मरहट्टा -मरहठा -मराठा लड़ाकू लोगों के समूह का पदनाम है | कुणबी, धनगर(गडरिया ) व अन्य लोगों का क्षेत्रीय भौगोलिक  नाम है |  महाराष्ट्र राज्य 1 मई 1960 को सैंट्ल प्रोंविसीज, बरार और बोम्बे प्रेसीडेंसी को मिलाकर बना था |  खानदेश, कोंकण, मराठवाडा व विदर्भ के 34 जिलों को मिलाकर महाराष्ट्र राज्य  बना हैं । 

  मराठा शब्द का प्रयोग:- मराठा शब्द तीन रूप में प्रयोग किया जाता है | मराठी भाषा बोलने वाले मराठे,  महाराष्ट् के रहने वाले मराठे, एक विशेष जाति जो अपने को 96 कुली मराठा कहलाती है, के रुप में प्रयोग किया जाता है | इस शब्द को समझने के लिए हमें इतिहास के पन्ने उलटने पड़ेंगे |  

कुणबी और धनगर:- मनुष्य असभ्य से सभ्य हुआ तो सबसे पहले उसने पशुपालन किया और कालान्तर में  कृषि कर्म को अपनाया | वे पशुधन पालने के कारण धनगर(चरवाहा) और कृषि कार्य करने के कारण कुणबी(कृषक) कहलाये | यही दो सबसे प्राचीन कबीले थे| लगभग आठ सौ साल तक मुस्लिम सुल्तानों, नवाबों व बादशाहों का राज रहा और उनके अत्याचारों  के काले कारनामों से भारत का  इतिहास में भरा पडा है |  उन्हीं दो कबीलों से अनेक  राजवंशों का उदय भी हुआ | उनमें मौर्य,  सेन्द्रक,  राष्ट्कूट, चालुक्य, सिलाहार, यादव आदि वंश हुए है |  मराठा शब्द से पूर्व में धनगरों(गडरियों )में मौर्य राजवंश,  देवगिरी के यादव,  विजयनगर साम्राज्य,  जिंजी का कोण राजवंश, पल्लव राजवंश,  होयसल राजवंश, कदम्ब राजवंश, बनवासी राजवंश, कलेदी, बिदनूर,  इक्कर,  कृष्णागिरी, राष्ट्कूट (मान्यखेत),  बारगल (तलोदा) इत्यादि  हुए है |

     दक्खनी लोगो के लिए मरहठा:- उस समय मराठा शब्द प्रचलन में नहीं आया था, केवल दक्खन और दखिनी शब्द प्रयोग  होता था | औरंगजेब का काल आते आते मरहट्टा शब्द शत्रुओं द्वारा दक्खन के लोगों के लिए  प्रयोग किया जाने लगा | वे बाद में उस क्षेत्र  को मरहट्टा क्षेत्र  भी कहा जाने लगा |इतिहासकारों का मत है कि,महाराष्ट् में रट्टा नामक जाति रहती थी | उनके वहां  छोट छोटे कबीले थे | उन सभी को मिलाकर “महारट्टा”  कहा  जाता था | बाद में रट्टा जाति का कुछ पता नहीं लगता | संभवत: दखिन के राष्ट्कूट वंश की उत्पत्ति उसी से हुई हो| कुछ का कथन  है कि,”महार” लोगों के कारण उस क्षेत्र का नाम “महारट्टा” पडा |

    मार कर हटने वाले मरहट्टा:-  इतिहासकारो का मत है कि छत्रपति शिवाजी के नेतृत्व में कुणबी (कृषक)  और  धनगर(चरवाहा)  जातियों के लोगों ने मिलकर मुगलों के विरुध्द  लडाई लडी, तो अन्य लोगों खासकर मुगलों ने उन्हें  “मरहट्टा “   कहा | पूर्व में  यह नाम नहीं था | आम लोगों की राय है कि ,” मरहठा” का अर्थ शक्तिशाली होता है  या तो सामने वाले शत्रु को मार डालता था  या फिर वह स्वयं मर कर हटता था| इसीलिए उन्हें मर+हटा  =मरहटा- मरहठा  – मराठा कहा जाने लगा था |

    मराठो की ख्याति :-  मि0 आर0बी0 रसल और कर्नल टोन के अनुसार,” मराठा जाति कुणबी और धनगर से मिलकर बनी है |”(1)

     मि0 जे0 एच0 हट्टन के अनुसार,”  मराठों का सबसे पहले उल्लेख् संभवत: 13वीं और 14वीं शताब्दी में मिलता है | 17वीं शताब्दी में उन्होंने एक योद्धा  जाति के रुप में ख्याति पायी| 18 वीं शताब्दी मं यह करीब करीब सम्पूर्ण भारत के स्वामी ही बन गये थे | इनकी गिनती क्षत्रियों में होती हे जो किसानों और चरवाहों में से थे । वस्तुत:  संकुचित अर्थो में मराठा एक ऐसे समाज को कहते है | जिनमें कुणबी, धनगर और अर्ध राजपूत है |“(2)

फ्रांस के लेखक लुईस रुसले का कथन है कि,” मराठों का ज्यादातर भाग खेतीहर (कुणबी) और चरवाहों(धनगरो) का था | वे अपने जन्म स्थान  से संबंधित प्राकृतिक पहाडी निवास स्थानों कं मध्य संतुष्ट थे |  इसके कारण उनमें अत्याधिक गर्व और साहस था, जिसकी वजह से वे अपनी आजादी एवं स्वतंत्रता को बचाए  रखने में सफल रहे|” (3)

बाजीराव पेशवा

       धनगर ही मावले सैनिक :-छत्रपति शिवाजी की अनेक गुरिल्ला टुकडियों का निर्माण धनगर(गड़रियो ) ने किया था| “ छत्रपति शिवाजी महाराज के विश्वासपात्र मावलों में अधिकांश धनगर जाति के  वीर योद्धा  थे | मावल सेना में घाट, मावल और कोंकण प्रांत के रंगरुट भर्ती किये जाते थे | वहां के हटकर(धनगर) जाति के सिपाही परम विश्वासी और पहाडी लडाई में बडें दक्ष होते थे | वे स्वयं अपने हथियार लाते थे | गोली,  बारुद, जिरह बख्तर आदि लडाई का सामान राज्य देता था| वे लोग विलक्ष्ण लक्ष्य बेधक होते थे | पोशाक में जांघिया, कमरबंध और दुपट्टा रखते थे | मावल प्रांत वाले प्राणों की बाजी लगाकर लडते थे |  महाराणा प्रताप के जिस तरह भील सर्वस्य थे, उसी तरह छत्रपति शिवाजी के लिए धनगर अपना सर्वस्य बलिदान करते थे |”(4)

मल्हार राव होलकर

मरहठा   नाम प्रकाश में कब आया:-मि0 आर0वी0 रसल लिखते है कि,” मराठा जाति सैंनिक  सेवा से अस्तित्व में आई है | यह कोई अलग जाति नहीं है | डफ ग्रांट ने लिखा है कि 15वीं 16वीं शताब्दी में बीजापुर और अहमदनगर के मुस्लिम सुलतानों के यहां सात परिवार निंबालकर, घारपुरे, भौंसला सैंनिक सेवा किया करते थे | उस समय वे कोई भी अपने को मराठा नहीं कहलाता था | पहली बार जब  शिवाजी महाराज के गुरिल्लाओं ने औरंगजेब के विरुद्ध  लडाइयां लडी,  तब  यह मरहट्टा – मरहठा नाम प्रकाश में आया।“ (5)

मल्हार राव होलकर

     वास्तव में  मराठा कोई जाति नहीं बल्कि कुणबी, धनगर व अन्य जातियों का सम्मिलित एक पद नाम है | जोंकि औरंगजेब के काल में  मुगलों द्वारा  दिया गया नाम है|

  “देवगिरी  का शेणवां राजवंश धनगरों का था | उसकी स्थापना रामचन्द्र नामक एक धनगर ने 12वीं शताब्दी में की थी | उसी कुल में शिवाजी की माता जीजाबाई का जन्म हुआ था |”(6) इतिहासकार छत्रपति शिवाजी महाराज को कुणबी मानते है | लेकिन अनेक इतिहासकारो ने शोध व अध्ययन से यह सिद्ध  किया है कि  शिवाजी महाराज धनगर थे |“दक्षिण में कोल्हापुर के पास जो पठार है, वहां बडी संख्या में धनगर मराठा निवास करते थे | जोकि  भेड बकरियां पालते थे | उन्ही धनगरो में से बहुत से कुशल और वीर सैंनिक वंश उत्पन्न हुए| हिन्दू कुलभूषण छत्रपति शिवाजी महाराज धनगर समाज में जन्म हुआ था |”(7) श्री रामचन्द्र ढेरे और श्री सिराजू काटकर जैसे इतिहासकारों ने भी छत्रपति शिवाजी को धनगर सिद्ध  किया है |”(8)

महादजी सिंधिया

      उसी प्रकार ग्वालियर के शिन्दे को कुणबी कहा जाता है | “परन्तु  उनके बारे में धनगर भी लिखा मिलता है |”(9) इंदौर की महारानी देवीश्री अहिल्याबाई होलकर अहमदनगर के चौंडीगांव के पटेल धनगर मनकोजी शिन्दे की पुत्री थी | उसी प्रकार बडौदा के गायकवाड को कुणबी लिखा है तथा “अनेक लेखकों ने उन्हे धनगर भी लिखा है |”(10) बडौदा  महाराज के वंशज गायों को बाडे में रखने के कारण गायकबाड कहलाते थे | इंदौर का होलकर  राजवंश स्पष्टत: धनगर(गड़रियों ) का था |

मराठा सैनिक

       छत्रपति शिवाजी महाराज के धनगर(गडरिये )  सेनापति व सरदार :- निंबाजी पाटोला,बलवंतररव देवकाते,  धनोजी शिंगाडा,  मणकोजी धनगर, गोदाजी पांढरे, हिरोजी शेलके, व्यंकोजी खांडेकर, भवाणराव देवकाते,  येशाजी थेराट,  इन्द्राजी गोरडं,  दादाजी काकडे, अगदोजी पांढरे,बनाजी बिरजे,  संभाजी पांढरे, नाईक जी पांढरे इत्यादि के अतिरिक्त मराठा सेना में देवकाते , कोलेकर,  काले, मासाल,  खरात, पाटोले, फणसे,डांगे, बरगे, गरुड, बने, पांढरे, बडंगर, कोकरे,आलेकर, हजारे, शेलके,खताल, टकले, काकडे, हाके, भानुसे, आगलावे, बहादुर राजे, शेंडगे,  गोपडे,  धायगुडे,  मदने,  सलगर,  माने,  बारगल,  गाडवे,  रुपनबर, सोनवलकर,बाघे,  मोकाशी,  चोपडे,  बाघमोडे, शिन्दे,  लाम्भाते, पुगकर, बुले, शिंगाडे,  महार्नवर, गलांडे,  बाघमारे,बहाड,   धाईफोडे, इत्यादि  थे |

यशवंत राव होलकर

     इनके अतिरिक्त अनेक मराठा रियासतों इंदौर, ग्वालियर, धार ,देवास, पुणे, कोल्हापुर, सातारा आदि की मराठा सेना में बहुत बडी संख्या में धनगर सैंनिक थे ! “पानीपत सन 1761 ई0 में मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ  ने एक सभा के दौरान चिल्लाते हुए कहा – बेकार मराठा सेना में 33% प्रतिशत धनगरों(गड़रियों ) को रखा हुआ है |”(11)

      मराठा शब्द का उल्लेख् करते  हुए जैनिज्मस 598 फोलो एरस में लिखा है, “ मराठा शब्द का प्राचीन  प्राकृत  शब्द महारट्टा है | यह एक भौगोलिक नाम (पद) है,   जोकि महाराष्ट् के सभी लोगों के लिए प्रयोग होता था | लेकिन बाद में यह  शब्द सभी योद्धाओं के लिए महाराष्ट् में प्रयोग होने लगा | राजा शिवाजी दखिन के महान योद्धा ने, वहां के सभी लोगों को बिना क्षेत्र  और जाति के शत्रुओं के विरुद्ध  लडने का अवसर दिया | इसलिए प्रत्येक व्यक्ति  एक मराठा था | वे सारे सैंनिक स्वराज्य  के लिए संघर्ष  कर रहे थे | इसलिए वे सभी मराठे थे | आज से लगभग 80 वर्ष पूर्व के स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट यदि आप देखे तो उसमें  आपको लिखा मिल जाएगा | मराठा सुतार, मराठा सुनार, पारिट मराठा, लौहार मराठा, कुणबी मराठा, धनगर मराठा  इत्यादि|”

       वास्तव मराठा शब्द स्वाभिमान व वीरता के प्रतीक के रुप में प्रयोग किया जाता था | मराठा प्रदेश के रहने वाले सभी लोग मराठा कहलाते थे | मुस्लिम बादशाहो, सुल्तानो व नवाबों के अत्याचारों से त्रस्त  जनता शिवाजी के नेतृत्व में एकत्रित हो गयी और एक जन आन्दोलन खडा हो गया | उनमें कुणबी,  धनगर, कोली,  कायस्थ,  ब्राह्मण इत्यादि जातियों का नाम उल्लेखनीय हैं | उन सभी को शिवाजी महाराज ने एक लडाकू योदधा  बना दिया | मुगलों ने उस काल में उन्हें वीरता व पराक्रम के कारण (मर-कर या मार- कर हटने कारण्)  मर+हटा = मरहट्टा -मरहठा-मराठा कहा |                 

  छत्रपति शिवाजी की सेना में प्रभू(कायस्थ) जाति के सात सेनाध्यक्ष और मंत्री थे| उनमें से मुरारजी देशपांडे और बाजी प्रभू देशपांडे थे | बालाजी आवजी,शिवाजी महाराज के  सचिव पद पर थे | वे मराठा साम्राज्य के मुख्य विचारक(Major Think Tank) थे | यह सभी मराठा कहलाते थे |

बाजी प्रभु देशपांडे
  • उसी प्रकार छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ कंधा से कंधा मिलाकर लडने वाले कोली जाति के लोग भी थे | उनका कहना है कि शिवाजी महाराज के प्रधान सेनापति और कई अन्य सेनापति कोली जाति के थे | मराठा इतिहास में  मुख्यत: मावलियों और कोलियों से भरी शिवाजी की सेना का शौर्य का गौरवपूर्ण वर्णन है | छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में सेनापति तानाजी मालसुरे जैसे वीर योद्धा  थे | जिन्हे शिवाजी मेरा शेर कहा करते थे |“गढ आला पण सिंह गेला” कहावत उन्हीं का एक प्रसंग है | शिवाजी का जो समुन्द्री बेडा  था | उसमें कोली जाति के सैंनिक थे और वे सभी मराठा कहलाते थे |
सेनापति तन्हाजी मालुसरे
  • उसी प्रकार छत्रपति शिवाजी महाराज के काल में और बाद में अनेक ब्राह्मण सेनापति भी थे | उनमें दादा कोंडदेव,  बालाजी विश्वनाथ पेशवा,  बाजीराव पेशवा, रघुनाथ राव पेशवा, नाना साहब, गंगाधर राव इत्यादि प्रमुख है और  वे सभी मराठा कहलाते थे |

      स्वतंत्रता से पूर्व सभी मराठे :- अनेक उदाहरण मराठा इतिहास में भरे पडे है | स्वतंत्रता से पूर्व मराठा प्रदेश के रहने वाले  सभी मराठा कहलाते थे |  सत्यता यही है कि मराठो में अधिकतर संख्या कुणबियों और धनगरों की थी | क्योंकि यही सबसे प्राचीन कबीले थे | समय और काल के  थपेडों में कुछ राजपूत व अन्य लोग भी उनमें जा मिलें | उससे मूल कुणबी और धनगर वंशो में और वृद्धि हुई | जब कुणबी और धनगरों ने सैंनिक जीवन अपना लिया तो वे बडे- बडे सेनापति,  सरदार,  जागीरदार, वतनदार,पालेगार  व देशमुख बन गये | वे अपने को मराठा कहलाने लगे तथा जो कृषि व पशुपालन के पेशे से जुडे रहे, वे कुणबी और धनगर कहलाते रहे | शिवाजी से पूर्व में निंबालकर,  घारपुरे,  भौंसला, चव्हाण, पंवार, सोलंकी, सूर्यवंशी बीजापुर और अहमदनगर के सुल्तानों की सेवा में थे | जब शिवाजी महाराज  ने प्रसिध्दी पाई  और उनकी सेना को मुगलों के काल में मरहट्टा  नाम से सम्बोधित किया जाने लगा तो उन पूर्व लोगों ने भी अपने को मरहट्टा-मरहठा- मराठा कहलाने में गौरव अनुभव  करने  लगे |  बाद में वे लोग अपने को श्रेष्ठ व  क्षत्रिय  मूल दिखलाने के लिए राजपूत वंशो से जोड़कर  निकासी दिखलाने लगे | उसका उदाहरण शिवाजी महाराज थे |

शिवाजी का राज्याभिषेक :-शिवाजी को राजा बनाकर राजतिलक करने की बारी आई | तो महाराष्ट् के ब्राह्मणों ने उनका यह कहकर राजतिलक करने से मना कर दिया कि शिवाजी की जाति का पता नहीं है और वह क्षत्रिय भी नहीं है | अन्त में  शिवाजी की झूठी वंशावली लिखवाई गई और उनकी निकासी चित्तौड के  शिशोदिया वंश से बतलाई गयी तथा काशी से एक गरीब ब्राह्मण गंगाभट को लाकर उनका राज्याभिषेक करवाया गया तथा उन्हें छत्रपति की उपाधि से विभूषित किया गया | शिवाजी महाराज ने  उसे मालामाल कर दिया  | प्रसिद्ध  इतिहासकार राजवाड़े के अनुसार, “शिवाजी की क्षत्रिय उत्पत्ति शुद्ध  राजनितिक कारणों से मानी गई है |” यदुनाथ  सरकार के अनुसार, “अन्य पूर्व के लोग  भौसले वंश के लोगों को छोटा मानते थे | बालाजी आबजी  तथा शिवाजी के अन्य अभिकर्ताओं ने उनकी झूठी वंशावली  गढ़ी थी | किंकेड  और पारसनीस का कथन कि  राजा शिवाजी की राजपूत उत्पत्ति, निराधार है |…. क्योंकि काशी के गागा भाट  को सात करोड़ दस लाख रूपये दिये गये थे | उसने कहा कि शिवाजी के पुरखे क्षत्रियों का आचरण त्याग कर  पतित हो गये थे | इसलिए शिवाजी ने प्रायश्चित किया और उन्हें जनेऊ पहना कर क्षत्रिय बनाया |”

        आजादी से सौ डेढ सौ वर्ष पहले ऐसे लोगों के 96 कुल एकत्रित हो गये और उन्होनें अपने को 96 कुली मराठा  कहलाना शुरु किया तथा बाकी लोग कुणबी मराठा, धनगर मराठा, प्रभू मराठा, कोली मराठा, सुतार मराठा इत्यादि कहलाते रहे | धनगर और 96  कुली मराठा कहलाने वाले लोगो के ज्यादातर  उपनाम (आढनॉव) भी एक से हैं| जैसे पंवार , चव्हाण,  सोलंकी,  गहलोत,  चंदेल, राठौड, शिशोदिया, तंवर, जादव,घाटगे, भौंसले, गावडे, बनसोड,माने, मोरे, शिन्दे,लोखंडे, महाडिक,घोरपडे, थोराट, गायकवाड, चालुक्य, सावंत इत्यादि | इससे यही सिद्ध  होता है कि मराठों  में ज्यादातर भाग धनगरों और कुणबियों का था |

      पेशवाई का काल आते- आते जाति की हैसियत से ब्राह्मण अपने को सबसे ऊंचा मानने लगे थे और बाकी को छोटा । इसलिए मराठा शब्द को सबसे पहले ब्राह्मणों ने छोडा और उन्होंने अपने को मराठा कहलाना बंद कर दिया तथा वे केवल ब्राह्मण कहलाने लगे | आजादी के पश्चात जब मराठा प्रदेश का नाम महाराष्ट्  हो गया और भारत का संविधान बना तो अनेक जातियों को सामाजिक, आर्थिक रुप पिछडी होने के कारण आरक्षण दिया गया |  अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और सन 1990 में अन्य पिछडा वर्ग बनाकर आरक्षण दिया गया | आजादी के पहले  सभी जातियां  अपनी मूल जाति के साथ मराठा शब्द का प्रयोग करती थी |  आरक्षण की  जातियों की सूची से 96 कुली मराठा कहलाने वाले को आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिणिक व राजनैतिक  रुप से सक्षम होने के कारण मराठा शब्द को आरक्षण की परिधि से बाहर रखा गया | उसके कारण ही जो जातियां  आजादी से पहले कुणबी मराठा,  धनगर मराठा,  कोली मराठा, लौहार मराठा,  सुनार मराठा, सुतार मराठा  इत्यादि का प्रयोग करती थी, उन्होनें मराठा शब्द का प्रयोग करना  बंद कर दिया | क्योंकि उसके लिखने से उनको आरक्षण नहीं मिल सकता था | इसलिए  वे केवल कुणबी,  धनगर, सुनार,  सुतार आदि लिखने लगी | क्योंकि मराठा  लिखने से उनका जाति प्रमाण पत्र नहीं बनता था | इसका उदाहरण लेखक ने स्वयं इंदौर के एक जागीरदार घराने के व्यक्ति से सुना है | उन्होनें 1992 ई0 में जब ओ.बी.सी. का प्रमाण पत्र बनवाने के लिए आवेदन किया तो डिस्टीक मेजिस्टे्ट ने यह कहते हुए आवेदन निरस्त कर दिया कि आपके पिताजी के स्कूल प्रमाण पत्र में जाति धनगर मराठा लिखी हुई है ।  बाद में किसी तरह मराठा शब्द पर पानी डालकर मिटाने के बाद बडी मुश्किल से उनका  जाति प्रमाण पत्र बन पाया |  आजादी से पूर्व महाराष्ट् में अनेक सामाजिक संस्थाओं के नाम क्षत्रिय धनगर मराठा के नाम से बनी हुई थी | आजादी के बाद सभी ने लाभ लेने के लिए मराठा शब्द  हटा दिया था | अब परिस्थिति ने पलटा खाया और मराठा शब्द भी आरक्षण की श्रेणी में आ गया है |

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 संदर्भ्:-   

(1)Trilbes and Castes of the Central Provinces in India(1916), Vol-4, Page No.201                        

(2 )Tribes and Caste-R.V. Russell, Page 20

(3)Hindustan Times, New Dellhi, 12 November, 2009, Page No.10, Samar Halarnkar (4)इंदौर स्टेट गजेटीयर-के0सी0 लायर्ड- व्लूम-2, p—54, Ethnography-Castes & Tribes (1912) – Sir Athelistance Bains-Page No130, The Tribes  and Castes of Bombay- R. E. Ethoven-Vol-I-P-321(1920), Gazetteer of Bombay Presidency- Poona, The Tribes and Castes of the Central Provinces of India- Vol-III- Page Noo 205- R.V. Russell(1916),महारथी मराठा अंक(1927)-वि0 चतुर्वेदी-पृ- 47 , मराठा साम्राज्य का उदय और अस्त-  नांदकर्णी-  पृ-84 )

(5)Tribes and Castes of the Central Provinces of India-Vol.III- R.V. Russell(1916)-Page No. 199

(6)Asiatic Journal and Monthly Register for British and Foreign India(1827)- Pag-355

(7)हमारा  समाज- डा0 श0सिं0 शशी-पृ-103 , कुरुबार चरित्रृ- हनुमन्तैया, शब्द का भविष्य- डा0 राजेन्द्र यादव- पृ0-37

(8)शिखर सिंगनापूरता शंभू महादेव(मराठी),  शिवाजी मूल कन्नड नेला(कन्नड)

(9)हिंदी शब्द कोश- चुतर्वेदी द्वारका प्रसाद शर्मा-पृ-175- दारागंज प्रयाग- 1914, साप्ताहिक हिन्दुस्तान-9  अगस्त 1987 – राजेश्वर प्रसाद नारायणसिंह- पृ- 29 ,ए ईवनिंग प्लस – समाचार पत्र- जयपुर- 23 अप्रैल 2004 |

(10)स्व0 सयाजीराव गायकवाड बडौदा   लोक समर्पित पुरुषार्थी महाराजा- दिव्य भास्कर दैनिक- 6 दिसम्बर 2004- सुश्री रजनी व्यास, टे्वल्स इन वैस्टर्न इंडिया कर्नल जेम्स टाड –पश्चिमी भारत की यात्र- अनुवादक गोपल नारायण बहुरा-पृ-224)

(11)Battle of Panipat-Col. Gulcharan Singh- P-91, Maratha and Panipat- H.R. Gupta- p-281,बृजेन्द्र बहादुर सूरजमल जाट- उपेन्द्र नाथ शर्मा-पृ-394, इंदौर राज्य का इतिहास-सु स भण्डारी-पृ-23

                    -इतिश्री-

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One thought on “Who are Maratha’s ? (मराठा कौन है ?)

  1. बहुत ही जानकारी है ,आवश्यकता है समाज के लोगों को जागरूक करने की जो अपने को नहीं पहचानते है। इस जानकारी के लिए आपको बहुत बहुत साधुवाद ।

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