प्राचीन काल में भारत में वर्ण व्यवस्था थी और कालान्तर में उसी वर्ण व्यवस्था ने जाति व्यवस्था का रूप धारण कर लिया। कहा जाता है कि जब मनुष्य असभ्य था तो वह जानवरों की तरह जानवरों का शिकार करके उसके मांस से अपनी भूख मिटाता था और जब उसे ठंड लगती थी तो उसकी खाल से अपना तन ढकता था I जब मनुष्य से असभ्य से सभ्य हुआ था तो उसने सर्वपथम पशुपालन किया और उससे उसे दूध ,मांस ,ऊन मिलता था I फिर कबिलियाई व्यवस्था बनी I शुरुआत में चरागाहों के लिए युद्ध होते थे I फिर धीरे धीरे कृषि व्यवस्था बनी और लोग किसानी करने लगे I इसीलिए चार-चार वर्ण और सैकड़ों जातियां पशुपालकों की वंशज है। बाद में ग्राम व शहर बसे। समाज का सुचारू रूप से चलाने के लिए चार वर्षों में बांटा गया। वे चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शुद्र थे। जो व्यक्ति शिक्षा व धार्मिक कार्य करते थे वे ब्राह्मण वर्ण के कहलाने लगे । यद्ध व रक्षा के कार्य करने वाले व्यक्ति क्षत्रिय वर्ण के कहलाने लगे I कृषि, पशुपालन व व्यापार के कार्य करने वाले व्यक्ति वैश्य वर्ण के कहलाने और जो जो सभी की सेवा करते थे, वे व्यक्ति शूद्र वर्ण के कहलाने लगे ।
वर्ण कोई जाति व्यवस्था नहीं बल्कि समाज में कार्य करने के चार विभाग थे I प्राचीन काल में कोई भी व्यक्ति किसी भी वर्ण का कार्य कर सकता था। विष्णु पुराण वर्णन है कि मनू के दोहित्र (पुत्री का पत्र) पुरन्धरा हुआ। उसका आयु, आयु के पांच पुत्रों में से एक पुत्र का नाम क्षत्रवद्ध था। क्षत्रवृद्ध का पुत्र शुनहोत्र हुआ। शुनहोत्र के तीन पुत्र काश, लेश और गृत्समद हुए। इनके शौनक पुत्र हुआ । उन्होंने चारों वर्णों को अपनाया। हरिवंश पुराण में लिखा है कि से उसका पुत्र वत्सभूमि हुआ .भार्गव से उसका पुत्र भार्गभूमि हुआ।भार्गव है वंश में आंगिरस के पुत्रों ने चार वर्णो ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र को अपनाया।बाह्मण पुराण में लिखा है कि वेणुहोत्र के पुत्र क्षत्रिय राजा गार्ग्य के पुत्र गर्गभमिऔर वत्स हुए। इन दोनों के पुत्र ब्राह्मण और क्षत्रिय हुए।
चन्द्रवंशी क्षत्रिय पुरूवा के पुत्र आयु हुए। उनके राभ,राभ के रभस,रभस के गंभीर और आत्रिय पुत्र हुए। उनके ब्राह्मण हुए। इसी कुल में अप्रतिरथ के पुत्र कण्व हुए। कण्व के पुत्र मेधातिथि हुए। मेधातिथि के काण्वायन हुए। जिससे काण्वायन ब्राह्मणों की उत्पत्ति हुई। इसी क्षत्रिय वंश में अजमीढ़ के कुल में प्रियमेधादिक ब्राह्मण हुए। क्षत्रिय अजमीढ़ के सप्तम पुरुष में मुद्बल का जन्म हुआ। उसमें मोद्वल्य नामक क्षेत्रोपेत ब्राह्मण हुए। गर्ग के भ्राता महावीर्य के पुत्र उरूक्षय के तीन पुत्र त्र्य्यरूण,पुष्करी और कपि क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण हए। अनेक क्षत्रिय विश्वामित्र, कौशिक, कण्व, आंगिरस, मौद्वल्य, वात्स्य, शुनक, हरित, प्रभूति गोत्र क्षेत्रोपेत गोत्र है। यह अपनी तपस्या से ऋषिपद को प्राप्त हुए। अनेक क्षत्रिय अपने कर्मों द्वारा वैश्य वर्ण को प्राप्त हुए। भागवत में लिखा है कि क्षत्रिय नेदिष्ट का पुत्र नाभाग जो कर्म से वैश्यता को प्राप्त हुआ । नाभागारिष्ट के पत्र वैश्य से ब्राह्मण हो गए। भलन्द, वन्द्य और संस्कृति यह तीनों वैश्य भी ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्यों में ऋषिपद को प्राप्त हुए।
विश्वामित्र चंद्रवंशी क्षत्रिय थे, उन्होंने क्षत्रिय वर्ण त्यागकर, ब्राह्मण वर्ण को अपनाया। राजा हर्ष और भोज क्षत्रिय होते भी संस्कृत के प्रकांड पंडित हुए। कालीदास एक चरवाहा से संस्कृत के महाप्रकांड पंडित हए। वेदव्यास एक मल्लाह से महाभारत जैसे महाकाव्य के रचियता हुए और उन्हें ऋषियों में सबसे उत्तम स्थान प्राप्त हुआ। आज भी साधू संतों, ऋषि मुनियों की गद्दी को व्यास गद्दी कहा जाता है।
वाल्मीकि एक शिकारी से संस्कृत के प्रकांड पंडित हुए और उन्होंने रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की । अनेक सूर्यवंशी और चंद्रवंशी राजा महाराजा पशु पालन किया करते थे। क्षत्रियों का कार्य रक्षा व युद्ध करना था, किंतु युद्ध हमेशा नहीं होते थे, इसीलिए क्षत्रिय शांतिकाल में जीविकोपार्जन के लिए कृषि एवं पशुपालन किया करते थे। कर्मों के आधार पर वर्णाश्रम बने थे और बाद में उन कर्मों ने मनुष्य को धीरे धीरे जातिय समूहों में जकड़ डाला। जो व्यक्ति जो कर्म करता था, वह उसका जातिगत धंधा ही बन गया। जाति बन्धन कठोर होने पर समाज को कर्म आधारित पेशे को जन्म आधारित कर दिया गया I इससे समाज में ऊँच व् निम्न शब्दों का प्रचालन बढ गया I जिससे कालान्तर में अनेक जातियों का उदय हुआ । धीरे धीरे कबीलों के सरदारों ने सब पर वर्चस्व हासिल कर लिया और सारे समाज की सत्ता उनके हाथो में सिमट गई I कालांतर में वही लोग राजे महाराजे कहलाये I