Suryavansh Chandravansh v Agnivansh ki Utpatti (सूर्यवंश,चन्द्रवंश व अग्निवंश की उत्पत्ति)
जब मनुष्य असभ्य से सभी हुआ तो उसका जीवन यापन प्राकृतिक वस्तुओं पर निर्भर रहता था | जैसे जीव जन्तुओं को मार कर खाना | उनकी खाल से तन ढकना | कुछ सभ्य होने पर पशुपालन किया | उनसे उन्हें मांस, घी, दूध, ऊन, खाल मिलती थी | फिर कबीलाई परम्परा शुरू हुई और एक कबीले का दूसरे कबीलों से युद्ध भी होते थे | उसके बाद मनुष्य ने कृषि के महत्त्व को समझा और मनुष्य कृषि करने लगे | हर कबीले का एक सरदार होता था | कालांतर में अनेक सरदारों पर एक ताकतवर व्यक्ति राजा कहलाने लगा | इस तरह अनेक राजा- महाराजे बन गये |
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार पृथ्वी पर प्रलय सोलह बार हो चुकी है | फिर से सृष्टि बनती है | उन मान्यताओं के अनुसार प्रलय के बाद श्री विष्णु भगवान् क्षीर सागर में शेषनाग पर विराजमान थे और उनकी नाभि से कमल उत्त्पन्न हुआ और उसमें से श्री ब्रह्मा जी उत्त्पन्न हुए | उन ब्रह्मा जी ने सृष्टि बनाई और संसार चला | ब्रह्मा जी के पुत्र मारीचि हुए और उनके पुत्र विस्वान हुए | उन्हें ही सूर्य कहा जाता है | सूर्य के पुत्र मनु हुए |मनु के इक्षवाकू हुए | उनके वंशज सूर्यवंशी कहलाये | ब्रहमा जी दुसरे पुत्र अत्रि हुए | अत्री के सोम हुए | सोम को चन्द्रमा भी कहा जाता है | उनके वंशज ही चंद्रवंशी कहलाये |
सूर्यवंश और चन्द्रवंश की उत्त्पत्ति के बारे में ऐसा संभव है कि ब्रह्मा जी के पुत्र मारीचि के पुत्र विस्वानं को सूर्य के सामान चमकने वाले गृह की उपाधि दे दी गई हो | क्योंकि जिस बच्चे का जन्म दिन में सूर्य के प्रकाश में हुआ | इसलिए उसे सूर्य कहा गया हो | कालंतर में उसके वंशज सूर्यवंशी कहलाने लगे | ऐसे ही ब्रह्मा जी के दूसरे पुत्र अत्रि के पुत्र सोम को चन्द्र की उपाधि से विभूषित किया गया हो | क्योंकि जिस बच्चे का जन्म रात को हुआ हो, उसे चन्द्रमा कहा गया हो | इसिलए उसके वंशज चंद्रवंशी कहलाने लगे | सूर्यवंशी और चंद्रवंशी राजाओं की लम्बी वंश परंपरा चली आ रही हैं | धरती पर अनेक कुल सूर्यवंशी और चंद्रवंशियों के राज्य करते थे | इन सूर्यवंशी और चंद्रवंशी राजाओं का वर्णन रामायण, महाभारत, पौराणिक व अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिल जाता है | सूर्यवंशी राजाओं के नामों का वर्णन निम्नलिखित है :-
1. मनु 2.इक्षवाकू 3. विकुशी(शशाद) 4. पर्जन्य5. अनेमा 6.पृथु 7. वृषदश्व(विश्वगश्व) 8. अंध्र(आर्द्र) 9. युवनाश्व 10. श्रावस्त 11. वृहदस्व 12. कुवलायाश्व(कुवलाश्व,धुन्धुमार) 13.दृढाश्व(चंद्राश्व,कपिलाश्व)14.प्रमोढ15. हर्यश्व(वर्याश्व)16. निकुम्भ 17. संहताश्व 18. कुशाश्व 19. प्रसेनजित 20. युवनाश्व 21. मान्धाता 22. पुरुकुत्स 23. त्रसदस्यु 24. हर्यश्व 25. सुमंत 26. त्रिधन्वा 27. त्रय्यारुण 28. सत्यवृत 29. त्रिशंकु 30. हरिशचंद्र 31. रोहितास 32. हरित 33. चंचु 34. विजय (वसुदेव) 35. रुरुक 36. वृक 37. बाहू 38. सगर39.असमंजय(असमंजस)40. अंशुमान 41. दिलीप 42. भगीरथ 43. श्रुत 44. नाभाग 45. अम्बरीष 46. सिन्धुद्वीप 47. अयुताश्व(अयुतायु)48.ऋतुपर्ण 49. सर्वकाम 50सुदास51.सोदास(कल्माषपाद)52.अश्मक53.मूलक54.दशरथ55.ईलिविली(एडविड)56.अश्वसह(विश्वसह)57.दिलीप(खट्वांग)58. दिर्धबाहू 59.रघु 60. अज 61. दशरथ, दशरथ के पुत्र राम,लक्ष्मण,भरत,शत्रुघ्न हुए 62. राम(राम के लव कुश पुत्र हुए) 63. कुश 64. अतिथि 65. निषध 66. नल 67. नभ 68. पुंडरिक 69. क्षेमधन्वा 70. देवानीक 71.अहिनागु 72.रूप 73.रुरु 74. पारियात्र (परियाग) 75. दल 76. बल (छल) 77. उक्थ 78. व्रजनाभ 79. शंखनाभ(शंखण) 80.व्युथितास्व(ध्युपिताशन)81.विश्वसह 82. हिरण्यनाभ (हिरण्याक्ष) 83. पुष्प 84. ध्रुवशक्ति(ध्रुवसन्धि)85.सुदर्शन86.अग्निवर्ण 87. शीध्र 88. मरू 89. प्रसुक्षत 90. सुसन्धि(सुगन्धि)91.अमर्ष92.सहस्वान (मह्स्वान) 93. विश्वभन 94. वृह्दबल 95. वृह्द्रर्थ 96. उरुक्षय 97.वात्सब्युह 98. प्रतिव्योम 99. दिवाकर 100. सह्देव 101. वृह्दश्व 102. भानुरथ 103. प्रतितोश्व 104. सुप्रतीक 105. मरूदेव 106. सुनक्षत्र 107. किन्नर 108. अंतरिक्ष 109. सुपर्ण 110. अमित्रजीत 111. बह्द्राज 112. धर्मी 113. कृतजय 114. रणजय 115. संजय 116. शाक्य 117. शुद्धोधन 118. सिध्दार्थ 119. राहुल 120. प्रसेनजीत 121. क्षुद्रक 122. कुण्डल 123. सुरथ 124. सुमित्र |
मध्यकाल में अनेक राजा- महाराजे अपने को सूर्यवंश से जोड़ते हैं|उनमें गहलोत,कछवाहा,राठौड, निकुम्भ, बडगुजर, गौत्तम, गौड़, बैंस, सिकरवार, गोहिल, मौर्य, चावड़ा, निमी, दीक्षित इत्यादि है |

इसी प्रकार चंद्रवंश का वर्णन भी पौराणिक व अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिल जाएगा | ब्रह्मा जी के दूसरे पुत्र अत्रि का पुत्र चन्द्र हुआ | चन्द्र को सोम भी कहा जाता है | उसी से चन्द्रवंश का प्रादुर्भाव हुआ | जोकि इस प्रकार से है :-
1 . चन्द्र (सोम ) 2. बुद्ध 3. पुरुरवा 4. आयु 5. नहुष 6. ययाति 7. ययाति, (ययाति के पुत्र यदु, तुर्वसु, द्रह्यु, अनु, पुरु हुए ) 8. पुरु 9. प्रवीन 10. मनस्यु 11. शक्त 12. अंगभानु 13. ऋचेयु(अनाधृष्ट 14. मतिनार (मतनार) 15. तस्यु(तसु) 16. इलिन(एलीन) 17. दुष्यंत 18. भरत 19. मन्यु(भुमन्यु) 20. वृह्क्षत्र 21. सुहोत्र 22. हस्ती 23. अजमीढ़ 24. ऋक्ष 25. संवरण(स्वरण) 26. कुरु 27. जन्हू 28. जनमेजय 29. सुरथ 30. विदुरथ 31. सार्वभोम 32. जयत्सेन 33. आराधित 34. अयुतायु 35. अक्रोधन 36. देवातिथि 37. ऋक्ष 38. भीमसेन 39. दिलीप 40. प्रतीप 41. देवापी शांतनु 42. विचित्र वीर्य( विचित्र वीर्य के पुत्र धृष्टराष्ट्र, पांडू, विदुर हुए) 43. धृष्टराष्ट्र (धृष्टराष्ट्र के दुर्योधन सहित सौ पुत्र हुए) 44. दुर्योधन 45. युधिष्ठिर (पांडू के पुत्र युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव हए) 46. अर्जुन (अर्जुन का पुत्र अभिमन्युं हुआ) 47. परीक्षित 48. जनमेजय 49. शतानिक 50. सह्स्त्रानिक 51. अश्वमेध 52. अधिसीभ कृष्ण 53. निचछु 54. उष्ण 55. चित्ररथ 56. शुचिरथ 57. वृष्णिमान 58. सुषेण 59. सुनीथ 60. रुच 61. नृचक्ष 62. सुखीबल 63. परिप्लव 64. सुनय 65. मेधावी 66. नृपंजय 67. मृद 68. तिम्म 69. वृहद्रथ 70. वसुदान 71. शातानिक 72. उदयन 73. वहिनर 74. दण्डपाणी 75. निरामित्र 76. क्षेमक |
प्रसिद्ध चंद्रवश से यादव, हैहय, भाटी, गहरवार,चन्देल,झाला,बनाफर,तंवर,जाडेजा, सेंगर इत्यादि वंश निकले हैं|चन्द्रवंश की 32 वीं पीढ़ी में हस्ती नामक राजा ने हस्तिनापुर(दिल्ली)बसाया|चन्द्रवंश की 44 वीं पीढ़ी में ययाति के पुत्र यदु से यादव वंश चला|उनकी 55वीं पीढ़ी बाद युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव पांच पांडव हुए और दुर्योधन, दुशासन सहित 100 कौरव हुए| यदुवंश की दूसरी शाखा में 58वीं पीढ़ी बाद कंस हुआ|द्रपद की पुत्री द्रोपदी चन्द्रवंश की 49वीं पीढ़ी में हुई| श्रीकृष्ण, बलराम,कौरव,पांडव सभी चंद्रवंशी थे|यदुवंश के सौ कुलों के नेता भगवान् श्रीकृष्ण थे|ययाति के दूसरे पुत्र द्रह्यु की 5वीं पीढ़ी में गांधार नामक राजा हुए|उन्होंने गांधार नागर बसाया|जो वर्तमान में अफगानिस्तान में कंधार के नाम से स्थित है|दुर्योधन का मामा शकुनी गांधार नरेश था|चन्द्रवंश की दूसरी शाखा से हैहय वंश चला|जिनकी राजधानी महेश्वर थी | हैहय से कलचुरी वंश निकला|हैहय वंश में सुप्रसिद्ध राजा कार्तवीर्य व उसका पुत्र सहस्त्राजुन 27 और 28वीं पीढ़ी में हुए | सह्स्त्रजुन के 100 पुत्र थे|उनके नाम से अनेक वंश चले| चन्द्रवंश की एक शाखा की 28वीं पीढ़ी में राजा शाकुंतल हुए| उनके चार पुत्र कालिंजर, केरल, पाण्ड्य व चोल हुए| चारों ने अपने नाम पर नये राज्यों की स्थापना की|चन्द्रवंश की 10वीं पीढ़ी में कुशिक नामक राजा हुए| उनके पुत्र गाधी हुए| गाधी के सुप्रसिद्ध पुत्र विश्वामित्र हुए | चन्द्रवंश की 56वीं पीढ़ी में राजा परीक्षित हुए|जिनको तक्षक ने डसना चाहा था| चंद्रवंशी बुद्ध की पीढ़ी में हस्ती की पीढ़ी में युधिष्ठिर(पांडव) हुआ|उसने हस्तिनापुर का किला बनवाया और उसका नाम इन्द्रप्रस्थ रखा|युधिष्ठिर के (परमार-तुंवर/तोमर) वंशजों ने 30 पीढ़ी तक इन्द्रप्रस्थ की गद्दी पर राज्य किया|परमार वंशज क्षेमराज को उसके प्रधान बिसर्प (तक्षक वंशी) ने उसे मार कर इन्द्रप्रस्थ की गद्दी छीन ली | बिसर्प के वंशजों ने 38 पीढयों तक राज्य किया| 38वें राजा राज्यपाल को कुमाऊं के राजा सुखवंत ने मारकर इन्द्रप्रस्थ की गद्दी छीन ली|तुंवर (तुर्वस) वंशी विक्रमादित्य को पुन: इन्द्रप्रस्थ का राज्य मिल गया|तुंवर(तोमर) वंशजों ने 19 पीढ़ी तक इन्द्रप्रस्थ में राज्य किया| उसी वंश में राजा अनंगपाल तोमर निर्वंश रहा |

अनेक वंश यह दावा करते है कि उनकी निकासी प्रसिद्ध सूर्यवंश और चंद्रवश से है |कालांतर में सूर्यवंश और चन्द्रवंश के बाद एक अन्य वंश का भी वर्णन अग्निवंश के रूप में मिलता है|ऐसा कहा जाता है कि धरती क्षत्रियों के समाप्त हो जाने के बाद वशिष्ठ ऋषि ने आबू पर्वत पर हवनकुंड बनाया और मंत्रौचार करके अग्निकुंड से चार युवको को प्रकट किया और उनके नाम रखे- चौहान, परमार, सोलंकी, परिहार |उन चारों युवकों ने पृथ्वी पर राज्य किया और वे चारों अग्निवंशी कहलाये| पुराणिक ग्रंथों में वर्णन है कि परसुराम ने 21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों का विनाश किया और पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया| इसका यह अर्थ हुआ कि कोई पुराणिक क्षत्रिय वंश पृथ्वी पर बचा ही नहीं तो फिर कलयुग में इतने राजे- महाराजे कहाँ से उत्तपन हो गये|उन सभी राजे महाराजाओं ने अपने को सूर्यवंशी और चंद्रवंशी कहा और वे अपने को राजपूत कहलाने लगे|क्या वास्तव में वे सूर्यवंशी श्रीराम और चंद्रवंशी श्रीकृष्ण के वंशज थे या केवल उन्होंने अपने को श्रेष्ट दिखलाने के लिये उनसे जोड़ लिया|कर्नल टॉड ने सभी राजपूतों को विदेशियों की संतानें लिखा है|उनका विश्लेषण मैं अपने लेखों में आगे करूँगा |
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