसरित कर उसकी मिटटी को यमुना में बहा दूंगा | जाट राजा भयभीत हो गया और उसने आत्म हत्या तक का मन बना लिया था | उसकी चतुर रानी किशोरी ने अपने पति की रक्षा की तथा उसने सूरजमल की पगड़ी और धन का लालच देकर जयप्पा सिंधिया को विश्वासघात करने को राजी कर लिया | सिंधिया ने रघुनाथ राव को अपने भी अपनी ओर फोड़ लिया और उन्होंने युद्ध बंद कर दिया | मल्हार राव होलकर ने उनसे कहा की युद्ध क्यों बंद कर दिया तो उसने कहा कि जाट राजा ने समझौता कर लिया है | इसलिए अब युद्ध करना उचित नहीं होगा | मल्हार राव होलकर ने युद्ध करने पर बहुत जोर दिया | परन्तु सिंधिया ने जब जाट राजा पराजित होने वाला था तभी घूस खाकर होलकर से विश्वासघात किया | जब मल्हार राव होलकर ने देखा कि अपने ही लोग शत्रु से मिल गये है तो उन्होंने भी समय की नाजुकता को ध्यान में रखते हुए कुछ समय के लिए संघर्ष को टालना ही उचित समझा |
मल्हार राव होलकर, जयप्पा सिंधिया को हमेशा अपना समझते रहे, परन्तु उन्होंने कभी होलकर को अपना नहीं समझा | क्योंकि जयप्पा सिंधिया होलकर को अपनी प्रगति में बाधक मानता था | वह एक अनुभवहीन सेनापति था |
सन 1755 ई० में जयप्पा सिंधिया की मारवाड़ के विजय सिंह राठौड़ से लड़ाई चल रही थी | तब भी मल्हार राव होलकर ने उसकी सहायता को आने को कहा था | परन्तु उसने होलकर से सहायता लेने से साफ़ इनकार कर दिया | जिसका खामयाजा उसे भुगतान पड़ा| राजपूतों ने उसे धोखे से मार डाला |
महादजी सिंधिया ने होलकर को धोखा दिया :
जयप्पा सिंधिया के मरने के बाद दत्ताजी सिंधिया को नजीब खां रूहेला ने मार डाला था | उसके बाद जनकोजी सिंधिया, तुकोजी सिंधिया पानीपत युद्ध में मारे गये और राणोजी सिंधिया का अनौरस पुत्र महादजी सिंधिया घायल हो गया | पेशवा ने महादजी सिंधिया की सूबेदारी जब्त कर ली और उसे सिंधिया वंश का वैध उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया | देवी अहिल्याबाई होलकर ने उसे सेना खड़ी करने के लिए धन दिया और साथ ही मल्हार राव होलकर की पत्नी हरकुबाई ने भी सिंधिया को धन अलग से दिया | मल्हार राव होलकर ने अपनी कूटनीति से उसकी सूबेदारी बहाल करवाई | मल्हार राव होलकर ने महादजी सिंधिया को अपने साथ लेकर उत्तर भारत में अभियान करवाए | जिससे उसे ख्याति मिली | परन्तु जब उसे सिधिया वंश की सूबेदारी मिल गई तो उसने भी अपनी आँखे तरेरना शुरू कर दिया |
मल्हार राव होलकर के देहांत के बाद महादजी सिंधिया उत्तर भारत का सर्वेसर्वा बनना चाहता था | पेशवा के समय से ही उत्तर की चौथ का आधा भाग होलकर और आधा भाग सिंधिया को बराबर मल्हार राव होलकर देते रहे | परन्तु अब सिंधिया सब हडपना चाहता था और उसनें आधा हिस्सा देने से इनकार कर दिया | इसलिए होलकर और सिंधिया के बीच टकराव भी हुआ | महादजी सिंधिया मल्हार राव होलकर और देवी अहिल्याबाई होलकर के अहसानों को भूल गया और धोखा दिया |
नर्मदा को पार करते समय सतवास के गाँव में जब महादजी सिंधिया ने होलकरों के कर्मचारियों को चुंगी मांगने पर मार पीट कर भगा दिया था, तब देवी अहिल्याबाई होलकर ने महादजी सिंधिया की हठधर्मिता से क्रोधित होकर उसे श्राप दिया था कि अरे एहसान फरामोस महादजी सिंधिया, तू वापिस आने के लिए जीवित नहीं बचेगा | उनका श्राप सही सिद्ध हुआ | महादजी सिंधिया को तेज बुखार हुआ और अंत में वह मर गया |
महादजी सिंधिया ने अंग्रेजों से मिलकर मराठों से विश्वासघात किया :
अंग्रेजों ने मराठों के विरुद्ध अपने षड्यन्त्र जारी किये हुए थे | उनका मोहरा बना महादजी सिंधिया | सन 1777 ई० पूना की गद्दी पर वारेन हेस्टिंग रघुनाथ राव को बैठना चाहता था | उस समय नाना फडनीस संरक्षक बनकर पूना की गद्दी की देखरेख कर रहे थे |क्योंकि पेशवा बालक था | तुकोजीराव होलकर ने कर्नल इजर्टन और गोडार्ड को बुरी तरह हराया | प्रसिद्ध इतिहासकार सुन्दर लाल ने भारत में अंग्रेजी राज में लिखा है,- “मराठा मंडल के पांच मुख्य स्तंभों में से एक महारा जा गायकवाड को अंग्रेज अपनी और फोड़ चुके थे | बरार के राजा भौंसले को वारेन हेस्टिंग ने अपनी चालों द्वारा संग्राम से तटस्थ कर रखा था | पेशवा की मदद के लिए अब होलकर, सिंधिया दो नरेश बाकी रह गये थे | देवी अहिल्याबाई होलकर इन विदेशियों के साथ मेल या अपने यहाँ उनका हस्तक्षेप पसंद नहीं करती थी, इसलिए वारेन हेस्टिंग को पेशवा के खिलाफ सिंधिया कुल के साथ साजिश करनी पड़ी | महादजी सिंधिया उस समय पेशवा के अत्यंत योग्य और विश्वस्त सेनापतियों में से था | अदूरदर्शी महादजी सिंधिया विदेशियों की बातों में आकर पेशवा दरबार के साथ विश्वासघात करने को राजी हो गया | ताले गाँव ही में अंग्रेजों और महादजी सिंधिया के बीच गुप्त बातचीत हुई | सिंधिया को लालच दिया गया कि यूरोपियन अफसरों और यूरोपियन ढंग के शस्त्र बनाने वालों की मदद से तुम्हारा प्रभाव थोड़े ही दिनों के अन्दर सर्वोपरी हो जाएगा |
अंत में महादजी सिंधिया और अंगेजों के बीच गुप्त सन्धि हो गई, बालक माधव राव नारायण, जिसकी आयु पांच साल की थी, पेशवा की गद्दी पर कायम रहे, राघोबा का बेटा बाजीराव जिसकी उम्र चार साल की थी, पेशवा का दीवान नियुक्त हो, महादजी नाबालिक दीवान के नाम से सारा शासन का काम करें और राघोबा को 12 लाख की पेंशन देकर झाँसी भेज दिया जाए | इसके आलावा अंग्रेजों ने भड़ौच का जिला और 41 हजार रूपये महादजी को देने का वायदा किया | स्वार्थांध होकर महादजी सिंधिया ने अपने स्वामी पेशवा के साथ विश्वासघात करके राघोबा और दोनों अंग्रेज बंधुओं को चुपके से छोड़ दिया | उस समय भारत के अन्दर कम्पनी की सत्ता को जमाने में महादजी सिंधिया ने बहुत बड़ी मदद की |”
दौलत राव सिंधिया द्वारा होलकर से विश्वासघात :
महादजी सिंधिया निसंतान मरा | उसकी गद्दी पर उसके भाई तुकोजी सिंधिया के पुत्र आनंद राव सिंधिया के पुत्र दौलत राव सिंधिया को बैठाया गया | उसकी भी अपने पुरखों वाली नीति थी कि होलकरों के वर्चस्व को समाप्त करना | उधर तुकोजी राव होलकर का देहांत हो गया था | उनके चार पुत्र काशी राव होलकर, मल्हार राव होलकर, बिठोजी राव होलकर और यशवंत राव होलकर थे | काशी राव होलकर शारीरिक रूप से विकलांग थे | परन्तु होलकर गद्दी का उतराधिकारी उन्हें घोषित कर दिया गया | मल्हार राव होलकर ने उनका विरोध किया | बिठोजी राव होलकर और यशवंत राव होलकर ने भी मल्हार रव होलकर का समर्थन किया | दौलत राव सिंधिया इसी दिन का इंतजार कर रहा था और उसने और बाजीराव पेशवा ने काशी राव होलकर का पक्ष लिया | दौलत राव सिंधिया ने तीनों भाइयों को रस्ते से हटाकर काशी राव को बाद में समाप्त कर पूरी होलकर रियासत को हडपने का विचार किया | उसने 14 सितम्बर 1797 ई० को रात के समय मल्हार राव होलकर के डेरे पर हमला कर उसे मार डाला | बिठोजी राव होलकर और यशवंत राव होलकर घायल होकर वहां से बच निकले | दौलतराव सिंधिया ने मल्हार राव होलकर की गर्ववती पत्नी जीजाबाई, यशवंत राव होलकर की पुत्री भीमाबाई को कैद कर लिया | बाद में कैद में जीजाबाई ने एक पुत्र खंडेराव को जन्म दिया |
दौलत राव सिंधिया द्वारा अंग्रेजों से मिलकर यशवंत राव होलकर से विश्वासघात :
बिठोजी राव होलकर को बाजीराव पेशवा ने धोखे से बुलाकर मार डाला | यशवंत राव होलकर ने अपने साहस व् पराक्रम से एक विशाल सेना तैयार कर स्वयं को महाराजधिराज घोषित किया | यशवंत राव होलकर ने 1802 ई० में पूना में सिंधिया और पेशवा की सम्मलित सेना को धूल चटा दी | बाजीराव पेश्वा ने भागकर बेसिन में अंग्रेजों से संधि कर ली |
अब तक जो लड़ाई होलकर सिंधिया के बीच थी, वे अब मराठों और अंग्रेजो के बीच ठन गई और अंग्रेज यशवंत राव को पूना छोड़ने की धमकी देने लगे होलकर ने सभी मराठा सरदारों की सभा बुलाई और कहा कि पेशवा ने मराठा सत्ता को अंगेजों के हाथों बेच दिया है, इसलिए अमृत राव को पेशवा बना दिया जाए और अंग्रेजों को मराठों के मामलें में हस्तक्षेप का विरोध किया जाए | लगभग सभी सरदार सहमत हो गये, परन्तु गायकवाड और सिंधिया ने होलकर का विरोध किया | गायकवाड पहले से अंग्रेजों से संधि कर चुका था | सिंधिया होलकर को नष्ट करना चाहता था | उसके सरदार सर्जेराव घाटगे, पेशवा इत्यादि मिलकर यशवंत राव होलकर पर हमला करने की तैयारी कर रहे थे | दिल्ली से बेगम समरू की सेना भी सिंधिया की सेना में जा मिली | उधर अंग्रेज होलकर को धमकी देने लगे |
यशवंत राव होलकर के पूना से हटते ही अंग्रेजों ने बाजीराव पेशवा को पुन: पूना की गद्दी पर ला बैठाया और उन्होंने थोड़े दिनों में पेशवा के सभी अधिकारों का हनन कर दिया | पेशवा ने होलकर सिंधिया में सुलह करवा कर अंगेजों से मिलकर संघर्ष का प्रयास किया | यशवंत राव होलकर राजी भी हो गये थे और दौलतराव सिंधिया ने यशवंत राव होलकर की सभी मांगो को मानने की प्रतिज्ञा भी की | परन्तु उसने अपना वादा पूरा नहीं किया | बल्कि सिंधिया ने एक पत्र पेशवा को लिखा,-“ यशवंत राव होलकर के बारें में चिंता करने की कोई बात नहीं| हमें तो होलकर की मांगों को पूरा करने का दिखावा मात्र करना होगा और जैसे ही अंग्रेजों से युद्ध समाप्त होगा तो हम दोनों मिलकर यशवंत राव होलकर से अपना पूरा बदला ले लेंगे|” वह पत्र रास्ते में पकड़ कर वेलेजली ने यशवंत राव होलकर को पहुंचा दिया | जिसको पढ़कर होलकर की आँखे खुल गई | जिन्हें मैं अपना समझ रह था, वे मुझे ही समाप्त करना चाहते हैं |
दौलत राव सिंधिया ने यहाँ भी होलकर से गद्दारी की | जिसका अंजाम यह हुआ कि रघुजी भोंसले ने 17 दिसम्बर 1803 ई० को और दौलत राव सिंधिया ने 30 दिसम्बर 1803 ई० हार कर अंगेजों से संधि कर ली | सिंधिया को अंग्रेजों ने होलकर का भय दिखला कर संधि के लिए उकसाया था | यदि वह हमसे रक्षात्मक संधि कर लेगा तो यशवंत राव होलकर उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाएगा, नहीं तो होलकर उसे जरुर समाप्त कर देगा | अंगेजों से हार कर और भयभीत होकर दौलत राव सिंधिया ने सब्सिडियरी संधि स्वीकार कर ली और कम्पनी की अंग्रेजी सेना सिंधिया के राज्य में रहने लगी |
इतिहासकार सुन्दर लाल ने भारत में अंग्रेजी राज में लिखा है,- “ इस लड़ाई में जितना इलाका कभी दौलत राव सिंधिया के पूर्वज महादजी सिंधिया को मराठा मंडल के साथ विश्वासघात करने के लिए इनाम में अंग्रेजों ने दिया था, आज उसी इलाके को अंग्रेजों ने पुन: छीन लिया|”
दौलत राव सिंधिया द्वारा फिर यशवंत राव होलकर से विश्वासघात :
जब सन 1804 ई० में यशवंत राव होलकर की अंग्रेजों से लड़ाई हुई थी तो उन्होंने सभी देशी राजा- महाराजाओं से देश – धर्म की रक्षा के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने का आव्हान किया | परन्तु किसी ने उनका साथ नहीं दिया | 16 अप्रैल 1804 ई० को अंग्रेजों ने घोषणा की कि कम्पनी सरकार होलकर के जिन इलाकों को जीतेगी उसे अपने मित्रों में बांट देगी | दक्षिण के इलाके पेशवा को और होलकर के सारे इलाके सिंधिया को दे दिए जाएंगे | सिंधिया ने फिर होलकर से गद्दारी करने की ठान ली | वह होलकर को नष्ट करना चाहता था | बाजीराव पेशवा भी होलकर के विरुद्ध अपनी सेना लेकर अंग्रेजों से मिल गया |
यशवंत राव होलकर ने अंगेजों सहित सिंधिया की सेना को कई टक्करों में धूल चटा दी | सिंधिया की सेना के सेना नायक बापूजी सिंधिया ने आत्म समर्पण कर दिया | होलकर ने उसके साथ राष्ट्रहित में अच्छा व्यवहार किया |
एक बार फिर राष्ट्र हित में अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम में साथ देने के लिए दौलत राव सिंधिया को निमंत्रण भेजा | सिंधिया होलकर का साथ देने के लिए चल दिया | अंग्रेजों ने फिर सिंधिया को लालच दिया कि पलट कर होलकर के इलाकों पर अधिकार कर लेगा तो वह उसी के होंगे और कम्पनी सरकार अलग से रुपया भी देगी | यह याद रखे, होलकर, तुम्हे छोड़ेगा नहीं | सिंधिया को होलकर का इतना भय दिखाया कि एक बार फिर दौलत राव सिंधिया होलकर से गद्दारी करके अंग्रेजों से जा मिला | उसी तरह रघुजी भोंसले को भी अंग्रेजों ने रोक दिया |
इतिहासकार सरदेसाई ने मराठों का इतिहास में लिखा है,-“ सिंधिया की निर्बलता, अकर्मण्यता, स्वाभाविक गौरवहीनता तथा विषयासक्ति के कारण उसके व्यक्तिगत हितों के साथ राष्ट्र हित का नाश हो गया |”
जयाजी राव सिंधिया ने लक्ष्मीबाई को धोखा दिया :
झाँसी की रानी की अंग्रेजों से लड़ाई चल रही थी | कालपी छिन गई थी | उन्होंने तात्या टोपे की सहायता से ग्वालियर पर आक्रमण किया | जहाँ अंग्रेजी सेना थीं | सिंधिया की सेना लक्ष्मीबाई पक्ष में थे | ग्वालियर पर विद्रोहियों का अधिकार हो गया था | अंग्रेज तो घबडा रहे थे | तभी उनका उद्धारक बना ग्वालियर का महाराजा जयाजी राव सिंधिया | उसने अंग्रेजों के पक्ष में लक्ष्मीबाई के विरुद्ध अंग्रेजों का साथ दिया | रानी लक्ष्मीबाई सिंधिया और अंग्रेजों की सेना से गिर गई और अंत में वह मारी गई | जयाजी राव सिंधिया ने यहाँ भी देश की स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मीबाई से गद्दारी की | सिंधिया ने जीत की ख़ुशी में एक भव्य समारोह किया | देश से गद्दारी के लिए जयाजी राव सिंधिया को अंग्रेजों ने नाइट्स ग्रेंड कमांडर के खिताब से नवाजा |
जयाजी राव सिंधिया के पुत्र माधो राव सिंधिया हुए | माधो राव सिंधिया के जीवाजी राव सिंधिया हुए | जीवाजी राव की पत्नी विजय राजे सिंधिया थीं और उनके पुत्र माधव राव सिंधिया हुए | माधव राव सिंधिया के पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं |
जीवाजी सिंधिया और विजय राजे सिंधिया हिंदुत्व के विचारों के समर्थक थे | इसिलए जनसंघ और बाद में बीजेपी से चुनाव लडती रहीं | मां बेटे के रिश्ते बेहद ख़राब रहे | क्योंकि माधव राव सिंधिया ने सत्ता के लिए अपनी मां को भी छोड़ दिया और कांग्रेस का दामन थाम लिया | कहा जाता है कि विजय राजे सिंधिया अपने पुत्र माधव राव सिंधिया से इतनी नाराज थी कि 1985 में वसीयत में उन्होंने माधव राव सिंधिया को मुखाग्नि देने के अधिकार से वंचित कर दिया था | जो अपनी मां का ना हुआ वह भला किसका हो सकता था | उसने कांग्रेस को छोड़कर अपनी पार्टी बना ली | परन्तु सफलता नहीं मिली और पुन: कांग्रेस का दामन थाम लिया था | यही हाल उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी है | वह कांग्रेस में रहे | उनको सांसद, मंत्री सभी कुछ बनाया | परन्तु अब अवसरवादिता का लाभ उठाते हुए कांग्रेस का दामन छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया | भला जब सिंधियाओं ने देश, मित्र, पार्टी को नहीं छोड़ा तो वह कैसे देवी अहिल्याबाई होलकर जैसी महान विभूति के साथ न्याय करेंगे | इसी को कहते है विनाश काले विपरीत बुद्धि | इसका खामयाजा ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ साथ भारतीय जनता पार्टी को भी भुगतना पड़ सकता है |