भगवान श्रीकृष्ण  भारत की आत्मा में रचे बसे हैं | उनकी लीलाओं, शौर्य  व ज्ञान सारा संसार कायल है | परन्तु उनको भगवान बनाने में ग्वालों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई  थीं | भगवान् श्रीकृष्ण  का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को वासदेव और देवकी के 8 वें पुत्र के रूप में कंस  के कारागार में हुआ था |यदुवंश, चन्द्रवंश की शाखा है | 

ब्रह्माजी का  पुत्र अत्रि हुआ। अत्रि  के  दतात्रेय, चंद्रमा और दुर्वासा नामक तीन पुत्र पैदा हुए | दक्ष प्रजापति की आठ कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ हुआ था। चंद्रमा ने राजसूय यज्ञ किया था, जिसमें एक लाख गाएं दान देकर उन्होंने अपने को ग्वाला  होने का परिचय दिया था । किसी-किसी पुराण के अनुसार  तारा और चंद्रमा के संसर्ग से बुद्ध का जन्म हुआ। बुद्ध का विवाह मनु की पुत्री इला से हुआ। इसीलिए इस वंश को इला (ऐल) वंश अथवा चन्द्रवंश या सोमवंश भी कहा जाता है।

बुद्ध का  पुरूरवा हुआ। पुरूरवा  भेड़ बकरियों का पालन करता था और उनकी पत्नी उर्वशी उसकी देखभाल करती थी। पुरूरवा ही चन्द्रवंश का मूल पुरुष था। पुरूरवा का नहुष, नहुष का यति और यति का महाप्रतापी पुत्र ययाति हुआ। ययाति के शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से यदु और तुर्वसु तथा असुरराज वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा से तीन पुत्र द्रुत्यु, अनु व पुरू हुए। सबसे बड़े पुत्र का नाम यदु था। उसी से यदुवंश का प्रादुर्भाव हुआ।

चन्द्रवंश की 42वीं पीढ़ी में योगीश्वर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।उनके पिता का नाम वासुदेव और माता का नाम देवकी था|यदुवंशियों की दूसरी शाखा में 58 पीढ़ी बाद कंस नामक राजा हुआ। इसमें अहुक के दो पुत्र देवक और उग्रसेन हुए|देवक से देवकी और उग्रसेन  से  कंस हुआ| वह बड़ा अहंकारी व अत्याचारी था| प्रजा उससे त्रस्त थी|उसकी बहन देवकी का विवाह वासुदेव के  साथ  हुआ था|देवकी की बिदाई के समय एक आकाशवाणी हुई – कंस तेरी मृत्यु देवकी के आठवें पुत्र के हाथों होगी| फिर क्या था|कंस का अहंकार जाग उठा और उसने अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को कारागार में ड़ाल दिया| राजा उग्रसेन ने विरोध किया तो कंस ने अपने पिता को भी कारागार में दाल दिया| एक एके करके देवकी के सात पुत्रों का  कंस ने पैदा होते ही वध कर दिया| आठवें पुत्र के रूप में साक्षात पार ब्रह्म परमेश्वर जन्म लेने वाले थे| तो उनकी महिमा अपरम्पार  होती है | जैसे ही देवकी के आठवें पुत्र के रूप में स्वम भगवान ने अवतार लिया तो सारे पहरेदार सो गये  और देवकी और वासुदेव की  बेड़ियाँ खुल गई| वह अपने पुत्र को लेकर गोकुल में अपने मित्र नंदबाबा के घर गये|वहां  यशोदा की कोख से स्वम्  योगमाया  ने  जन्म लिया था तथा वह उसे लेकर वापिस  कारागार  में आ गये| उसके बाद कंस को पता लगा की देवकी ने एक पुत्री  को जन्म दिया है। कंस आया और जैसे ही उसने उस कन्या को पटक कर मारने के लिए उठाया,वह उसके हाथ से छुट कर आसमान में  गायब हो गई |उसी समय एक भविष्य वाणी हुई की कंस तुझे मारने वाले ने जन्म ले लिया है|कंस ने जितने भी नवजात शिशु थे सबको मारने की आज्ञा दे दी और उनके सभी  सैनिक सभी नवजात शीशों की हत्याएँ करने लगे |

यहाँ एक बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि  गोकुल के नन्द बाबा सभी ग्वालों के मुखिया थे|भगवत के अनुसार यदुवंश में वृष्णि हुए  और उनके देवमिढ  हुए|देवमीढ के सुरसेन और  पार्जन्य हुए| सुरसेन के वासदेव साहित  10 पुत्र हुए| पार्जन्य के नन्द सहित नौ पुत्र हुए। नन्द बाबा  पार्जयं के तीसरे पुत्र थे| सुरसेन और पार्जन्य सगे भाई  थे| उनके पिता   देवमीढ की दो पत्नियाँ थीं। क्षत्रिय कन्या मदिषा से सुरसेन हुए और दूसरी वैश्य कन्या वैश्यपर्णा  के पार्जन्य हुए|अपनी माता के कारण वह नन्द बाबा  ग्वाले माने गये|क्योकि वर्ण अनुसार पशुपालन व कृषि कर्म वैश्य माना जाता था | वासुदेव और नन्द बाबा दोनों सगे चचेरे भाई थे और दोनों ही यदुवंशी क्षत्रिय थे। वासुदेव की दूसरी की दूसरी पत्नी  रोहिणी और यशोदा  सगी  बहनें थीं | नन्द बाबा गौ पालन किया करते थे और वह  ग्वालों के चौधरी थे। जब नन्द बाबा के वहां पुत्र होने की ग्वालों को खबर लगी तो  गोकुल में उत्सव मनाया गया। जिसकी खबर जल्दी है कंस को लग गई। उसने गोकुल के सभी नवजात शिशुओं  को मारने के लिए पूतना को भेजा। वह अपने स्तन पर जहर लगा कर गोकुल के नवजात शिशुओं को जहर देकर मारने लगी और इसकी भनक ग्वालों  को नहीं लगी की यह क्या हो रहा है | क्यूँ यह बच्चे  मर रहे है। पूतना ने मौका  पाकरभगवान श्रीकृष्ण को भी दूध पिलाकर मारना  चाह| परन्तु वह तो स्वम् भगवान थे और अत्याचारों से जनता को छुटकारा दिलवाने आये थे। पूतना के स्तन पर मुहं लगाते  ही श्रीकृष्ण ने  उसके प्राण हर  लिए। जब गोकुल के ग्वालों की पता लगा तो वे  जान गये कि  यह बालक कोई  चमत्कारी है। 

      फिर कंस ने श्रीकृष्ण  को मारने के लिए तृणावर्त  राक्षस  को भेजा। वह एक बवंडर बनकर  आया और श्री कृष्ण को अपने साथ उड़ा कर आकाश में ले गया। श्रीकृष्ण ने उसका वध किया। तब ग्वालों ने श्रीकृष्ण की जय जयकार की और उन्हें कोई सिद्ध  पुरुष समझने लगे। उसके बाद कंस ने फिर वत्सासुर को श्रीकृष्ण  को मारने भेजा । वह राक्षस बछड़े का रूप बनाकर गाय बछड़ों में मिल गया। भगवान श्रीकृष्ण ने उसे पहचान लिया और उसे पटकर मार डाला। ग्वालो का दृढ़ विश्वास  हो गया था  कि श्रीकृष्ण कोई  साधारण बालक नही  बल्कि कोई अवतार  है | 

        फिर कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए बकासुर को भेजा। उसने बगुले का रूप  धारण किया और जहाँ  कृष्ण अपने ग्वाल बाल  साथियों के साथ खेल रहे थे| मौका पाकर बकासुर ने श्रीकृष्ण  को निगल लिया | परन्तु श्रीकृष्ण ने उसका पेट चीरकर बकासुर को मार डाला। उनके  चमत्कारी कार्य और वीरता की कहानियां धीरे धीरे मथुरा जनपद में पहुँचने  लगी। इधर  ग्वालों ने तो श्रीकृष्ण को भगवान का अवतार मान लिया  और उनकी जय जयकार करने लग

       फिर कंस ने अघासुर को श्रीकृष्ण को मारने के लिए भेजा। उसने अजगर का  विशाल रूप बना लिया। श्रीकृष्ण   ग्वालों सहित  खेलते  खेलते उसके मुहं को गुफा समझ कर  उसके अन्दर चले गये। अजगर ने अपना मुहं बन्द कर लिया । जिससे ग्वालों का दम घुटने लगा। श्रीकृष्ण समझ गये कि यह कोई राक्षस हैं । तब भगवान् श्रीकृष्ण  ने अपना बड़ा शरीर करके  उसका वध कर  दिया। सभी ग्वाले श्रीकृष्ण को कंधे पर बैठकर जय जय कार करते हुए वापिस गाँव आये । एक दिवस सभी ग्वाल बालो के साथ श्रीकृष्ण यमुना नदी के किनारे खेलने गए।वे एक गेंद से खेल रहे थे।तभी श्रीकृष्ण ने गेंद पर पैर मारा और गेंद उछाल कर यमुना में जा गिरी। श्रीकृष्ण उसे लाने के लिए यमुना नदी की ओर बढे तो सभी ग्वाल बालो ने कहा । नहीं कृष्ण वहां मत जाओ ।वहां बड़ा जहरीला कालिया नाग रहता है।वह तुम्हे मार डालेगा। उसके डर के मारे कोई भी उस ओर नहीं जाता। वह मनुष्य और पशु सभी को मार डालता है।उसके कारण यमुना जहरीली हो गई है। परन्तु श्रीकृष्ण तो प्रजा को अत्याचारियों के पापों से मुक्ति दिलाने ही धरती पर आए थे। वह नदी में गेंद लेने के लिए कूद पडे। कालिया नाग फुंकारता हुआ उनकी ओर आया। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी चतुराई से उसे मार मार कर लहूलुहान कर दिया । उसके फनों में नकेल डाल दिये। तभी कालिया नाग की पत्नियां वहां आ गई और कालिया को छोड़ने के लिए विलाप करने लगी। कालिया नाग भी अपने प्राणो की रक्षा की भीख मांगने लगा और कहने लगा ,अब से मैं किसी को कुछ नहीं कहूंगा और यह क्षेत्र छोड़कर चला जाऊंगा। श्रीकृष्ण उसके फन पर सवार होकर यमुना नदी की सतह पर ऊपर आये। यह दृश्य देखकर सारे ग्वाले आश्चर्य से मंत्रमुग्द हो गए और ग्वाले उनकी जय जयकार करने लगे। यह श्रीकृष्ण कोई साधारण बालक नहीं साक्षात भगवान है

      इस बीच श्रीकृष्ण और बलराम बड़े होते गये और कंस उनको मार नहीं पाया| भगवान श्रीकृष्ण गोकुल में रहकर अनेक लीलाएं दिखाते रहे और अनेक समाज सुधार के कार्य करते रहे। श्रीकृष्ण एक समाज सुधारक थे। श्रीकृष्ण ने अपने जीवन काल में अनेकों कार्य किये थे। गिनती तो यहाँ संभव नहीं है।उन्होंने गोवर्धन-पूजन, कालिया नाग का मर्दन  जैसे  अनेक कार्य किये | श्रीकृष्ण ने इन्द्र की वर्षों से चली आ रही  पूजा  का विरोध किया। लोगों को  जागरूक किया कि हमें जीवन इन्द्र से नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत से मिलता है । यही से  हम ग्वालो को  अन्न  मिलता है  और हमारे पशुओं को चारा मिलता है | गो संवर्धन से हमें कृषि के लिए खाद , ईधन के लिए कंडे ,दूध ,दही ,मक्खन  इत्यादि वस्तुएं मिलती हैं | हमें इन्द्र की पूजा नहीं बल्कि  गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। ग्वालों पर श्रीकृष्ण की इन बातों का प्रभाव पड़ा और ग्वालों ने  इन्द्र-पूजा की जगह पर  गोवर्धन की पूजा शुरू कर की । यह  सब देखकर इंद्र क्रोधित हो गया और उसने गोकुल पर बड़ी मुसलाधार बारिश कर प्रलय मचा दी | जिससे सभी ग्वालो के घर बाहर  पशु  सभी पानी से परेसान होने लगे ।श्रीकृष्ण  सभी ग्वालो को लेकर गोवर्धन पर्वत  के पास ले गए और गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगुली से ऊपर उठा कर इंद्र के घमंड को तोड़ दिया और सभी ग्वालों और उनकी गायों को उसके नीचे आने को कहा। पूरे गॉव वाले  गोवर्धन पर्वत के नीचे आ गये और काफी दिनों तक उसके नीचे रहे तथा ग्वाले गोवर्धन महाराज के जयकारें लगाने लगे | गाँव वाले समझ गये की यह श्रीकृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं बल्कि साक्षात भगवान् का रूप हैं | वे ग्वाले गोवर्धन महाराज के रूप में  श्रीकृष्ण की  पूजा करने लगे | बाकी लोगो ने बाद में उन्हें भगवान मान कर पूजा |

    चहूँओर   श्रीकृष्ण की जय जयकार होने लगी और उनके चमत्कारों के चर्चे होने लगे  | उधर कसं चिंतित था कि जितने भी उसने उन्हें मारने के यत्न किये, वे सब बेकार हो गये थे । श्रीकृष्ण और  बलराम अपनी लीलाएं सभी  को दिखाते रहे | अब कंस ने उन्हें बहाने से मथुरा बुलाकर मारने का बुलावा भेजा |जब  श्रीकृष्ण -बलराम मथुरा पहुंचे तो कंस ने पागल हाथी से उन्हें मारना चाहा | उन्होंने हाथी को पटककर मार डाला | उसके बाद मल्ल  युद्ध के लिए श्रीकृष्ण और बलराम को चुनौती दी गई |एक- एक पहलवानों को  श्रीकृषण और बलराम ने मार डाला |यह देखते ही कंस के सैनिक भी आ धमके।तब ग्वाले भी श्रीकृष्ण बलराम के पक्ष में उन सैनिकों से भिड़ गए और लड़ाई होने लगी। उसके बाद श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस  को मार डाला और समाज को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई अ तथा उसके पाप का अंत किया |कृष्ण ने अपनी माता और पिता देवकी और वसुदेव को तथा अपने नाना उग्रसेन को  कारागार से मुक्त करवाया । 

    भगवान श्रीकृष्ण को भगवान् बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका गोकुल के ग्वालों ने निभाई थी|क्योंकि उन्होंने उनकी सबसे प्रथम  जय जयकार की थी तथा  उन्हें ईश्वर का अवतार समझकर उनकी सबसे प्रथम  पूजा की थी |बाद में सब संसार के लोगों  ने  उनको भगवान माना | उनको  उस काल के क्षत्रिय राजगण उन्हें केवल एक ग्वाला ही समझते थे । ग्वाले  उनके लिए जान की बाजी लगाने के लिए हमेशा तैयार रहते थे | मथुरा में  कंस की एक एक बात की खबर ग्वाले ही लाते थे | क्योंकि ग्वाले मथुरा में  कसं के महल तक प्रतिदिन दूध, घी पहुँचाया  करते थे | भगवान् श्रीकृष्ण ने भी मथुरा की गद्दी पर बैठते ही अपने ग्वाल साथियों को सेना में ऊँचे ऊँचे पद दिए | उस समय के ग्वाले कोई और नहीं बल्कि वर्तमान केअहीर,ग्वाल,ग्वाला,गवली,धनगर,गडरिया,घोसी,गोपाल,गोप,गुजर आदि जैसी जातियों के व्यक्ति ही श्रीकृष्ण के ग्वाले हैं।

     कृष्ण का पूरा बचपन गोकुल और वृन्दावन के ग्वालों के साथ बीता। यशोदा और नन्द बाबा के ममतामयी आँचल व आँगन में में बीता | वह  गोकुल की गलियों में  खेले कूदे -पले-बढ़े। दाऊ, सुदामा और अन्य ग्वाल बालो  के साथ दही-माखन की मटकियाँ फोड़ी, वृन्दावन में गायों को चराया, कदम्ब के पेड़ पर बैठकर  बाँसुरी बजाई ,  गोप-गोपियों और  राधा  के साथ रास किया |  पूतना-वध, शकटासुर वध, कालिया दमन, गोवर्धन धारण जैसी अनेक घटनाएँ  की  । कारागार में जन्म से लेकर प्रभाष तीर्थ अंतिम समय  तक कृष्ण अनेक  प्रसंग किये । गीता का उपदेश दिया और सारे संसार को चकाचौंध कर दिया | महाभारत का सारथी भागवत धर्म का संस्थापक ज्ञान, भक्ति, कर्म, वैराग्य, सांख्य और परिणाम के प्रति आसक्ति न रखते हुए कर्म में लगनशीलता एवं ध्येय के प्रति सत्यनिष्ठा-निष्काम, कर्मयोग, यही गीता का सार है। भगवान् श्रीकृष्ण  यही  भागवत धर्म का आधार है-यही कष्ण का संदेश है।

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